न गाड़ी है न ऑफिस, बर्बाद हुए मनोज बाजपेयी की 'जोरम' के डायरेक्टर देवाशीष मखीजा! किराया देने तक के पैसे नहीं
Devashish Makhija Troubled By Financial: फिल्म 'जोरम' के डायरेक्टर देवाशीष मखीजा इन दिनों आर्थिक परेशानी का सामना कर रहे हैं. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि न ही उनके पास गाड़ी है और न ही कोई ऑफिस.
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Devashish Makhija Troubled By Financia: मनोज बाजपेयी की साल 2023 में आई फिल्म 'जोरम' के डायरेक्टर देवाशीष मखीजा इन दिनों बेहद आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. वे बस नाम के डायरेक्टर रह गए हैं. वे आज बड़े मुश्किल दिनों से लड़ रहे हैं. न ही उनके पास ऑफिस है न ही कोई टू व्हीलर और न ही कोई कार.
देवाशीष मखीजा के पास खुद का ऑफिस तक नहीं है. न ही उनके पास किराये देने तक के पैसे है. बॉलीवुड डायरेक्टर ने हाल ही में अपने इन हालातों को लेकर बात की है. उन्होंने बताया कि उन्हें नहीं पता कि अगले महीने वे अपने कुक को पैसे दे पाएंगे या नहीं.
मेरे पास कोई ऑफिस नहीं है
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हाल ही में देवाशीष ने 'लॉन्ग लिव सिनेमा' यूट्यूब चैनल को एक इंटरव्यू दिया. इस दौरान उन्होंने बताया कि, 'आज भी जब मैं किसी एक्टर या किसी और को मिलने के लिए बुलाता हूं तो वे पूछते हैं- आपका ऑफिस कहां है? और मैं कहता हूं- मेरे पास कोई ऑफिस नहीं है. इसलिए आप मुझे बताएं कि आप कहां हैं या हम एक कॉफी शॉप में मिलेंगे और मैं आपको बताऊंगा कि कौन सी कॉफी शॉप है, क्योंकि मैं वर्सोवा की ज्यादातर कॉफी शॉप का खर्च नहीं उठा सकता. मैं अभी भी उसी जगह पर हूं'.
न मेरे पास कार है न टू व्हीलर
देवाशीष ने आगे बताया कि उनके पास न ही कार है और न ही टू व्हीलर. उन्होंने कहा कि, 'मुझे स्टूडियो में मीटिंग के लिए बुलाया जाता है और मुझे कॉल करने वाला एग्जीक्यूटिव मुझे बताता है कि मुझे अपनी कार कहां पार्क करनी है. मैं कहता हूं- मेरे पास कार नहीं है. मेरे पास तू व्हीलर भी नहीं है. इसलिए वे मुझसे पूछते हैं कि मैं कैसे आऊंगा और मैं उन्हें बताता हूं कि मैं ऑटो से आऊंगा, या अगर यह दूर है, तो बस से. जैसे ही मैं उन मीटिंग में जाता हूं, वे मुझे ऑटो और बस से ट्रैवल करने वाले व्यक्ति के रूप में सोचते हैं, इसलिए वे मुझसे उसी तरह बात करते हैं. 20 साल और 4 फीचर फिल्मों में मेरे लिए यह नहीं बदला है.'
मखीजा ने माना कि उन्हें फिल्म 'जोरम' ने फाइनेंशियली बर्बाद कर दिया है. डायरेक्टर आगे कहते हैं कि, 'मैंने इस फैक्ट को मान लिया है कि यह मेरे जीवन के बाकी हिस्सों में नहीं बदलने वाला है तो क्या मुझे तब बदलना चाहिए? मुझे नहीं पता कि मैं अगले महीने अपने रसोइए को पैसे दे पाऊंगा या नहीं, ये सभी बातें मेरे दिमाग में घूम रही हैं...मेरी असुरक्षाएं हकीकत हैं और वे इस हद तक बढ़ गई हैं कि इसके नतीजे कल ही महसूस किए जाएंगे, दो साल बाद नहीं. मुझे काम करते रहना है, क्योंकि मुझे नहीं पता कि अगला चेक कहां से आएगा.'
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