'आनंद' की रिलीज के 50 साल: ...तो फिल्म में नहीं होता मशहूर गाना 'जिंदगी कैसी है पहेली हाय'
फिल्म के 50 साल पूरे होने के मौके पर एबीपी न्यूज़ ने 'आनंद' फिल्म के दिवंगत संगीतकार सलिल चौधरी के बेटे संजॉय चौधरी से खास मुलाकात की.
मुंबई: सलिल चौधरी जैसे संगीतकार बिरले ही होते हैं. सलिल दा ने तमाम हिंदी, बांग्ला और मलयाली फिल्मों में बेहतरीन और सुमधुर संगीत दिया, जिसे आज भी याद किया और गुनगुनाया जाता है. मगर 50 साल बाद भी उनके संगीत से सजे फिल्म 'आनंद' का हिंदी फिल्म संगीत की दुनिया में एक अलग ही मकाम है.
राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन स्टारर और ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी फिल्म आनंद 12 मार्च, 1971 को जब रिलीज हुई थी तो तब शायद लोगों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि फिल्म अपनी अलहदा किस्म की कहानी और निर्देशन के लिए ही नहीं, बल्कि 50 साल बाद ये फिल्म गीत-संगीत के लिए भी जानी जाएगी.
फिल्म के 50 साल पूरे होने के मौके पर एबीपी न्यूज़ ने 'आनंद' फिल्म के दिवंगत संगीतकार सलिल चौधरी के बेटे संजॉय चौधरी से खास मुलाकात की. इस मुलाकात के दौरान संजॉय ने हमें संगीतगार पिता के कई अनूठे किस्सों के बारे में बताया. उनमें से कुछ किस्से फिल्म 'आनंद' से जुड़े हैं.
संजॉय चौधरी ने एबीपी न्यूज़ से कहा, "फिल्म 'आनंद' की शूटिंग लगभग पूरी हो चुकी थी और मेरे पिता ने फिल्म के लिए योगेश का लिखा मशहूर गाना 'जिंदगी कैसी है पहेली हाय' भी संगीतबद्ध कर लिया था. मगर पैसों का इस कदर अभाव था कि निर्माता/निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी के पास फिल्म के इस गाना को शूट करने का बजट नहीं था क्योंकि सारे पैसे खत्म हो चुके थे. यह गाना फिल्म में इस्तेमाल नहीं किया जाता अगर मेरे पिताजी के सुझाव को ऋषिकेश मुखर्जी मान न लेते. उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी को सलाह देते हुए कहा कि 'जिंदगी कैसी है पहेली' गाने की शूटिंग में ज्यादा पैसे खर्च नहीं होंगे अगर इसे समुद्र किनारे बीच पर चलते हुए राजेश खन्ना और कुछ गुब्बारों के साथ शूट किया जाए. ऋषिकेश मुखर्जी को उनके पिता का ये सुझाव बेहद पसंद आया और कुछ इसी अंदाज में पूरे गाने को बेहद कम खर्च में फिल्मा लिया गया. राजेश खन्ना ने भी गाने को इसी तरह से फिल्माये जाने की वकालत की थी."
सलिल चौधरी के बेटे संजॉय ने यह जानकारी भी हमें दी कि बाकी गानों के साथ मशहूर हुए इस गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान संगीतकार सलिल चौधरी, ऋषिकेश मुखर्जी के अलावा खुद राजेश खन्ना भी मौजूद थे. वो इस गाने की धुन को रिकॉर्डिंग के समय सुनना और समझना चाहते थे और यही वजह है कि वे रिकॉर्डिंग के समय मौजूद थे. बाद में राजेश खन्ना ने गाने की शूटिंग के लिए पैसों के अभाव के बावजूद इस गाने की शूटिंग में पूरा सहयोग किया था.
'आनंद' फिल्म के संगीत से जुड़ा एक और किस्सा बताते हैं. संजॉय कहते हैं, "फिल्म में राजेश खन्ना की मौत को और प्रभावकारी बनाने के लिए पिताजी ने अंत में बजनेवाली एक उदास किस्म की धुन तैयार की थी मगर इसे गाने की शक्ल नहीं दी गई थी. मशहूर गीतकार और लेखक गुलजार को उदासी भरे माहौल के लिए बनाई गई मेरे पिता की यह धुन इतनी पसंद आई कि बाद में गुलजार इसी धुन पर एक गाना लिखा जिसे, उन्होंने अपने ही द्वारा निर्देशित फिल्म 'मेरे अपने' (1971) में इस्तेमाल किया था. वो बेहद लोकप्रिय गाना था- 'कोई होता जिसको हम अपना कह लेते यारों...' जिसे किशोर कुमार ने अपनी आवाज से सजाया था."
'आनंद', दो बीघा जमीन', 'मधुमति' जैसी तमाम हिट हिंदी फिल्मों समेत 13 से अधिक भाषाओं की फिल्मों के लिए मधुर संगीत देने वाले, साहित्य में गहरी रुचि रखने वाले, कविताएं और फिल्म की कहानियां लिखने वाले, कई तरह के वाद्य बजाने में पारंगत सलिल दा के बारे में संजॉय कहते हैं, "मेरे पिता हमेशा कहते थे कि संगीत किसी को सिखाया नहीं जा सकता हैं. इस तरह की रचनात्मकता किसी के अंदर पहले से होती है या फिर नहीं होती है."
संजॉय ने अपने पिता द्वारा किसी भी गाने की धुन बनाने की प्रक्रिया के बारे में बात करते हुए कहा, "वे कभी भी बैठकर हार्मोनियम पर कोई धुन तैयार नहीं करते थे. उनकी आदत थी कि वे चलते-फिरते, अपने तमाम काम करते हुए किसी भी गाने की धुन बनाने में यकीन और महारत रखते थे."