फिल्म - केदारनाथ

कलाकार- सुशांत सिंह राजपूत, सारा अली खान 

निर्देशक- अभिषेक कपूर

रेटिंग- **1/2

साल 2013 में केदारनाथ में आई भीषण त्रासदी में करीब 4300 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और करीब 70, 000 लोग लापता थे. केदारनाथ में हुई अब तक की सबसे बड़ी त्रास्दी को एक फिल्म में दर्शाने की कोशिश एक मुश्किल काम है. साथ ही फिल्म की कहानी को ट्विस्ट देने के लिए इसमें हिंदू और मुस्लिम एंगल भी रखा गया है. अभिषेक कपूर की ये फिल्म काफी लंबे समय से फैंस के बीच एक अलग तरह की एक्साइटमेंट बनाए हुई थी. फिल्म का ट्रेलर जब रिलीज किया गया तो फैंस ने इसे खूब पसंद किया.

अब अगर आप भी इस वीकेंड फिल्म देखने का मन बना रहे हैं और आप भी सारा अली खान और सुशांत सिंह राजपूत को ऑनस्क्रीन देखना चाहते हैं तो फिल्म देखने से पहले पढ़ें ये रिव्यू...

कहानी

फिल्म की कहानी शुरू होती है मंसूर खान की यात्रा से. मंसूर यानी की सुशांत सिंह राजपूत इस फिल्म में एक पिट्ठू बने हैं जो अपने खच्चर और पीठ पर तीर्थ यात्रियों को ढोते हैं और उन्हें दर्शन करवाते हैं. आपको ये पिट्ठू लगभग हर पहाड़ी तीर्थ स्थान पर मिल जाएंगे. मंसूर के नाम से ही जाहिर कि वो एक मुसलमान है. वहीं, दूसरी ओर हैं मंदाकिनी यानी की सारा अली खान केदारनाथ के नामी पुजारी की बेटी है, जिसकी सगाई हो रखी है. मुक्कु का मंगेतर कुल्लु उस इलाके में एक नामी व्यक्ति है. 


कुल्लू ने पहले सारा की बड़ी बहन से सगाई की थी लेकिन कुछ वक्त बाद उस से सगाई तोड़कर उसने सारा का हाथ मांग लिया. सारा के परिवार ने भी कुल्लु की हैसियत देखते हुए इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया. लेकिन सारा इस रिश्ते से बिल्कुल भी खुश नहीं है. इसी बीच सारा अली खान की मुलाकात सुशांत सिंह से होती है. दोनों के बीच बातों और मुलाकातों का सिलसिला शुरू होता है.

पंडित की बेटी का रिश्ता मुसलमान संग किसी को भी स्वीकार नहीं होता. जिसकी वजह से सुशांत सिंह को बाकी पिट्ठुओं को भी केदारनाथ छोड़कर जाने का फरमान सुनाया जाता है. इसी बीच सारा अली खान की शादी कुल्लु के साथ कर दी जाती है. शादी के बाद आती है तबाही की रात, जिसमें सारा केदारनाथ बह जाता है. इसी बीच सुशांत के साथ सारा और उसका परिवार भी इस त्रासदी में फंस जाता है. 


फिल्म की कहानी को एक दम फ्लैट रखा गया है और जबरन खींचा गया है. फिल्म में कई हिस्से ऐसे हैं जो आपको ऊबाऊ लगते हैं. खासतौर पर फिल्म की धीमी शुरुआत ही फिल्म से ऑडियंस की दिलचस्पी जरा कम होने लगती है.

एक्टिंग

सारा अली खान की ये पहली फिल्म है और उन्होंने अपने किरदार के साथ पूरी तरह न्याय किया है. वो बात और है कि सारा के किरदार 'मुक्कु' को जिस तरह से गढ़ा गया है वो आपको शुरुआती दौर में आलिया भट्ट और करीना कपूर की याद जरूर दिलाती है. लेकिन इस सब के बाद भी गुस्सैल, मनमौजी और जिद्दी मुक्कु से खुद को कनेक्ट कर पाने में सफल रहते हैं. सुशांत सिंह राजपूत जब पर्दे पर किसी किरदार को निभाते हैं को वो पूरी तरह उसमें रम जाते हैं फिर चाहे वो धोनी हो या ब्योमकेश बख्शी. उन्होंने मंसूर के किरदार के साथ भी पूरी तरह न्याय किया है.

म्यूजिक

फिल्म का संगीत अमित त्रिवेदी ने दिया है और इसमें कुल 4 गाने रखे गए हैं. फिल्म का पहला गाना 'नमो-नमो' पहले ही शिव भक्तों की जुबान पर चढ़ा हुआ है. इसके अलावा जान निसार और काफिराना दो सॉफ्ट सॉन्ग्स हैं. दोनों ही मेलोडी सॉन्ग हैं और गुनगुनाए जा सकते हैं. इसके अलावा फिल्म में एक डांस नंबर 'स्वीटहार्ट' भी रखा गया है.

क्यों देखें 

  • सारा अली खान ने इस फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू किया है और बतौर पहली फिल्म उन्होंने अच्छा काम किया है.

  • सुशांत सिंह राजपूत हर बार की तरह अपनी एक्टिंग का कमाल दिखाते हैं.

  • फिल्म में केदारनाथ में आई भीषण तबाही के मंजर को करीब से दिखाने की कोशिश की गई और कुछ सीन आपको हैरान कर जाते हैं. कुदरत का ये रौद्र रूप कई सवाल भी खड़ा करते हैं.


क्यों न देखें

  • फिल्म के शुरुआती कुछ सीन्स से ही फिल्म की पूरी कहानी समझ आ जाती है. साथ ही फिल्म आपको बांधे रखने में सफल नहीं होती.

  • फिल्म के फर्स्ट हाफ को बेवजह खींचा गया है, उसमें कैरेक्टर्स को इंट्रीड्यूज करने और किरदारों के बर्ताव को समझाने में बेवजह वक्त बर्बाद किया गया है.

  • फिल्म में केदारनाथ त्रासदी को दिखाने की कोशिश की है लेकिन त्रास्दी और कहानी एक दूसरे से जुड़ नहीं पाती.