डोगरों की पुरानी संस्कृति, रीति-रिवाजों, भाषा की बात करने वालीं पद्मश्री पद्मा सचदेव के निधन से सिंगर लता मंगेशकर भी बेहद आहत हैं. उन्होंने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है.
लता ने ट्वीट किया, "मेरी प्यारी सहेली और मशहूर लेखिका कवयित्री और संगीतकार पद्मा सचदेव के निधन की खबर सुनकर मैं नि:शब्द हूं. क्या कहूं. हमारी बहुत पुरानी दोस्ती थी. पदमा और उसके पति हमारे परिवार के सदस्य जैसे ही थे. मेरे अमेरिका के शो का निवेदन उसने किया था. मैंने उसके डोगरी गाने गाए थे. जो बहुत लोक प्रिय हुए थे. पदम के पति सुरेंद्र सिंह जी अच्छे शास्त्रीय गायक हैं. जिन्होंने मेरा गुरुवाणी का रिकार्ड किया था. कई यादें हैं आज मैं बहुत दुखी हूं. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें.
साल 1971 में मिला था साहित्य अकादमी पुरस्कार
पद्मा सचदेव एक भारतीय कवयित्री और उपन्यासकार थीं. उन्हें डोगरी भाषा की पहली आधुनिक महिला कवि के रूप में संबोधित किया जाता है, पद्मा ने हिंदी में भी लेखनी की. उन्होंने 'मेरी कविता मेरे गीत' सहित कई कविता संग्रह प्रकाशित किए, जिसने 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार (1970), सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (1987), हिंदी अकादमी पुरस्कार (1987-88), उत्तर प्रदेश हिंदी अकादमी के सौहार्द पुरस्कार (1989) से सम्मानित किया गया था.
इन प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी हुई थीं सम्मानित
जम्मू-कश्मीर सरकार के ‘रोब ऑफ ऑनर’ और राजा राममोहन राय पुरस्कार भी उन्हें मिले थे. उनकी प्रकाशित कृतियों में ‘अमराई’, ‘भटको नहीं धनंजय’, ‘नौशीन’, अक्खरकुंड’, ‘बूंद बावड़ी’ (आत्मकथा), ‘तवी ते चन्हान’, ‘नेहरियां गलियां’, ‘पोता पोता निम्बल’, ‘उत्तरबैहनी’, ‘तैथियां’, ‘गोद भरी’ तथा हिंदी में ‘उपन्यास ‘अब न बनेगी देहरी’ प्रमुख हैं.
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