Kho Gaye Hum Kahan Review: फोन स्क्रीन पर दिख रहे मुस्कुराते चेहरों के पीछे छिपे दर्द की कहानी कहती ये फिल्म क्यों देखें, जानें वजहें
Kho Gaye Hum Kahan Movie Review: सोशल मीडिया पर हर चीज जितनी चमकदार और खुशनुमा लगती है, शायद उतनी असल में होती नहीं. इस लाइन से कनेक्ट कर पा रहे हैं, तो ये रिव्यू आपके लिए ही है.
Kho Gaye Hum Kahan Movie Review: 'खो गए हम कहां' नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुकी है. 'जेन जी' की कहानी कहती इस फिल्म को देखने का मन बना रहे हैं तो पहले फिल्म के बारे में जान लीजिए और फैसला कीजिए कि आपको ये फिल्म देखनी है या नहीं.
फिल्म के बारे में
फिल्म तीन दोस्तों अहाना (अनन्या पांडे), इमाद (सिद्धान्त चतुर्वेदी) और नील परेरा (आदर्श गौरव) के बारे में है. फिल्म शुरू होते ही स्टैंडअप कॉमेडियन इमाद तीनों के बारे में थोड़ा-थोड़ा बता देते हैं. फिल्म की कहानी आज की जनरेशन के रहने के तौर-तरीकों और उसमें सोशल मीडिया के इन्फ्लुएंस के बारे में बात करती है. अहाना और इमाद फ्लैटमेट हैं, लेकिन वो रिलेशन में नहीं हैं. अहाना, रोहन के साथ रिलेशन में है. नील परेरा इन दोनों का बचपन का दोस्त है, वो एक जिम ट्रेनर है. तीनों साथ में हैं और तीनों अपनी-अपनी उलझनों में फंसे हुए हैं.
फिल्म में एक कैरेक्टर और भी है जिसे फिल्म का लीड कैरेक्टर भी कह सकते हैं. उसका कोई चेहरा नहीं हैं, लेकिन फिर भी वो इन तीनों की जिंदगियों को प्रभावित करता है. फिल्म के इस अहम किरदार का नाम है 'सोशल मीडिया'. इमाद एक स्टैंडअप कॉमेडियन है, लेकिन वो टिंडर एडिक्ट है. उसे इमोशनल इंटिमेसी से डर लगता है.
अहाना के पास जॉब है, लेकिन उसका रिलेशनशिप खतरे में है. ऐसे में असुरक्षा की भावना से परेशान अहाना अपने बॉयफ्रैंड को सोशल मीडिया पर स्टॉक करती है और उसके बारे में जानने की कोशिश में है. नील परेरा एक जिम ट्रेनर है जो अपने 'सो कॉल्ड' रिलेशनशिप के बारे में दुनिया को बता नहीं सकता. वो अपना गुस्सा फेक प्रोफाइल बनाकर रैंडम लोगों की तस्वीरों पर भद्दे कमेंट करके निकालता है. पूरी फिल्म सोशल मीडिया के इर्द-गिर्द ही घूमती है और आज की जनरेशन के इस एडिक्शन से जुड़ी परेशानियों और उलझनों को मीनिंगफुल तरीके से बताती है.
एक्टिंग
- स्टोरीटेलिंग के तरीके के अलावा इस फिल्म का सबसे अहम पार्ट फिल्म के एक्टर हैं, जिन्होंने अपने-अपने रोल को बखूबी निभाया है. सबसे पहले बात करते हैं अनन्या पांडे की. अनन्या की एक्टिंग स्किल की झलक इसके पहले की फिल्मों में दर्शकों को दिख चुकी है. इस फिल्म में उनका किरदार उनकी एक्टिंग स्किल को ठीक से निखारकर सामने लाता है. असुरक्षा की भावना से जूझ रही लड़की का किरदार उन पर फबता है. ये कहना गलत नहीं होगा कि वो फिल्मों में लंबी दूरी तय करने वाली हैं.
- सिद्धांत चतुर्वेदी की बात करें तो बेहद वर्सटाइल हैं. ऐसा रोल उन्होंने कभी नहीं किया. एक स्टैंडअप कॉमेडियन का हावभाव कैसा होता है, इसे उन्होंने ठीक से समझा है. 'गली बॉय' का एमसी शेर के किरदार से लेकर 'इनसाइड एज' में एक गरीब क्रिकेटर के किरदारों तक और अब 'खो गए हम कहां' में इमाद के रोल में वो एक-दूसरे से बिल्कुल अलग रोल में दिखे हैं. वो भविष्य में एलीट एक्टर की लिस्ट में शामिल होने की उम्मीद बढ़ाते हैं.
- अब बात करें आदर्श गौरव की तो आप उन्हें जिम ट्रेनर के रूप में देखते समय ये स्वीकार ही नहीं कर पाएंगे कि ये वही एक्टर है, जिसने 'व्हाइट टाइगर' में एक छोटे से गांव से शहर आए शख्स का किरदार निभाया था. फिल्म में सीन की जरूरत के हिसाब से कब कैसा एक्सप्रेशन जाना चाहिए, ये अगर किसी को सीखना है तो आदर्श गौरव की ये फिल्म उसके लिए ट्यूशन का काम कर सकती है.
- फिल्म में कल्कि कोचलिन ने भी छोटे से रोल में अच्छा काम किया है.
फिल्म की खास बातें
- फिल्म का निर्देशन अर्जुन वरैन सिंह ने किया है जिन्होंने इसके पहले जोया अख्तर की फिल्म गली बॉय में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम किया था. फिल्म को रीमा कागती और जोया अख्तर ने लिखा है. यही वजह है कि फिल्म देखते वक्त जोया अख्तर का असर फिल्म में दिखता है. फिल्म पूरी तरह से जोया अख्तर स्टायल में बनाई गई है. तो अगर आप उनकी फिल्मों के शौकीन हैं तो ये फिल्म देख सकते हैं.
- फिल्म में वही बोलचाल की भाषा वही रखी गई है, जो जेन जी जनरेशन का आम भाषा है. 'Yaas', Jinx, Slay, #OOTN, Sup जैसे शब्दों का इस्तेमाल यूथ को फिल्म से कनेक्ट करने का काम करता है.
- फिल्म में नाटकीयता नहीं लगती. फिल्म देखते वक्त लगता है कि ये कहानी हमारी या हमारे आस-पास के लोगों की है. फिल्म के राइटर और डायरेक्टर दोनों आज की जनरेशन की उलझनों को बढ़िया से समझते हैं.
- फिल्म में सोशल मीडिया के जाल में फंसे जेन जी जनरेशन की उलझनों को बहुत ही मीनिंगफुल तरीके से उकेरा गया है और ऐसा करते समय उनका मजाक नहीं उड़ाया गया.
- सोशल मीडिया का लोगों की जिंदगियों में कैसा असर होता है. यही पूरी फिल्म का थीम है. फिल्म का एक किरदार इंटिमेसी से डरता है इसलिए टिंडर से हर रोज नए पार्टनर ढूंढता है. वहीं दूसरा अपनी गर्लफ्रेंड के साथ इमोशनली कनेक्ट होना तो चाहता है लेकिन सोशल मीडिया की वजह से वो ऐसा नहीं कर पाता. तीसरा कैरेक्टर सोशल मीडिया पर अपने बॉयफ्रैंड को फेक आईडी की मदद से स्टॉक करता है और फोन स्क्रीन पर दिख रही दुनिया से परेशान हो जाता है. ये सब कुछ अच्छे से पिरोया गया है.
- फिल्म का एक डायलॉग डिजिटल एज की पूरी समरी कह जाता है- 'ऐसा लगता है कि सब वेल कनेक्टेड हैं, लेकिन असल में हम इतने अकेले कभी नहीं रहे'.
- आखिर में, बेहतरीन फिल्म होने के बावजूद ये फिल्म एक खास दर्शक वर्ग को कनेक्ट कर पाने में तो सफल होती है, लेकिन टियर 2 और टियर 3 के 40 की उम्र से ऊपर के दर्शक फिल्म से कनेक्शन बनाने में असफल हो सकते हैं.