Maidaan Movie Review: फुटबॉल दुनिया के सबसे ज्यादा देशों में खेला जाने वाला गेम है और इसकी गिनती दुनिया के सबसे पसंदीदा खेलों में की जाती है. मगर दशकों से भारत में फुटबॉल की क्या हालत और हैसियत है? दुनिया के फुटबॉल के विश्व मानचित्र पर हम कहां ठहरते हैं? ये किसी से छिपा नहीं है. ऐसे में कोई भारतीय फुटबॉल के स्वर्णिम दौर की बात करे तो किसी को भी आश्चर्य हो सकता है क्योंकि ऐसे किसी दौर के बारे में हममें से ज्यादातर लोगों ने सुना ही नहीं होगा. भारत को फुटबॉल के ऐसे ही दौर में पहुंचाने वाले भारतीय फुटबॉल कोच सैयद अब्दुल रहीम पर आधारित है फिल्म 'मैदान' जो कि एक दिलचस्प और रोमांचक स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म है.
सैयद अब्दुल रहीम की कहानी है 'मैदान'
उल्लेखनीय है कि 50 और 60 के दशक में भारतीय फुटबॉल टीम को कोच करने वाले सैयद अब्दुल रहीम को भारतीय फुटबॉल टीम का अब तक का सबसे सफल कोच माना जाता है. 50 के दशक में ओलिम्पिक्स में टीम के बेहतर प्रदर्शन और 1962 में एशियन गेम्स में भारत को चैम्पियन बनाने का श्रेय सैयद अब्दुल करीम को दिया जाता है. तंगहाली, प्रशासन की उपेक्षा और बढ़िया खिलाड़ियों के अभाव से जूझ रही भारतीय फुटबॉल टीम को एक बेहतरीन टीम में तब्दील करने का सपना कोई जुनूनी शख्स ही देख सकता है. सैय्यद अब्दुल करीम ऐसे ही एक जुनूनी शख्स का नाम था और उन्हीं के साहसी सपने को 'मैदान' में बढ़िया ढंग से कैप्चर किया है डायरेक्टर अमित शर्मा ने.
जोश भरी कमेंटरी फिल्म को बनाती है रोचक
एक स्पोर्ट्स के तौर पर 90 मिनट के तेजरफ्तार गेम फुटबॉल को खेलना हर किसी के बस की बात नहीं है. फुटबॉल को सेंटर में रखकर उस पर एक रोमांचक फिल्म बनाना उससे भी फुटबॉल खेलने से भी ज्यादा मुश्क़िल काम है. मगर डायरेक्टर अमित शर्मा ने एक देखने लायक फिल्म बनाई है. खिलाड़ियों द्वारा फिल्म के मैदान पर दिखाए जाने वाले जज्बे के साथ-साथ फुटबॉल मैचों के दौरान ऑल इंडिया रेडियो के लिए एक्टर विजय मौर्य और अभिषेक थपियाल द्वारा लगातार ढंग से हिंदी में की जानेवाली जोश भरी कमेंटरी फिल्म को और भी रोचक बनाती है.
फिल्म का सेकंड हाफ है शानदार
'बधाई हो' जैसी अलहदा किस्म की, बेहद चर्चित और सुपरहिट फिल्म बना चुके डायरेक्टर अमित शर्मा के निर्देशन में बनी 'मैदान' का फर्स्ट हाफ साधारण और नाटकीय सा लग सकता है लेकिन फिल्म के सेकंड हाफ में जिस ढंग से विपरीत हालात में फुटबॉल मैचों और मैदान पर खिलाड़ियों के संघर्ष को पेश गया है, वो इस फिल्म को रोमांच के एक ही अलग मकाम पर ले जाता है. फेफड़ों का कैंसर होने के बावजूद 1962 के एशियन गेम्स में भारत को विजेता बनाने की कोच सैयद अब्दुल करीम की जुनूनी कोशिश फिल्म खत्म होते होते दिल को छू जाती है.
कैसी है स्टार्स की एक्टिंग?
अजय देवगन ने फुटबॉल कोच सैयद अब्दुल रहीम के किरदार को जिस तरीके से निभाया है उस परफॊर्मेंस को असाधारण या लाजवाब की श्रेणी में तो नहीं रखा जा सकता है मगर ये जरूर कहा जा सकता है कि वे इस किरदार को संजीदा ढंग से निभा ले जाते हैं. कोच सैयद अब्दुल रहीम की अंग्रेजी सीखने की कोशिश करने वाली पत्नी के तौर पर प्रिया मणि और भारतीय फुटबॉल टीम के खिलाफ साजिश करने वाले एक स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट के रूप में गजराव राव ने भी अच्छा काम किया है. फुटबॉल खिलाड़ियों के तौर पर चुने गये तमाम एक्टर्स का चयन भी बढ़िया ढंग से किया गया है जो अपने ऑन और ऑफ फील्ड परफॉर्मेंस से फिल्म में जान डाल देते हैं.
कैसा है म्यूजिक?
50 और 60 के दशक में दौर को रिक्रिएट करने और फुटबॉल मैचों के दौरान लोगों से खचाखच भरे स्टेडियम में उत्साहपूर्ण माहौल को दर्शाने के लिए जिस तरह से वीएफएक्स का इस्तेमाल किया गया है वो काबिल-ए-तारीफ कहा जा सकता है. ए. आर. रहमान का संगीत और मनोज मुंतशिर शुक्ला के लिखे गानों के बोल फिल्म के लिहाज ठीक-ठाक हैं. इन सभी में फिल्म ने एन्थम सॉन्ग के रूप में इस्तेमाल 'टीम इंडिया हैं हम' गाना सबसे कैची है और इसे बेहतरीन ढंग से फिल्म में पेश किया गया है.
स्पोर्ट्स बॉडीज की खामियों सहित कई समस्याएं करती है उजागर
गौरतलब है कि फुटबॉल को गवर्न करने वाली स्पोर्ट्स बॉडीज की खामियों से लेकर खेल से जुड़ी (गंदी) राजनीति तक ऐसी कई वजहें हैं जिससे भारत में फ़ुटबॉल की पुरानी दुर्दशा आज भी बरकरार है. मगर फिल्म 'मैदान' में इन सभी सवालों की गहराई से पड़ताल नहीं करती है. अगर फिल्म में भारत के स्पोर्ट्स कल्चर की खामियों पर भी रौशनी डाली जाती तो यह एक लाजवाब फिल्म बन सकती थी.
खैर, इस बात में कोई शक नहीं है कि 'मैदान' में सैय्यद अब्दुल रहीम की निजी और पेशेवर जिंदगी को नाटकीय तो कई जगहों पर सरलीकृत तरीके से पेश किया गया है. मगर 'मैदान' मेनस्ट्रीम हिंदी सिनेमा में बनाई जाने वाली स्पोर्ट्स फिल्मों के लिहाज से एक रोमांचक फिल्म जरूर है, जिसका रोमांच बड़े पर्दे पर महसूस किया जाना चाहिए.