मेरी हर रिकॉर्डिंग में नक्श लायलपुरी की खामोशी आज भी याद है: लता मंगेशकर
मुंबई: सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने मशहूर उर्दू शायर एवं फिल्म गीतकार नक्श लायलपुरी के निधन पर शोक जताते हुए कहा है कि उनकी सबसे पसंदीदा गजलों में से एक 'रस्म ए-उल्फत को निभाएं.' नक्श लायलपुरी ने ही लिखी थी. नक्श लायलपुरी (89) के नाम से लिखने वाले जसवंत राय शर्मा का निधन मुंबई के अंधेरी में बीती 22 जनवरी को हुआ. वह कुछ दिनों से बीमार थे.
लता मंगेशकर ने कहा, "मैं नक्श साहब की उतना नजदीक नहीं थी, जितना मजरूह सुल्तानपुरी साहब के थी. लेकिन, कई रिकार्डिग पर उनसे मुलाकात हुई थी. उन्होंने मेरे गाए कुछ सबसे खूबसूरत गीत लिखे थे. इनमें से तीन मेरे पसंदीदा हैं. एक सपन-जगमोहन के संगीत निर्देशन में 'उल्फत में जमाने की हर रस्म को ठुकराओ' (फिल्म कॉल गर्ल), जयदेव के संगीत निर्देशन में 'तुम्हें देखती हूं तो लगता है ऐसे जैसे युगों से तुम्हें जानती हूं' (फिल्म तुम्हारे लिए) और 'रस्म ए उल्फत को निभाएं तो निभाएं कैसे' (फिल्म दिल की राहें) हैं."
लता मंगेशकर ने कहा, "आज भी इन गीतों की रिकार्डिग याद है. शायरी अपनी खूबसूरती की वजह से दिल को थाम लेने वाली थी. गीत बेहद खूबसूरत रोमांटिक थे. शब्द सहज-सामान्य और भावपूर्ण थे. इतने सालों में मैंने निश्चित ही नक्श साहब के कई गीत गाए होंगे. मुझे याद है कि रिकार्डिग के दौरान वह खामोशी से बैठे मुझे गाते सुनते थे."
'रस्म ए उल्फत को निभाएं..' के बारे में लता मंगेशकर ने कहा कि बतौर गायिका यह उनके लिए सबसे ज्यादा मुश्किल भरे गीतों में से एक था. उन्होंने कहा, "यह बहुत मुश्किल था. क्या संगीत था, क्या लाइनें थीं! मैं कहूंगी कि उस गीत की खूबसूरती बढ़ाने में खुद मेरा योगदान बहुत कम ही था. मुझे याद नहीं है कि नक्श साहब का आखिरी गीत मैंने कब गाया, लेकिन हर रिकार्डिग में उनकी खामोश मौजूदगी मुझे आज भी याद है."
नक्श लायलपुरी का जन्म पंजाब के लायलपुर (अब पाकिस्तान) में हुआ था. वह फिल्म जगत में करियर बनाने के लिए 1940 के दशक में मुंबई आए थे. पहला गाना लिखने का मौका उन्हें 1952 में ही मिल गया था लेकिन सफलता उन्हें 1970 के दशक की शुरुआत में जाकर मिली.
मुंबई में अपने संघर्ष के दिनों में नक्श लायलपुरी ने डाक विभाग में भी कुछ दिन नौकरी की थी.