नई दिल्ली: 'मंटो' की कहानी रचनात्मक विद्रोहियों द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर देने की कोशिश के बारे में है. अभिनेता ताहिर राज भसीन का मानना है कि यह क्षेत्र या राष्ट्र से परे हर किसी को एक भावना में बांधने की कोशिश करेगी.

उनका कहना है कि फिल्म एक प्रासंगिक विषय पर आधारित है, क्योंकि कई राष्ट्रों में कलाकारों और लेखकों को अपनी राय जाहिर करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

फिल्म 'मंटो' में निर्देशक नंदिता दास ने प्रसिद्ध कहानीकार सआदत हसन मंटो की जिंदगी के कई पहलुओं को दिखाया है. मंटो के किरदार में अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी हैं. खास बात यह कि 71वें कान्स फिल्म महोत्सव में अन सर्टेन रिगार्ड कैटेगरी में चयनित होने वाली यह एकमात्र भारतीय फिल्म रही.

ताहिर ने बताया, "महोत्सव में दुनियाभर के दर्शक थे और उन लोगों ने खड़े होकर फिल्म के प्रति सम्मान जाहिर किया. हमें जो प्रतिक्रिया मिली, वह यह थी कि कहानी सीमाओं से आगे बढ़ती है, जो महान है, जो शानदार बात है."




उन्होंने कहा, "अगर आप इस बारे में सोचते हैं, मंटो एक स्वतंत्र विचारों वाले और विद्रोही शख्स थे, जो रचनात्मक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी में यकीन करते थे. कई देशों में आज के राजनीतिक परिदृश्य में मनचाहे तरीके से नहीं लिख पाना, अपनी बात नहीं रख पाना कलाकारों और लेखकों के लिए एक बड़ा मुद्दा है. इस विषय में अंतर्निहित सार्वभौकिता है." ताहिर फिल्म में मंटो के करीबी दोस्त व अभिनेता सुंदर श्याम चड्ढा की भूमिका में हैं.

श्याम चड्ढ़ा ने फिल्म 'गोवंधी' से फिल्मी दुनिया में आगाज किया था. लेकिन पहचान उन्हें 'मजबूर' से मिली. 25 अप्रैल, 1951 को उनका निधन हो गया. ताहिर से जब पूछा गया कि उन्होंने अपने किरदार की तैयारी कैसे की, तो कहा कि उन्होंने अभिनेता के रिश्तेदारों से बात की. उनकी तस्वीरें देखी कि वह किस तरह के शख्सियत थे. मंटो की किताब 'स्टार्स फ्रॉम अनदर स्काई' से भी उन्हें दिवंगत अभिनेता के बारे में जानने को मिला. लेखक ने एक अध्याय में श्याम के साथ अपने रिश्तों के बारे में बात की है. फिल्म 'मंटो' भारत में सितंबर में रिलीज होने की उम्मीद है.