गाऊं, खूब गाऊं और अच्छा गाऊं: Lata Mangeshkar ने अपनी इसी ख्वाहिश को जी भर कर जीया, अंतिम सांस तक की संगीत की सेवा
लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) की एक ही इच्छा थी – गाऊं, खूब गाऊं और अच्छा गाऊं. लता दीदी की ये इच्छा जरूर पूरी हुई. उन्होंने अपनी इस ख्वाहिश को जी भर कर जीया.
Lata Mangeshkar: लता मंगेशकर ने आजीवन संगीत की पूजा की. उनका जीना और मरना सब कुछ संगीत था तभी तो उन्हें स्वर कोकिला का दर्जा मिला. कोयल सी आवाज़ और सुरों की ऐसा पहचान कि उनसा ना कोई हुआ, ना कोई है और ना कोई होगा. लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) छोटी सी उम्र से ही संगीत से बंध गई थीं. वो पांच साल की थीं और उन्होंने संगीत सीखना शुरू कर दिया था. लेकिन सीखते सीखते वो संगीत से ऐसी जुड़ीं कि संगीत की ही होकर रह गईं.
लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) की एक ही इच्छा थी – गाऊं, खूब गाऊं और अच्छा गाऊं. इच्छाएं तो हर किसी की होती है लेकिन हर किसी की मुराद पूरी हो जाए ये कहां होता है. लेकिन लता दीदी की ये इच्छा जरूर पूरी हुई. उन्होंने अपनी इस ख्वाहिश को जी भर कर जीया. ताउम्र गाया और क्या खूब गाया. एक से बढ़कर एक नगीने जिन्हें सुनते ही जाने का मन किए जाए. लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ऐसी ही गायिका थीं और उन जैसा आज तक कोई हुआ ही नहीं. अपने दौर में उन्होंने एक से बढ़कर एक संगीतकार के साथ काम किया. जिसमें अनगिनत नाम शामिल हैं. इनमें एक हैं – लक्ष्मीकांत प्यारेलाल. जो लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) के साथ काम करने के लिए हर कोशिश में लगे रहे और उनके खूबसूरत गीतों को मधुर आवाज दी लता मंगेशकर ने. चूंकि इन्होंने मिलकर काम किया लिहाजा इन्होंने लता दीदी की जिंदगी को करीब से देखा.
लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) आज नहीं हैं लेकिन वो यही हैं, यही हैं और यही हैं. जब तक उनके सुरीले नगमे कानों में सुनाई देते रहेंगे तब तक यही कहा जाएगा कि वो हमारे बीच हैं. वैसे भी फनकार मरा नहीं करते बल्कि अपनी कला से वो हमेशा जिंदा रहते हैं. और जब कलाकार लता मंगेशकर हों तो फिर वो अमर बन जाते हैं.
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