Tragedy Queen Meena Kumari Biography: आपके पांव देखे बहुत हसीन हैं, इन्हें जमीं पर मत उतारियेगा, मैले हो जाएंगे. ये डायलॉग किसी पर फिट बैठता है तो वह है बॉलीवुड ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी हैं. सिंड्रेला या ट्रेजडी क्वीन, ये दोनों ही नाम है मीना कुमारी के. मीना की फिल्में लोग आज भी देखना पसंद करते हैं. फिल्मों में वह अक्सर दुखद किरदार ही निभाया करती थीं. उन्हें देखकर लोग अक्सर यही कहते थे कि यही है, उनकी मोहब्बत, उनकी सिंड्रेला, उनके दिल का चैन, ख्वाबों की परी और हकीकत की अप्सरा. मीना कुमारी का असली नाम महजबीं बानो था. उनका जन्म 1 अगस्त 1932 को मुंबई (तब बम्बई) में हुआ था.


मीना कुमारी के पिता मास्टर अली बख्श पाकिस्तान से भारत शिफ्ट हुए थे. वे हारमोनियम बजाते थे, म्यूजिक सिखाते थे, उर्दू कवि थे और थिएटर से भी जुड़े थे. इसके साथ ही फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं भी किया करते थे. अली बख्श (मीना कुमारी के पिता) से शादी के पहले प्रभावती देवी (मीना कुमारी की मां) रंगमंच में नृत्य किया करती थीं. प्रभावती का नाम अली बख्श से शादी के बाद इकबाल बेगम हो गया. अली बख्श से शादी के बाद उनके परिवार की स्थति और भी खराब होती चली गई. इकबाल बेगम को गरीबी के दिन देखने पड़े. वो इतनी गरीबी थीं कि मीना कुमारी के जन्म के समय उनके पास अस्पताल में डिलीवरी तक के पैसे भी नहीं थे.




मजबूरी ने बचपन में ही कराया फिल्मों में काम


घर की गरीबी को देखते हुए मीना ने 4 साल की उम्र में ही फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया. मीना स्कूल जाना चाहती थीं, पढ़ना चाहती थीं, लेकिन घर के हालात ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी. उनके घर के आर्थिक हालत इतने खराब थे कि उन्हें पढ़ाई छोड़कर अभिनय की दुनिया का रुख करना पड़ा. मीना को पैसा कमाने के लिए इतनी छोटी सी उम्र में ही फिल्मों में काम करना पड़ा. जिस उम्र में बच्चे मस्ती और पढ़ाई करते हैं, उस उम्र में मासूम मीना फिल्मों में काम करके अपने घर का पालन पोषण कर रहीं थीं.


महज 4 साल की मीना घर के खर्चे संभालने लगीं. उन्हें चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में फिल्मों में काम मिलने लगा. उन्हें सभी चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर 'बेबी मीना' पुकारते थे. मीना पूरे परिवार की रोज़ी रोटी चलातीं. उनकी शुरुआत की ज्यादातर फिल्में नहीं चलीं. फिल्मों के अलावा मीना गाना भी गाया करती थीं. मीना को बचपन से ही गाने का शौक था.




फिल्म इंडस्ट्री में नहीं थी किसी से जान पहचान


फिल्मों में उनका संघर्ष खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था. मीना कुमारी का इंडस्ट्री में ना तो कोई गॉडफादर था और ना ही कोई रिलेटिव. अगर कुछ था तो घर चलाने के लिए फिल्मों में काम करने की मजबूरी और साथ ही उनकी लाजवाब एक्टिंग की प्रतिभा.


मेहनत रंग लाई


आखिरकार किस्मत ने पलटी खाई और वो एक दिन उनकी लाइफ में आ गया जब उन्हें निर्देशक विजय भट्ट की फिल्म बैजू बांवरा मिली. फिल्म बैजू बांवरा से मीना कुमारी की किस्मत चमक उठी. इस फिल्म के बाद उन्हें एक के बाद एक बेहतरीन फिल्मों के ऑफर आने लगे. इस फिल्म में उनके काम की काफी प्रशंसा हुई. 


फिल्म के दौरान हुआ हादसा


फिल्म बैजू बावरा साल 1952 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म के दौरान एक बहुत बड़ा हादसा हुआ था. दरअसल, फिल्म का एक सीन था, जिसमें मीना कुमारी को नाव में एक सीन करना था. सीन के दौरान मीना पानी में गिर गईं और लगभग डूब ही गई थीं, लेकिन वो कहते हैं ना जाको राखे साइयां मार सके ना कोई. ऐसा ही चमत्कार कुछ मीना के साथ भी हुआ. मीना को आखिरकार उनकी फिल्म की कास्ट ने मिलकर पानी से निकाला. उस दिन मीना बाल-बाल बचीं थीं. इस फिल्म में मीना को उनके अभिनय के लिए फिल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड भी मिला था.


कैसे टूटी बाएं हाथ की उंगली


फिल्म बैजू बावरा के बाद मीना की लाइफ में कई हादसे हुए. एक बार की बात है जब मीना मुंबई और महाबलेश्वर के रास्ते में कहीं जा रही थीं तो उनका एक्सीडेंट हो गया था. ये एक्सीडेंट इतना खतरनाक था कि इस एक्सीडेंट में मीना की बाएं हाथ की उंगली तक टूट गई थी, यही कारण है कि मीना ज्यादातर फिल्मों के दौरान अपनी बाएं हाथ की उंगली को दुपट्टे में लपेटे नजर आती थीं.




मीना के लिए उनकी खास फिल्म थी पाकीज़ा


कई फिल्म को जैसे स्पेशली मीना कुमारी के लिए ही बनाया गया था. जिनमें शामिल एक फिल्म पाकीज़ा भी है. फिल्म पाकीज़ा को बनने में लगभग 14 साल का समय लगा था. फिल्म के निर्देश कमाल अमरोही ने फिल्म के एक सीन के लिए फव्वारों में गुलाब जल तक डाले थे. ये फव्वारे हूबहू ताज महल के पास बने फव्वारों जैसे बनाए गए थे. इस फिल्म में मीना कुमारी ने अपने सभी कॉस्ट्यूम डिज़ाइन किए थे. ये उनकी आखिरी फिल्म थी. फिल्म पाकीज़ा का नाम एक बार बीच में बदलकर 'लहु पुकारेगा' कर दिया गया था, लेकिन बात कुछ जमी नहीं, इसलिए कमाल ने फिर से फिल्म का नाम पाकीज़ा रख दिया. 


राज कुमार थे फिदा


अपने अनोखे अंदाज़ और बेहतरीन अदाकारी के लिए पहचाने जाने वाले एक्टर राज कुमार भी मीना के हुस्न के दीवाने थे. वह फिल्म पाकीज़ा के दौरान अक्सर मीना की खूबसूरती को देखकर अपने डायलॉग भूल जाया करते थे. जब ये बात कमाल अमरोही को पता चली तो उन्होंने इस बात के लिए राज कुमार को समझाया की मीना केवल उनकी है.


डाकुओं ने किया अगवा


एक बार की बात है जब मीना अपने पति कमाल अमरोही के साथ एमपी के शिवपुरी से कहीं जा रहीं थीं. तब रास्ते में अचानक उनकी कार का पेट्रोल खत्म हो गया. उस वक्त उन्हें डाकुओं ने घेर लिया था. तब उस समय मीना पहले तो उन्हें देखकर काफी घबरा गईं लेकिन जब डाकू ने मीना को देखा तो वह उन्हें एक तक देखता ही रह गया. वह डाकू मीना का फैन था और इस तरह अचानक से मीना को सामने देखकर वह डाकू हैरान हो गया. उन डाकूओं कि टुकड़ी ने मीना और कमाल की खूब खातिरदारी की. जब सुबह हुई तो उन डाकुओं ने मीना के लिए पेट्रोल का इंताज भी किया. जब मीना और कमाल वहां से जाने लगे तो तब एक डाकू ने चाकू निकाल लिया. दरअसल वह डाकू चाकू की धार से अपने हाथ पर मीना का ऑटोग्राफ चाहता था.


फेमस डायलॉग


फिल्म पाकीज़ा का ये मशहूर डायलॉग 'आपके पांव देखे बहुत हसीन है, इन्हें जमीं पर मत उतारियेगा, मैले हो जाएंगे' पहले फिल्म कि स्क्रिप्ट का हिस्सा नहीं था, लेकिन कमाल अमरोही को ये डायलॉग याद आया जब उन्हें फिल्म पाकीज़ा के दौरान याद आईं चंदेरीबाई की. चंदेरीबाई उस समय कि मशहूर तवायफ थी. जब भी कमाल उनका डांस देखने के लिए कोठे पर जाते थे तो वह अक्सर उनके पैर देखा करते थे, क्योंकि चंदेरीबीई अपने पैर लहराया करती थीं, जिसको देखकर कमाल अमरोही के मन में बस यही लाइनें आया करती थीं कि आपके पांव देखे बहुत हसीन हैं, इन्हें जमीं पर मत उतारियेगा, मैले हो जाएंगे.  


मीना का फिल्मी करियर


फ़िल्म चांदनी चौक, आजाद बादाम, नया अंदाज, मेम साहब, एक ही रास्ता, बंधन,पाकीजा जैसी ना जाने कितनी ही सुपरहिट फिल्में दीं. उनके कदमों में अवॉर्ड के ढेर से लग गए. मीना कुमारी बॉलीवुड की उन गिनी चुनी अभिनेत्रियों में से रहीं, जिन्हें बॉलीवुड के इतिहास में अनमोल रत्न माना जाता है.


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