दर्द से भरे थे मधुबाला के आखिरी साल, शरीर में बच गई थीं सिर्फ हड्डी और खाल, रोते हुए कहती थीं – ‘मुझे नहीं मरना’
1954 में मधुबाला (Madhubala) की इस बीमारी के बारे में पता चला था. उस वक्त उन्हें खून की उल्टियां आने लगी थीं उन्हें आराम करने की सलाह दी गई लेकिन वो काम करती रहीं.
अगर हिंदी सिनेमा खूबसूरत है तो उसे खूबसूरत बनाने वाली थीं मधुबाला (Madhubala)...जितना खूबसूरत नाम उतना ही खूबसूरत था इनका अक्स. जिसे कोई देखता तो बस देखता ही रह जाता. आज भी मधुबाला (Madhubala) को हिंदी सिनेमा की सबसे हसीन एक्ट्रेस में गिना जाता है. लेकिन जितना उम्दा इनका करियर रहा उतने ही दर्द और दुख भरे थे इनके आखिरी साल. जब अपनी जिंदगी के 9 साल मधुबाला ने सिर्फ बिस्तर पर कराहते हुए काटे.
मधुबाला के दिल में था छेद
1954 में मधुबाला (Madhubala) की इस बीमारी के बारे में पता चला था. उस वक्त वो मद्रास में थीं और फिल्म चालाक की शूटिंग कर रही थीं. उस वक्त उन्हें खून की उल्टियां आने लगी थीं उन्हें आराम करने की सलाह दी गई लेकिन वो काम करती रहीं. मुगल ए आज़म की शूटिंग के दौरान उनकी तबीयत सबसे ज्यादा बिगड़ी. खासतौर से जेल के सीन शूट करने के दौरान. उस वक्त मधुबाला को लोहे की जंजीरों से बांधा जाता था और जब शाम को उनके हाथ खुलते तो उनका रंग नीला पड़ चुका होता था. जेल के सीन में कमजोर और बेबस दिखने के लिए मधुबाला खाना तक छोड़ देती थीं. यही कारण था कि इस फिल्म के शूटिंग के बाद तो मधुबाला की हालत दिन ब दिन खराब ही होती गई.
घर आकर डॉक्टर निकालते थे खून
मधुबाला (Madhubala) का शरीर उस वक्त कई बीमारियों से घिरता ही जा रहा था. उनके शरीर में खून की मात्रा ज्यादा होने लगी थी. नतीजा डॉक्टर घर आते और शरीर से खून निकालते. आखिरी के साल तो और भी दर्द से भर गए. वो हर समय खांसती रहतीं. उन्हें ऑक्सीजन ना दी जाती तो सांस फूलने लगी. दर्द से सारा दिन वो कराहती रहतीं. ऐसे उन्होंने 9 साल बिस्तर पर हीर निकाल दिए. वो भी बेहद कम उम्र में. वो सब कुछ सहतीं लेकिन रोती भी रहतीं और रोते-रोते कहतीं मुझे नहीं मरना. उस वक्त उनके शरीर में कुछ बचा था तो वो थीं बस हड्डियां और खाल.
36 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा
जब मधुबाला ने 23 फरवरी 1969 को आखिरी सांस ली तब वो महज 36 साल की थीं. यानि अपनी जिंदगी के ज्यादातर हसीन पल उन्होंने बिस्तर पर ही गुजार दिए और शायद हर पल उन्हें इसी बात का ग़म खाए जाता था. मधुबाला जैसा फिर ना कोई हुआ और ना शायद ना को होगा.
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