स्टारकास्ट: कंगना रनौत, अंकिता लोखंडे, अतुल कुलकर्णी


डायरेक्टर: कृष, कंगना रनौत


रेटिंग: 2.5/5 स्टार


कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी, लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी. नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी, बरछी-ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी. वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी. 


रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और साहस के लिए लिखी गईं सुभद्रा कुमारी चौहान की ये लाइनें हम जब भी सुनते हैं देशभक्ति के जज्बात उमड़ने लगते हैं. रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी जान दे दी लेकिन कभी अंग्रेजी हुकूमत के सामने कभी अपना सिर नहीं झुकाया. उन्हीं पर बनी फिल्म है 'मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी' जिसमें अभिनेत्री कंगना रनौत ने लक्ष्मीबाई का किरदार निभाया है. क्या इस फिल्म के जरिए रानी लक्ष्मीबाई को पर्दे पर जीवंत किया जा सका है? एक्टिंग कैसी है? कहानी वही है या फिर कुछ बदलाव हुआ है? कैसी है ये फिल्म? आइए जानते हैं-




  • 'मणिकर्णिका' फिल्म देखने के बाद ये कहा जा सकता है कि कंगना रनौत से बेहतर रानी लक्ष्मीबाई के किरदार को कोई नहीं निभा सकता था. उनकी स्क्रीन प्रेजेंस कमाल की है. एक वीरांगना के रुप में कंगना की चाल-ढ़ाल, डायलॉग डिलीवरी और चेहरे के भाव सब कुछ शानदार का है. कंगना की पर्सनालिटी भी बहुत ही बिंदास है जिससे उन्होंने इस किरदार में जान भर दी है. वो जब पर्दे पर आती हैं तो बाकी सभी किरदारों को अपनी प्रेजेंस से निगल जाती हैं. वो इतनी कमाल हैं कि कोई और नज़र नहीं आता.

  • लेकिन क्या सिर्फ एक्टिंग की बदौलत एक बेहतर फिल्म बनाई जा सकती है? नहीं. उसके लिए एक दमदार कहानी, वजनदार डायलॉग्स, डायरेक्टर का विजन और किरदार में फिट बैठने वाले कलाकारों की जरुरत होती है. ये सब इस फिल्म में नहीं है. कंगना के अलावा इस फिल्म के हर किरदार को देखकर लगता है कि गलत कास्टिंग की गई है.


फिल्म खत्म होने के बाद सबसे ज्यादा ये बात खलती है कि इसमें ऐतिहासिक तथ्यों को भी बदला गया है. वो बातें भी ऐसी हैं जो दर्शकों के लिए हजम कर पाना थोड़ा मुश्किल है.


कहानी

फिल्म में लक्ष्मी बाई की कहानी बहुत विस्तार से दिखाई गई है. फर्स्ट हाफ में बचपन और शादी पर फोकस किया गया है तो सेकेंड हाफ में अद्बभुत वीरता का परिचय दिया गया है. कुछ बातों को छोड़कर कहानी वही है जो सभी लोग जानते हैं. लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से लोग उन्हें मनु बुलाते थे. 4 साल की उम्र में ही मणिकर्णिका मां और पिता के साथ बिठूर चली गई थीं और वहीं पर पेशवा बाजीराव (सुरेश ओबेरॉय) के दत्तक पुत्र नानासाहेब के साथ खेलते कूदते उनका बचपन बीता. उनके हुनर और साहस को देखकर झांसी के राजा गंगाधर राव (जेसू सेनगुप्ता) से उनकी शादी हुई.



लक्ष्मीबाई ने एक बेटे को जन्म दिया, लेकिन उसकी मृत्यु हो गई. कुछ समय बाद गंगाधर राव और लक्ष्मीबाई ने दत्त पुत्र गोद लिया. 1853 में राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई और उसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने विधवा बनकर काशी चले जाने की बजाय सत्ता संभालने का जिम्मा उठाया. ये बात अंग्रेजो को चुभी. झांसी को बचाने के लिए लक्ष्मीबाई लड़ी बाद में उन्हें किला छोड़ना पड़ा. वो काल्पी में रहीं और फिर ग्वालियर के किले पर कब्जा किया. यहां पर लक्ष्मीबाई ने पहले अंग्रेजो पर हमला करने की रणनीति बनाई. यहीं, लड़ाई के दौरान वो वीरगति को प्राप्त हुईं.




  • इसके डायलॉग्स भी प्रसून जोशी ने लिखे हैं. अभी बॉलीवुड में वन लाइनर डायलॉग का जमाना है लेकिन यहां भरपूर कोशिश के बावजूद नाकामी हाथ लगी है. रानी लक्ष्मीबाई के वन लाइनर डायलॉग बहुत हल्के लगते हैं और प्रभावित नहीं करते.

  • फिल्म के कुछ सीन को लेकर विवाद हो रहा था लेकिन इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपत्तिजनक हो. ये फिल्म डायरेक्शन को लेकर भी विवादों में रही है. कृष ने फिल्म को  बीच में छोड़ दी थी उसके बाद कंगना इसकी 'एक्सिडेंटल डायरेक्टर' बनीं. ऐसा वो खुद ही कहती हैं. डायरेक्टर का अपना विजन होता है कि वो फिल्म को पर्दे पर किस तरह पेश करना चाहता है. एक्टिंग के मामले में कंगना का तोड़ नहीं लेकिन डायरेक्शन में वो मात खा गई हैं. पूरी फिल्म फ्लो में नहीं लगती है. ऐसा लगता है कि लक्ष्मीबाई की ज़िंदगी की अलग-अलग कहांनियों को एक जगह बस रख दिया गया है.

  • कंगना और अंकिता की तलवार बाजी जमती है. कंगना के हिस्से जो युद्ध के सीन हैं वो काफी दमदार हैं.

  • लक्ष्मीबाई और गंगाधर के रोमांस को काफी जगह दी गई है लेकिन ये जोड़ी जमती नहीं है. कभी-कभी इस वजह से बहुत बनावटी पन लगता है. इसके अलावा बहुत से ऐसे सीन हैं जो आपको अतिनाटकीय लगते हैं.

  • इस फिल्म में सभी एक्टर्स वही लिए गए हैं जिन्हें उनकी एक्टिंग के लिए सराहा जाता है. सदाशिव की भूमिका में ज़ीशान अयूब हैं, तात्या टोपे का किरदार अतुल कुलकर्णी ने निभाया है. कोई भी एक्टर कंगना के सामने अपनी मौजूदगी नहीं दर्ज करा पाया है. झलकारी बाई के किरदार में अंकिता लोखंडे हैं लेकिन उन्हें फिल्म में जगह नहीं मिली है.


ऐसी फिल्मों के लिए म्यूजिक भी बहुत अहम हिस्सा होता है जो दर्शकों में भाव जगा सके. लेकिन यहां वो भी कुछ खास नहीं है. इस फिल्म के लिए साउंड ट्रैक शंकर-एहसान-लॉय ने कंपोज किया है और फिल्म के गाने प्रसून जोशी ने लिखे हैं. 'भारत' और 'कब प्रतिकार करोगे' जैसे दमदार लिरिक्स वाले गाने भी देशभक्ति से ओत प्रोत नहीं कर पाते.




  • ये फिल्म करीब तीन घंटे (2 घंटे 53 मिनट) की है. ना तो फिल्म की कहानी बांधकर रख पाती है और ना ही फ्लो ऐसा है कि लोग उसमें डूब जाएं. इतनी कमियों के बाद इस कदर लंबी फिल्म को देखना बहुत खलता है.


 क्यों देखें/ना देखें


फिल्म लक्ष्मीबाई पर बनी है तो उनके सम्मान में आप इसे देख सकते हैं लेकिन कोई उम्मीद लेकर सिनेमाहॉल ना जाएं. फिल्म बहुत लाउड है और ये ना तो जोश दिलाती है और ना ही देशप्रेम जगा पाती है. हां, आप इसे कंगना की बेहतरीन अदाकारी के लिए भी देख सकते हैं.