यशराज स्टूडियो की 60 फीट ऊंची दीवार पर पेंटिंग क्यों करना चाहते थे MF Hussain, कैसे पूरी हुई थी उनकी ये ख्वाहिश? जानें सब कुछ
एक मशहूर पेंटर और उनके मन में माधुरी दीक्षित को लेकर दीवांगी किसी से छिपी नहीं है, मशहूर पेंटर मकबूल फिदा हुसैन. जानिए हुसैन की ज़िंदगी से जुड़े कुछ गहरे राज, जिन्हें आपने पहले कभी नहीं सुना होगा
Maqbool Fida Husain Biography: मकबूल फिदा हुसैन के बारें में सभी जानते हैं कि वह माधुरी के चाहने वालों में से थे. वो ये दिखाने के लिए कुछ भी कर सकते थे कि वह माधुरी दीक्षित के ऊपर किस कदर फिदा थे. उन्होंने माधुरी को लेकर एक फिल्म भी बनाई थी गजगामिनी. एक बार तो उन्होंने माधुरी के तस्वीरों की प्रदर्शनी भी लगाई थी. उस प्रर्दशनी को देखने के लिए कई लोग आए. उसमें कई पत्रकार भी शामिल हुए. इसमें एक ऐसे पत्रकार भी मौजूद थे जोकि पत्रकार होने के साथ-साथ हुसैन के खास मित्र भी थे. मायापुरी मैगजीन के एक पत्रकार ने अपने लेख में लिखीं हुसैन के बारें में ये खास बातें.
यशराज स्टूडियो से जुड़ा किस्सा
माधुरी की पेंटिंग की प्रर्दशनी के बाद हुसैन ने अपने पत्रकार दोस्त से पूछा कि उन्होंने सुना है कि यशराज स्टूडियों के बाहर एक साठ फीट ऊंची दीवार है, जो पूरी तरह से खाली पड़ी है. उन्होंने आगे कहा कि वह उस दीवार पर भारतीय सिनेमा के इतिहास के संस्करण को चित्रित करने की ख्वाहिश रखते हैं. हुसैन ने ये भी कहा कि उन्हें इसके बदले कुछ नहीं चाहिए बस उस दीवार को पेंट करने की अनुमति चाहिए. फिर क्या था वह पत्रकार दोस्त झट से यशराज स्टूडियों पहुंचा और उसने हुसैन की सारी बातें यश चोपड़ा को कह सुनाई. यह बात सुनकर यश चोपड़ा की खुशी का ठीकाना न रहा. और उन्होंने तुरंत ही हुसैन के लिए हां कह दिया. बस फर्क इतना था कि यशराज स्टूडियो की दीवार को पेंट करने के लिए वह उन्हें पेय करेंगे.
भगवान गणपति की तस्वीर
दीवार पर काम शुरू हो गया. सबसे पहले हुसैन सीढ़ी पर चढ़ गए और जब तस्वीर पूरी हो गई तो नीचे उतरे और आंखें बंद कर ली. वहां पर मौजूद सभी लोग गणपति की तस्वीर को देखकर दंग रह गए. जब हुसैन ने उस तस्वीर को देखा तो उनकी आंखों से आंसू बहने लगे. ये आंसू खुशी के थे और इस खुशी के मौके पर उन्होंने अपने पत्रकार दोस्त को कसकर गले लगा लिया.
जीवन- मकबूल फिदा हुसैन का जन्म 17 सितंबर 1915 में पंढरपुर में हुआ था. वह एक भारतीय चित्रकार थे. जब हुसैन बहुत छोटे थे तभी उनकी मां का देहांत हो गया था. इसके बाद वह अपने पिता के साथ इंदौर चले गए, जहां पर उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की. 20 साल की उम्र में हुसैन ने मुंबई जाकर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में दाखिला लिया. अपने खर्चे चलाने के लिए वह सिनेमा के होर्डिंग्स बनाते और उन्हें पेंट करते थे. हालांकि जब इन पैसे से काम नहीं चलता था तो वह और ज्यादा पैसे कमाने के लिए एक खिलौने की फैक्ट्री में भी काम कर लिया करते थे.
पहली प्रर्दशनी - सबसे पहले जब उनकी पेटिंग्स को दिखाया गया तो उनकी काफी प्रशंसा हुई. 1952 में उनकी पहली एकल प्रर्दशनी ज्युरिक में लगी. इसके बाद उनकी पेंटिंग्स की कई प्रदर्शनियां यूरोप और अमेरिका में लगीं. 1966 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया. 1967 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म थ्रू द आइज ऑफ अ पेंटर बनाई जोकि बर्लिन उतस्व में दिखाई गई. इस फिल्म को गोल्डेन बियर पुरस्कार भी मिला.
महंगे पेंटर - 92 साल की उम्र में उन्हें केरल सरकार ने राजा रवि वर्मा पुरस्कार से सम्मानित किया. क्रिस्टीज ऑक्शन में उनकी एक पेंटिंग 20 लाख अमरीकी डॉरल में बिकी. इसके साथ ही वे सबसे महंगे पेंटर बन गए थे.