स्टार कास्ट- रवीना टंडन, मधुर मित्तल, अलीशा खान, दिव्या जगडले, अनुराग अरोरा, रूशद राना
डायरेक्टर- अशतर सैयद
रेटिंग- **


निर्भया रेप केस को दिल्ली भूली नहीं है और ना ही कभी भूल पाएगी. 'निर्भया' का नाम सुनते ही दिलों-दिमाग में  वो तस्वीर आ जाती है, खून खौलने लगता है और हर शख्स सोचने को मजबूर हो जाता है. कुछ इसी तरह के मुद्दे पर ये फिल्म भी बनी है जिसमें मां और बेटी का गैंगरेप करने के बाद उन्हें सड़क पर फेंक दिया जाता है. लेकिन इसे देखते समय इतने गंभीर मुद्दे पर बनी ये फिल्म  दर्शक के दिमाग में वो गुस्सा, दर्द और उबाल नहीं भर पाती है.


ये फिल्म ऐसे ज्वलंत मुद्दे पर बनी है जिसे बेहतरीन बनाने की बहुत संभावनाएं हैं लेकिन शायद डायरेक्टर को पता ही नहीं था कि वास्तव में वो क्या दिखाना चाहते हैं. फिल्म दिल्ली बेस्ड है जिसमें मां के सामने ही बेटी का रेप मुख्यमंत्री के बेटे और उसके दोस्त करते हैं. बेटी की मौत हो जाती है और फिर इंसाफ के लिए मां क्या रास्ता चुनती है. यही पूरी कहानी है.




फिल्म की सबसे बड़ी खामी ये है कि देखते वक्त दर्शक को पहले ही पता चल जाता है कि आगे क्या होने वाला है. एक घंटे 53 मिनट की ये फिल्म शुरू होने के आधे घंटे बाद ही बोझिल लगने लगती है.


कमियां


फिल्म में कई सारे बिखरे हुए मुद्दे हैं. पहला है कि अगर किसी रेप केस में हाई प्रोफाइल आरोपी हो तो फिर विक्टिम के साथ पुलिस कैसे सलूक करती है. इसे भी प्रभावशाली ढंग से नहीं प्रस्तुत किया गया है. जो थोड़े बहुत इसके डायलॉग हैं वो भी हम बहुत बार सुन चुके हैं. दूसरा है, कि औरतों के बार साधारणत: लोग यही सोचते हैं कि औरत ऐसा कर ही नहीं सकती. इतने गंभीर मुद्दे को इतने हल्के फुल्के से इस फिल्म में दिखाया जाता है कि दर्शक के मन में कोई भाव उत्पन्न नहीं होते.


इस फिल्म में दिखाया गया है कि जब एक मां को इंसाफ नहीं मिलता है तो वो खुद ही निकल पड़ती है अपनी बेटी के दोषियों को सजा देने के लिए... वो एक-एक करके बदला लेती है. लेकिन जिस तरीके से ये सब दिखाया गया है वो बिल्कुल वास्विक नहीं लगता जबकि जरूरत से ज्यादा नाटकीय लगता है. पुलिस को भी पता है कि ऐसा उसी ने किया है लेकिन सबूत नहीं होने के कारण कुछ नहीं कर पाती है. पुलिस इस अपराधबोध में जीती है कि जिस महिला को हम इंसाफ नहीं दे पाए उससे सवाल कैसे करें.



इस फिल्म के डायरेक्टर अशतर सैयद हैं जो इससे पहले भी इसी मुद्दे पर एक फिल्म बना चुके हैं. 2002 में अशतर ने फिल्म 'बिजुका' बनाई थी जिसमें उन्होंने गैंगरेप विक्टिम की कहानी को पर्दे पर जीवंत किया था. लेकिन इस फिल्म में शायद कई चीजें दिखाने की वजह से वो एक को भी सही से नहीं उतार पाए हैं. फिल्म में कई सारे ऐसे सीन हैं जो किसी ड्रामे से कम नहीं लगते.


अभिनय


फिल्म में मां की भूमिका में रवीना टंडन हैं और उन्होंने अपना हिस्सा बहुत ही अच्छा किया है. लेकिन यहां सवाल ये है कि जब फिल्म की कहानी ही कन्फ्यूजिंग हो तो एक्टर बेहतरीन एक्टिंग करके भी क्या कर लेगा.


फिल्म में मधुर मित्तल ने अच्छी अदाकारी दिखाई है. निगेटिव किरदार में उन्होंने इतनी जान भर दी है कि एक पल के लिए दिमाग में उनकी ऐसी ही छवि उतर जाती है. इसके पहले भी मधुर ऐसी ही एक फिल्म में तारीफ बटोर चुके हैं और फिल्म 'स्लमडॉग मिलनेलियर' है जिसमें उन्होंने सलीम की भूमिका निभाई थी. इसके अलावा बाकी किरदारों ने भी अच्छा किया है लेकिन फिल्म कसी हुई नहीं है इसलिए बोर करती है.


क्यों देखें


अगर आप बहुत दिनों से रवीना टंडन को बड़े पर्दे पर देखना चाहते हैं तो उनके लिए ये फिल्म देख सकते हैं. लेकिन अगर आप उनके फैन नहीं हैं तो ये फिल्म बहुत ही बोझिल है जिस पर समय और पैसा दोनों ही नहीं बर्बाद किया जा सकता.


यहां देखें- इस फिल्म का ट्रेलर