निर्देशक - अभिषेक वर्मन 


कलाकार - आलिया भट्ट , वरुण धवन, सोनाक्षी सिन्हा, आदित्य रॉय कपूर, माधुरी दीक्षित, संजय दत्त और कुणाल खेमू


रेटिंग - ***


एक कहानी जिसे 15 साल पहले करण जौहर के पिता यश जौहर बनाना चाहते थे, एक ऐसी कहानी जिसके लिए करीब 21 साल बाद संजय दत्त और माधुरी दीक्षित साथ में काम करने को तैयार हो गए.. आज बड़े पर्दे पर रिलीज हो गई है. इस फिल्म से जुड़ी कई ऐसी वजहें हैं जो इसे बेहद खास बनाती हैं. फिल्म आजादी से पहले की पृष्ठ भूमि पर आधारित है और इसे एक ऐपिक लवस्टोरी बताया जा रहा है.


फिल्म में गानों का तड़का लगाया गया है और कहीं न कहीं इसे संजय लीला भंसाली की फिल्मों की तरह भव्यता देने की कोशिश भी की गई है. हालांकि इसमें फिल्म की टीम उस हद तक कामयाब होती नजर नहीं आ रही. इसके अलावा फिल्म में इश्क और उसके दर्द के साथ-साथ रिश्तों में उलझे लोगों की कहानी बयां करने की कोशिश की गई है.


इस फिल्म का निर्माण धर्मा प्रोडक्शन्स के बैनर तले किया गया है और फिल्म को एंटरटेनिंग बनाने की हर मुमकिन कोशिश की गई है. इसमें गानों का तड़का है, भव्य सेट और आजादी से पहले के लाहौर की कुछ झलकियां हैं, फिल्म के एक्टर्स को बेहद खूबसूरत लिबासों में सजाया गया है. लेकिन इस सब के बावजूद फिल्म में इमोशन्स की कमी लगती है.


कहानी


फिल्म की कहानी मुख्यत: दो परिवारों की है एक परिवार है लाहौर के हुस्नाबाद के बलराज चौधरी (संजय दत्त) का जो कि वहां बड़ा रुत्बा रखते हैं. दूसरा परिवार है बहार बेगम को जो हुस्नाबाद में ही एक तवायफ हैं और बलराज चौधरी से उनके नाजायज संबंध रहे हैं. बलराज चौधरी एक नामी अखबार चलाते हैं जिसे बाद में उनका बेटा देव चौधरी (आदित्य रॉय कपूर) चलाता है. देव शादीशुदा है और उनकी पत्नी है सत्या (सोनाक्षी सिन्हा) जो कि एक जानलेवा बीमारी से जूझ रही हैं.


सत्या अपने पति देव चौधरी की शादी रूप (आलिया भट्ट) से करवा देती हैं. लेकिन हुस्नाबाद पहुंची रूप वहां जाकर जफर (वरुण धवन) की मोहब्बत में गिरफ्तार हो जाती हैं. जफर हुस्नाबाद के एक बदनाम मोहल्ले हीरा मंडी में रहता है. जहां रूप, बहार बेगम से संगीत सीखने के लिए जाती है. इसी दौरान दोनों की मुलाकात होती है और मोहब्बत हो जाती है. लेकिन जफर को रूप से मोहब्बत नहीं होती और वो बलराज चौधरी से अपनी निजी दुश्मनी का बदला लेने के लिए उसका इस्तेमाल करता है.


इसके अलावा फिल्म में एक और कैरेक्टर है जो बेहद अहम भूमिका निभाता है और कहानी को एक नए मोड़ पर ले जाता है, वो है अब्दुल (कुणाल खेमू). अब्दुल को स्क्रीन पर कम समय दिया गया है लेकिन वो पूरी कहानी को एक झटके में पलट देता है.



कहानी में आजादी से पहले अंग्रेजी मशीनों को लेकर हुए विरोध को मुख्य विवाद के तौर पर दिखाया गया है जिसका समर्थन देव चौधरी करता है. लेकिन बाद में ये मसला हिंदू-मुसलमान में तब्दील हो जाता है और मुसलमान चौधरी परिवार के विरोधी हो जाते हैं. हिंदू -मुसलमान का ये विरोध ही इस प्रेम कहानी में नफरत का जहर भर देता है. अब रूप से क्या जफर सच में मोहब्बत करता है या नहीं, और देव और जफर में से रूप किसे मिलती है साथ ही जफर और बलराज चौधरी में क्या दुश्मनी है? इन सब सवालों के जवाब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.


निर्देशन


कहते हैं कि एक अच्छी फिल्म के लिए तीन चीजों की जरूरत होती है अच्छे कलाकार, सधी हुई कहानी और अच्छा निर्देशन. इस फिल्म में आपको तीनों ही चीजें नजर आ रही हैं. फिल्म में एक से एक शानदार कलाकार हैं और कहानी में भी एक्शन, ड्रामा, इमोशन, और दर्द है लेकिन फिर भी ये आपके दिल तक नहीं पहुंचती. इससे पहले अभिषेक वर्मन ने आलिया भट्ट और अर्जुन कपूर के साथ फिल्म '2 स्टेट्स ' बनाई थी, जिसने दर्शकों के दिल को छू लिया था. लेकिन इस फिल्म में उनके निर्देशन में कुछ कमी लगी और कहानी दर्शकों के दिल तक नहीं पहुंचती दिख रही है. फिल्म में कई जगह VFX इफेक्ट्स का इस्तेमाल साफतौर पर दिखाई दे रहा है. दर्शकों को उससे कनेक्ट करने में थोड़ी मुश्किल होती है.


एक्टिंग 


फिल्म में निर्देशन के साथ-साथ एक्टिंग भी कई जगह काफी कमजोर नजर आ रही है. यूं तो फिल्म में माधुरी दीक्षित और संजय दत्त जैसे मंझे हुए कलाकार हैं, आलिया भट्ट और वरुण धवन की जबरदस्त कैमेस्ट्री है और सोनाक्षी और आदित्य की अच्छी एक्टिंग है. लेकिन फिर भी आपको इन स्टार्स को ऑनस्क्रीन देखकर इनके दर्द को महसूस करने में जरा परेशानी होगी.


कई सीन्स में ये स्टार्स आपको ओवर एक्टिंग या यूं कहें कि किरदार से भटके हुए नजर आएंगे जिसकी वजह से इनसे कनेक्ट कर पाना मुश्किल होता है. फिर चाहे वो फिल्म में स्टार्स का इन्ट्रोडक्शन हो, आलिया का एंट्री सॉन्ग या फिर वरुण धवन की बैल से लड़ाई का सीन. सभी में आपको विजुअल्स में कुछ कमी महसूस होती है.



संगीत


फिल्म का संगीत प्रीतम ने दिया है. फिल्म में एक या दो नहीं 4 डांस नंबर रखे गए हैं. घर मोरे परदेसिया और तबाह हो गए दो क्लासिकल डांस नंबर्स हैं जिसमें से एक को आलिया भट्ट पर फिल्माया गया है तो दूसरे में माधुरी दीक्षित डांस करती नजर आ रही हैं. दोनों ही गानों की कोरियोग्राफी शानदार है लेकिन ये गाने फैंस के दिलों को धड़काने में जरा नाकमयाब दिख रहे हैं. इसके अलावा दो डांस नंबर्स और हैं जिन्हें आइटम सॉन्ग की तरह फिल्म में रखा गया है ऐरा गैरा और  फर्स्ट क्लास.


एक तो ये दोनों ही गाने फिल्म में गैर जरूरी हैं दूसरा इनकी बीट्स और लीरिक्स भी खास नहीं है जो दर्शकों को डांस करने पर मजबूर कर सकें. इसके अलावा फिल्म की शुरुआत में आलिया पर एक गाना फिल्माया गया है 'रजवाड़ी ओढ़नी' जिसे देखकर एक पल के लिए आपको 'हम दिल दे चुके' सनम में ऐश्वर्या की एंट्री याद आ जाएगी. फिल्म की पूरी म्यूजिकल एल्बम की बात करें तो सिर्फ एक ही गाना है जो दिल को छूने में कामयाब है और आप फिल्म देखने के बाद गुनगुनाते नजर आएंगे वो है फिल्म का टाइटल ट्रैक 'कलंक' जिसे अरिजीत सिंह ने गाया है.


क्यों देखें




  • फिल्म में पुराने समय की कई चीजों को दिखाया गया है जिससे 1940 के दशक में देश के रहन-सहन को देखा जा सकता है. फिर इसमें उनके पहनावे से लेकर वहां की हवेलियों और कामकाज के तौर-तरीके सब शामिल हैं.

  • माधुरी दीक्षित और संजय दत्त को 21 साल बाद बड़े पर्दे पर देखना बेहद खास अनुभव है.

  • आलिया भट्ट और वरुण धवन फिल्म का बेस्ट पार्ट हैं और ये कहना गलत नहीं होगा कि सबसे ज्यादा आप इन्हीं के किरदारों से जुड़ सकेंगे. फिल्म में इन दोनों ने सबसे बेहतरीन एक्टिंग की है.

  • फिल्म में सभी एक्ट्रेसेस बेहद खूबसूरत लगी हैं और आलिया की मासूमियत कहीं न कहीं दिल को जीतने में कामयाब रहती है.


क्यों न देखें




  • अगर आप फिल्म में किसी बेहद दर्दभरी या एपिक लवस्टोरी को देखने जा रहे हैं तो शायद आपके हाथ निराशा लगे. क्योंकि फिल्म की कहानी का पहले सीन से ही आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है.

  • फिल्म थोड़ी सी लंबी है और इसे कई बेवजह के गानों से जबरन बढ़ाया गया है.


यहां देखें फिल्म का ट्रेलर