गरीब किसान का बेटा कैसा बना बॉलीवुड स्टार? रोंगटे खड़े कर देगी मनोज बाजपेयी की कहानी
Manoj Bajpayee: बॉलीवुड के मोस्ट टैलेंटेड और वर्सेटाइल एक्टर मनोज बाजपेयी आज इंडस्ट्री पर राज करते हैं. हालांकि किसान के बेटे मनोज के लिए ये मुकाम हासिल करना इतना आसान नहीं था.
Manoj Bajpayee Career: मनोज बाजपेयी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में टैलेंट के पावर हाउस हैं. अपने तीन दशक के करियर में एक्टर ने तमाम शानदार फिल्में की हैं और अपनी जबरदस्त अदाकारी से हर किसी का दिल जीता है. मनोज बाजपेयी का डंका बॉलीवुड से लेकर ओटीटी पर खूब बजता है. चलिए आज जानते हैं कैसे किसान के बेटे मनोज बाजपेयी ने बॉलीवुड स्टार बनने तक का सफर तय किया.
बचपन से एक्टर बनना चाहते थे मनोज
मनोज बाजपेयी का जन्म 23 अप्रैल 1969 को बिहार के वेस्ट चंपारण के बेलवा गांव में हुआ था. उनके पिता किसान थे. मनोज बचपन से ही अभिनेता बनने की ख्वाहिश रखते थे. उनके माता-पिता ने उनका नाम गुजरे जमाने के सुपरस्टार मनोज कुमार के नाम पर रखा था.
ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे के साथ बातचीत में, मनोज ने कहा था कि वह नौ साल की उम्र से ही एक्टर बनने का सपना देखने लगे थे. उन्होंने कहा था, “मैं एक किसान का बेटा हूं, मैं 5 भाई-बहनों के साथ बिहार के एक गाँव में पला-बढ़ा हूं. हम एक झोपड़ी वाले स्कूल में पढ़ते थे. हम सादा जीवन जीते थे, लेकिन जब भी हम शहर जाते थे, थिएटर जाते थे. मैं बच्चन का फैन था और उनके जैसा बनना चाहता था. 9 साल की उम्र में मुझे पता चल गया था कि अभिनय ही मेरी किस्मत है."
एनएसडी में रिजेक्ट होने पर सुसाइड की कोशिश की थी
मनोज ने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई बिहार से ही की और इसके अपने एक्टर बनने का सपना पूरा करने के लिए वो 17 साल की उम्र में दिल्ली चले आए थे. यहां उन्होंने तीन बार नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लेने की कोशिश की लेकिन तीनों बार उन्हें असफलता ही हाथ लगी. इसके बाद वे इतना डिप्रेशन में चले गए थे कि उन्होंने आत्महत्या तक की कोशिश की थी.हालांकि उनके दोस्तों ने उन्हें उनके बुरे दौर से बाहर निकाला.
इस बारे में मनोज ने कहा था, "मैं एक आउटसाइडर था, इसमें फिट होने की कोशिश कर रहा था. इसलिए, मैंने खुद को अंग्रेजी और हिंदी सिखाई-भोजपुरी मेरे बोलने के तरीके का एक बड़ा हिस्सा थी. फिर मैंने एनएसडी में आवेदन किया, लेकिन तीन बार खारिज कर दिया गया. मैं आत्महत्या करने के करीब था, इसलिए मेरे दोस्त मेरे बगल में सोते थे और मुझे अकेला नहीं छोड़ते थे. उन्होंने मुझे तब तक रोके रखा जब तक मुझे स्वीकार नहीं कर लिया गया."
मुंबई में किया खूब स्ट्रगल और झेले रिजेक्शन
मुंबई जाने के बाद, मनोज को रिजेक्शन और संघर्षों का सामना करना पड़ा. ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे को दिए इंटरव्यू में मनोज ने इस बारे में कहा था कि, “शुरुआत में, यह कठिन था - मैंने 5 दोस्तों के साथ एक चॉल किराए पर लिया और काम की तलाश की, लेकिन कोई भूमिका नहीं मिली. एक बार, एक AD ने मेरी फ़ोटो हटा दी और मैंने एक दिन में 3 प्रोजेक्ट खो दिए. यहां तक कि मुझे मेरे पहले शॉट के बाद 'बाहर निकल जाने' के लिए भी कहा गया. मैं आदर्श 'हीरो' के चेहरे पर फिट नहीं बैठता, इसलिए उन्होंने सोचा कि मैं कभी भी बड़े पर्दे पर नहीं आ पाऊंगा. पूरे समय, मुझे किराया जुटाने के लिए संघर्ष करना पड़ा और कभी-कभी एक वड़ा पाव भी महंगा पड़ता था.''
मनोज ने हार नहीं मानी
रिजेक्शन के बावजूद भी मनोज ने हार नहीं मानी. उन्होंने कहा था, "लेकिन मेरे पेट की भूख मेरी भूख को सफल होने से नहीं रोक सकी. 4 साल के संघर्ष के बाद मुझे महेश भट्ट की टीवी सीरीज में रोल मिला. मुझे प्रति एपिसोड 1500 रुपये मिले, ये मेरी पहली स्थिर इनकम थी. मेरे काम को नोटिस किया गया और मुझे मेरी पहली बॉलीवुड फिल्म ऑफर हुई और जल्द ही, मुझे 'सत्या' से बड़ा ब्रेक मिला.''
'सत्या' से मिली इंडस्ट्री में पहचान
राम गोपाल वर्मा द्वारा निर्देशित क्राइम ड्रामा सत्या में मनोज ने भीकू म्हात्रे नाम के एक गैंगस्टर की भूमिका निभाई और इस परफॉर्मेंस के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. इस फिल्म की सफलता के बाद मनोज ने फिर पीछे मुडकर नहीं देखा. मनोज ने कहा था, "तभी पुरस्कार मिलने लगे. मैंने अपना पहला घर खरीदा और जानता था...मैं यहां रहने के लिए आया हूं. 67 फ़िल्मों के बाद, मैं यहां हूं, सपनों के बारे में यही बात है - जब उन्हें हकीकत में बदलने की बात आती है, तो कठिनाइयां मायने नहीं रखतीं. उन्होंने कहा, ''महत्वपूर्ण बात उस 9 वर्षीय बिहारी लड़के का विश्वास है और कुछ नहीं.''
मनोज बाजपेयी को मिल चुके हैं तमाम पुरस्कार
2004 की फिल्म पिंजर में उनके प्रदर्शन के लिए मनोज ने अपना दूसरा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता. पीरियड ड्रामा फिल्म का निर्देशन चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने किया था और इसमें उर्मिला मातोंडकर, संजय सूरी, कुलभूषण खरबंदा और ईशा कोप्पिकर ने भी अभिनय किया था. बाद में, वह राजनीति, अलीगढ़, आरक्षण, स्वामी, स्पेशल 26 और शूटआउट एट वडाला जैसी कई बड़ी हिट फिल्मों में दिखाई दिए. निर्देशक अनुराग कश्यप की 2012 की रिलीज गैंग्स ऑफ़ वासेपुर में मनोज की परफॉर्मेंस की खूब तारीफ हुई और इसके लिए भी उन्हें कई पुरस्कार मिले. 2021 में, उन्होंने फिल्म भोंसले में अपने प्रदर्शन के लिए अपना तीसरा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता।
सिर्फ फिल्में ही नहीं, उन्होंने द फैमिली मैन, किलर सूप और रे जैसी वेब सीरीज में अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया है.
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