Jaddanbai Death Anniversary: नरगिस की मां और संजय दत्त की नानी थीं जद्दनबाई, जानें क्यों की थीं तीन-तीन शादी?
Jaddanbai: जद्दनबाई हिंदी सिनेमा की ऐसी कलाकार थीं, जिन्हें एक्टिंग के साथ संगीत में भी महारथ हासिल थी. भले ही उनका फिल्म करियर बहुत कम समय के लिए रहा, लेकिन उन्होंने इंडस्ट्री में खास पहचान बनाई.
Jaddanbai Unknown Facts: भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में बहुत से कलाकारों ने अपनी प्रतिभा के दम पर खूब नाम कमाया. उन्हीं में से एक जद्दनबाई भी थीं. यूं तो फिल्मी दुनिया में टिकना आसान नहीं है, लेकिन जद्दनबाई ने सभी चुनौतियों का सामना करते हुए न सिर्फ इंडस्ट्री में पैर जमाए, बल्कि अपनी बेटी को भी लॉन्च करके उन्हें बड़ी अभिनेत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई.
संजय दत्त-नरगिस से खास रिश्ता
जद्दनबाई बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं. अभिनेत्री होने के साथ ही वह संगीतकार और फिल्म निर्माता भी थीं. मशहूर फिल्म स्टार संजय दत्त और उनकी मां नरगिस का भी जद्दनबाई से गहरा नाता है. दरअसल, वह नरगिस की मां और अभिनेता की नानी थीं. जद्दनबाई का जन्म 1892 में हुआ था. उनकी मां दलीपबाई तवायफ थीं.
इन दिग्गजों से ली संगीत की शिक्षा
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो दलीपबाई को बचपन में तवायफ के एक ग्रुप ने किडनैप कर लिया, जिसकी वजह से उन्हें भी इलाहाबाद में यह काम करना पड़ा. बहुत छोटी उम्र में जद्दनबाई अपने परिवार के साथ कोलकाता शिफ्ट हो गईं. उनकी संगीत की शिक्षा यहीं से शुरू हुई. इसकी शुरुआत उन्होंने ठुमरी गायक मोइनुद्दीन से की. इसके बाद जद्दनबाई ने बड़े गुलाम अली खान के छोटे भाई बरकत अली से भी संगीत की तालीम हासिल की.
तीन बार बसाया घर
जद्दनबाई की निजी जिंदगी की बात करें तो उन्होंने तीन शादियां कीं. उनकी पहली शादी नरोत्तम दास से हुई थी. इस शादी से उन्हें एक बेटा हुआ, जिनका नाम अख्तर हुसैन रखा. आगे चलकर उनके बेटे ने अभिनय में भी हाथ आजमाया. कुछ साल के बाद नरोत्तम उन्हें छोड़कर चले गए और कभी नहीं लौटे. इसके बाद जद्दनबाई ने दूसरी शादी हार्मोनियम बजाने वाले इरशाद मीर से की. इस शादी से भी उन्हें बेटा हुआ, जिनका नाम उन्होंने अनवर खान रखा. हालांकि, यह शादी भी नहीं चल सकी. इसके बाद जद्दनबाई की जिंदगी में लखनऊ के मोहनबाबू की एंट्री हुई. जद्दनबाई से मुलाकात के बाद वह उन्हें अपना दिल दे बैठे और शादी का प्रस्ताव रख डाला, लेकिन जद्दनबाई ने इसके लिए एक शर्त रख दी. उन्होंने मोहनबाबू से कहा कि अगर वह इस्लाम कुबूल करेंगे तो ही वह उनसे शादी करेंगी. मोहब्बत में गिरफ्तार हो चुके मोहन बाबू ने उनकी बात मान ली और इस्लाम कुबूल करके उनसे शादी कर ली. धर्म परिवर्तन के बाद वह अब्दुल राशिद बन गए.
कैंसर से लड़ी जंग
इस शादी से उन्हें एक बेटी हुई, जिसका नाम उन्होंने फातिमा और तेजस्विनी रखा. आगे चल कर उनकी इस बेटी ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में नरगिस के नाम से झंडे गाड़े. अपने फिल्म करियर में जद्दनबाई ने कुल पांच फिल्मों में काम किया. उन्होंने अपना प्रॉडक्शन हाउस भी खोला था, जिसके बैनर तले उन्होंने कई फिल्में बनाईं. तलाश-ए-हक उनकी आखिरी फिल्म थी, जिससे उन्हें संगीतकार के रूप में खास पहचान मिली. साल 1940 में भारी नुकसान की वजह से उन्हें अपना प्रॉडक्शन हाउस बंद करना पड़ा. 8 अप्रैल 1949 को कैंसर से जंग लड़ते हुए उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
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