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फिल्मी करियर फ्लॉप हुआ तो ड्राई फ्रूट्स बेचने पर हुए मजबूर, फिर लीजेंड सिंगर मुकेश ऐसे बने ‘शोमैन’ राज कपूर की ‘रूह’

Mukesh Birth Anniversary: मुकेश सिर्फ एक सिंगर नहीं बल्कि एक ऐसे दिग्गज शख्स हैं, जिनकी दर्द भरी आवाज आज भी टूटे हुए दिलों पर मरहम का काम करती है. लोग आज भी उनके गाने पसंद करते हैं.

Mukesh Birth Anniversary: एक बार की बात है, जब दिग्गज सिंगर केएल सहगल ने जब पहली बार दिल जलता है तो जलने दो गाना सुना, तो वह यह पूछने पर मजबूर हो गए कि आखिर उन्होंने इस गाने को कब रिकॉर्ड किया था. अब केएल सहगल को फॉलो करने वाले मुकेश के लिए उस दौर में इससे ज्यादा तारीफ की क्या बात हो सकती थी.

जिस दौर में गाने की चाह रखने वाला हर शख्स केएल सहगल को फॉलो करता था, उस दौर में मुकेश भी कुछ अलग नहीं थे. केएल सहगल की नकल करके अपने सिंगिंग करियर की शुरुआत करने वाले मुकेश अपनी नेजल वॉइस और मेलोडियस गानों के लिए मशहूर थे. 

दूसरे केएल सहगल कहे जाते थे मुकेश
कहा जाता है कि मुकेश जो अपने समय के सबसे दिग्गज गायकों में से एक थे, वो किसी दौर में शायद दूसरे केएल सहगल बनना चाहते थे, लेकिन मुकेश बन गए. उनकी आवाज के लोग दीवाने थे. मुकेश की आवाज में दर्द और उदासी को बयां करने की एक अनूठी प्रतिभा थी, जिसने लोगों को बहुत प्रभावित किया था.

1976 में अपने निधन से कुछ महीने पहले, उन्होंने BBC हिंदी से कहा, ‘अगर मुझे 10 हल्के-फुल्के गाने और एक दुख भरा गीत मिले, तो मैं उन 10 गानों को उस एक दुख भरे गीत के लिए छोड़ दूंगा’. 


फिल्मी करियर फ्लॉप हुआ तो ड्राई फ्रूट्स बेचने पर हुए मजबूर, फिर लीजेंड सिंगर मुकेश ऐसे बने ‘शोमैन’ राज कपूर की ‘रूह’

एक्टर बनना चाहते थे मुकेश
कहते हैं कि मुकेश ने एक दौर में अभिनेता बनने का सपना देखा था, लेकिन वह सिंगर बन गए. दरअसल अभिनेता मोतीलाल ने अपनी बहन की शादी में मुकेश को गाते हुए सुना था. मुकेश के पिता एक बड़े बिजनेसमैन थे. वह चाहते थे कि मुकेश एक सम्मानजनक नौकरी करें और क्लर्क बनें.

दरअसल उस दौर में बड़े परिवार के बच्चों का फिल्मी दुनिया में आना अच्छा नहीं माना जाता था. लेकिन फिर भी केएल सहगल का जिक्र आते ही वह समझ गए कि शायद मुकेश कुछ अच्छा कर सकते हैं.

एक्टिंग करियर फ्लॉप हुआ तो बेचे ड्राई फ्रूट्स
तब 40 के दशक के बॉलीवुड में सिंगर और एक्टर का कॉम्बिनेशन एक आम बात हुआ करती थी. मुकेश के अच्छे लुक्स का फायदा उठाते हुए मोतीलाल ने उन्हें 1941 की फिल्म निर्दोष में नलिनी जयवंत के साथ रोल दिया.

दुर्भाग्य से फिल्म फ्लॉप रही और मुकेश के डेब्यू गाने, ‘दिल ही हो बुझा हुआ तो’ का भी यही हश्र हुआ. प्रोडक्शन हाउस के बंद होने के बाद मुकेश बेरोजगारी की कगार पर आ गए.

बीबीसी हिंदी को दिए एक इंटरव्यू में मुकेश ने कहा था, ‘इसके बाद, मैं शेयर ब्रोकर, ड्राई-फ़्रूट बेचने वाला बन गया था और एक के बाद एक कई काम किए, क्योंकि उस दौर में प्लेबैक सिंगिंग एक प्रोफेशन के रूप में 1942 तक अस्तित्व में ही नहीं था. 

टूटे दिलों के लिए मरहम हैं मुकेश के गाने
मुकेश ने फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन का काम भी किया, लेकिन जब यह भी सफल नहीं हुआ तो उन्होंने सिंगिंग पर फिर से ध्यान देना शुरू किया. मुकेश को एक सिंगर बनना था, जिसे उनके जाने के दशकों बाद भी याद किया जाए.

भले ही उनके पास मोहम्मद रफी, तलत महमूद, किशोर या मन्ना डे जैसी क्लासिकल ट्रेनिंग नहीं ली थी या आवाज वैसी न हो, लेकिन वे अपने गीतों के जरिए दर्द को व्यक्त करने के तरीके से सुनने वालों के दिलों को छू सकते थे.

जब उन्होंने ‘दिल जलता है तो जलने दे’ गाया तो इस गाने ने टूटे दिलों के लिए मरहम का काम किया और सेंसेशनल बन गया. यह कई हफ्तों तक गूंजता रहा और एक क्लासिक गाना बन गया. इसके बाद उन्होंने एक से बढ़कर एक बेहतरीन गाने गाए. 

 
 
 
 
 
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मुकेश ऐसे बने राज कपूर की ‘रूह’
मुकेश के बेटे नितिन मुकेश से जब पूछा गया कि आखिर उनकी आवाज में यह दर्द कहा से आया तो उनका कहना था कि यह उनकी अपना टैलेंट है. मुकेश ने दिलीप कुमार और मनोज कुमार के लिए सबसे ज्यादा गाने गाए, लेकिन राज कपूर ने ही उन्हें सही मायने में स्टार बनाया.

मुकेश और राज कपूर के सहयोग से एक नए दौर का जन्म हुआ. उनकी पार्टनरशिप आग (1948) से शुरू हुई, जब मुकेश ने राज कपूर के लिए ‘ज़िंदा हूं इस तरह’ गाना गाया.  जब राज कपूर ने मुकेश को सुना तो उन्होंने उनसे कहा, ‘अब तुम सिर्फ मेरे लिए गाओगे.’

राज कपूर मुकेश से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने घोषणा कर दी थी कि ‘मैं तो सिर्फ एक जिस्म हूं, हाड़-मांस का पुतला हूं, रूह अगर कोई है मुझमें तो वो मुकेश हैं’. और इस तरह मुकेश राज कपूर की आवाज बन गए. 

यह भी पढ़ें: कभी स्टूडियो के बाहर अखबार बिछाकर सोते थे ‘मिर्जापुर’ के ‘शरद शुक्ला’, ऐसी चमकी किस्मत कि पहली ही फिल्म ने जीते 8 ऑस्कर

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