मूवी रिव्यू: आपको एंटरटेन करती है सैफ अली खान की ये डार्क कॉमेडी 'कालाकांडी'
कहते हैं फिल्में केवल तीन ही चीजों से चलती है, एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट. सैफ अली खान स्टारर फिल्म 'कालाकांडी' को इसका एक बेहतरीन उदाहरण कहा जा सकता है.
स्टार कास्ट: सैफ अली खान, शोभिता धुलिपाला, दीपक डोबरियाल, विजय राज, कुणाल राय कपूर, अक्षय ओबेरॉय, शहनाज
डायरेक्टर: अक्षत वर्मा
रेटिंग: 2.5 स्टार्स
कहते हैं फिल्में केवल तीन ही चीजों से चलती है, एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट. सैफ अली खान स्टारर फिल्म 'कालाकांडी' को इसका एक बेहतरीन उदाहरण कहा जा सकता है. फिल्म की कहानी अच्छी, जिसमें रोमांस, कॉमेडी और जिंदगी का एक डार्क पहलू तीनों एक साथ नजर आते हैं. फिल्म में तीन कहानियां एक साथ चलती हैं जो बाद में एक साथ मिलकर फिल्म को मुकाम तक पहुंचाती हैं. ‘डेल्ही बेली’ का स्क्रीन प्ले लिख चर्चित होने वाले अक्षत वर्मा की डायरेक्टर के तौर पर ये पहली फिल्म है. फिल्म का डायरेक्शन देख अक्षत की काबिलियत पर कहीं सवाल नहीं उठता क्योंकि किसी भी जगह पहली बार वाले डायरेक्शन की कमी नहीं नज़र आती. अपनी इस फिल्म की कहानी भी खुद अक्षत ने ही लिखी है.
वहीं, ये कहना भी बिल्कुल गलत नहीं होगा कि इस फिल्म के जरिए सैफ अली खान एक बार फिर बड़े पर्दे पर दमदार वापसी कर रहे हैं. ये फिल्म सैफ की कमबैक फिल्म इसलिए कही जा रही है क्योंकि बॉक्स ऑफिस के आंकड़ों के मुताबिक सैफ के हाथ लंबे समय से कोई हिट फिल्म नहीं लगी है. ऐसे में इस फिल्म से काफी उम्मीदें की जा रही हैं. साल 2012 में रिलीज हुई फिल्म 'कॉकटेल' सैफ की आखिरी हिट फिल्म थी. इसके बाद रिलीज हुई 'हैप्पी एंडिग', 'फैंटम' और 'रंगून' जैसी बिग बजट फिल्में भी बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह धराशायी हो गई.
कहानी
फिल्म की कहानी मुंबई की एक रात की है, जिसमें एक साथ तीन कहानियां चलती हैं. एक कहानी के किरदार सैफ अली खान हैं जिन्हें कोई बुरी लत नही है. एक दिन उसे डॉक्टर से पता चलता है कि उसे पेट का कैंसर है और अब उसके पास वक्त बहुत कम है. ये पता चलने के बाद सैफ तय करते हैं कि वो अपनी बाकी बची जिंदगी में वो सारी चीजें करना चाहते हैं जो बुरे की श्रेणी में आता है. सैफ एक लिस्ट बनाते हैं जिसमें वो किन्नर को बिना कपड़ों के देखने से लेकर ड्रग्स तक ट्राइ करने की सोचते हैं.
दूसरी कहानी शोभिता धुलिपाला और कुणाल राय कपूर की है जिसमें शोभिता न्यूयार्क जाने की तैयारी में हैं और कुछ ही घंटों में उनकी फ्लाइट है. लेकिन इससे पहले वो दोनों एक रेव पार्टी में जाते हैं. पार्टी में पुलिस की रेड पड़ती है और वो लोग वहां फंस जाते हैं. इस मुसीबत से निकलने के लिए शोभिता कई जुगत भिड़ाती है और एक मुसीबत से निकलने के चक्कर में नई मुसीबत में फंस जाती हैं.
तीसरी कहानी में आपको नजर आएंगे दीपक डोबरियाल और विजय राज. ये दोनों माफिया के गुर्गे के किरदार में हैं, जो अपने बॉस को धोखा देकर तीन करोड़ रुपए हड़पना चाहते हैं. पैसे की चाहत इनके बीच भी धोखे नौबत ला देती है. फिल्म खत्म होते-होते तीनों कहानियां आपस में जाकर मिल जाती हैं. फिल्म के आखिर में आने वाला ट्विस्ट दर्शकों को बुरी तरह चौकाता है. एक मोड़ पर जब ऐसा लगता है कि फिल्म हैप्पी एंडिंग के साथ बस खत्म होने वाली है. तभी फिल्म में एक ट्विस्ट आता है और सबको हैरान करके चला जाता है.
हालांकि इस फिल्म की कहानी बहुत नई नहीं है, इस तरह के किरदार व कहानी के कुछ अंश आपको कई बॉलीवुड फिल्मों की याद दिला देंगे, जिनमें मुन्नाभाई में जिम्मी शेरगिल का किरदार और दास विदानिया के विनय पाठक का किरदार शामिल है. लेकिन इस कहानी को कुछ इस प्रकार पिरोया गया है कि आप इससे खुद को जुड़ा हुआ महसूस करेंगे.
निर्देशन
फिल्म की कहानी और निर्देशन दोनों अक्षत वर्मा का है . बतौर निर्देशक अक्षत की ये पहली फिल्म है और इस लिहाज से उनका काम बेहतरीन है. फिल्म में जो बात सबसे ज्यादा उलझन में डालती है वो है किरदारों की बहुत ज्यादा संख्या. ज्यादा किरदार होने के कारण हर किरदार को बराबर स्पेस नहीं मिल पाता. कहानी में इनवॉल्व होने के बावजूद कुछ किरदार दिमाग में रजिस्टर नहीं कर पाते और दर्शक खुद को उससे डिसकनेक्ट पाते हैं. इतने ज्यादा किरदार होने के कारण फिल्म से एक पल नजर हटाना भी आपको कहानी से दूर कर सकता है.
सिनेमेटोग्राफी
फिल्म में कैमेरा वर्क का अच्छा होने के साथ-साथ थोड़ा प्रयोगात्मक भी है. फिल्म में ड्रग्स लेने के बाद की स्थिति को स्पेशल इफेक्ट्स के जरिए बेहद खूबसूरती से दिखाया है. ड्रग्स का सेवन करने के बाद सैफ अली खान के किरदार को दुनिया पहले से भी ज्यादा खूबसूरत दिखने लगती है. स्पेशल इफेक्ट्स के साथ जो प्रयोग किए गए हैं वो काफी हद तक उसमें सफल होते दिख रहे हैं. इससे पहले फिल्म 'लाइफ हो तो ऐसी' में भी ऐसा ही प्रयोग किया गया था.
एडिटिंग
अच्छी सिनेमेटोग्राफी और स्पेशल इफेक्ट्स के साथ फिल्म की एडिटिंग अच्छी की गई है. एडिटिंग के दौरान कैमरा वर्क, एक्टिंग और स्पेशल इफेक्ट्स का एक बेहतरीन कॉकटेल बनाया गया है.
म्यूजिक
फिल्म का म्यूजिक काफी क्वर्की और देसी है. फिल्म के गाने पहले से ही लोगों की जुबान पर हैं. 'स्वैगपुर का चौधरी' में जहां हरियाणवी स्वैग है तो वहीं काला डोरिया में पंजाबी तड़का भी है. फिल्म की एलबम में काफी वैराइटी देखी जा सकती है. फिल्म के गाने ऐसे हैं जो लंबे समय तक लोगों के जेहन में रहेंगे और आप किसी भी वक्त उन्हें गुनगुना सकते हैं. फिल्म का म्यूजिक समीरुद्दीन और विशाल डडलानी ने मिलकर दिया है.
एक्टिंग
कहानी के लिहाज से फिल्म की कास्टिंग इससे बेहतर शायद ही हो सकती थी. अभिनय के हिसाब से ये फिल्म सैफ अली खान की कुछ चुनिंदा फिल्मों में शामिल है. उन्होंने एक बार फिर ये दिखा दिया है कि वो टाइप कास्ट नहीं हुए हैं और अभी भी उनमें अभिनय की असीमित प्रतिभा है.
वहीं, सैफ के अलावा शोभिता धुलिपाला ने बेहतरीन काम किया है. उनकी ये दूसरी फिल्म है इससे पहले वो अऩुराग कश्यप की फिल्म रमन राघव 2.0 में नजर आईं थी जिनमें उनका काम काफी पसंद किया गया था. साथ ही दीपक डोबरियाल और विजय राज के अभिनय को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है और इन दोनों ने ही बेहतरीन काम किया है. फिल्म के अन्य कलाकार जैसे कुणाल राय कपूर, अक्षय ओबेरॉय, अमायरा दस्तूर और शहनाज ने भी अपने-अपने किरदार के साथ पूर्णतया न्याय किया है.
क्यों देखें
1. फिल्म एक डार्क कॉमेडी है और बहुत सारी परेशानियों के बीच भी फिल्म के किरदार आपको गुदगुदाने पर मजबूर कर देगें.
2. फिल्म में कास्ट किए गए किरदार आपको कहीं भी निराश नहीं करेंगे. फिल्म की कहानी आपको अपने साथ रोक कर रखती है.
3. फिल्म में सैफ का बेहतरीन अभिनय है, अच्छा संगीत है और साथ ही फिल्म को बेवजह खींचा नहीं गया है.
अगर आप साल की पहली फिल्म सिनेमा के एक अच्छे अनुभव और अच्छी कहानी के साथ देखना चाहते हैं तो ये फिल्म आपको निराश नहीं करेगी.
क्यों न देखें
अगर आप डॉर्क फिल्मों के शौकीन नहीं हैं तो ये फिल्म आपके लिए बिल्कुल भी नहीं है. साथ में फिल्म में जो ह्यूमर डाला गया है उसे समझने के लिए और उसे एंजॉय करने के लिए आपको फिल्म में पूरी तरह इनवॉल्व होना होगा. इसी के साथ अगर आप एक लाइट हार्टेड और कॉमेडी फिल्म के लिए सिनेमा हॉल जा रहे हैं तो ये फिल्म आपको निराश कर सकती है.