रेटिंग- 3.5 स्टार
कास्ट- प्रभास, राणा दग्गुबती, अनुष्का शेट्टी, तमन्ना भाटिया, राम्या कृष्णन, सत्यराज
डायरेक्टर- एसएस राजामौली
बहुत इंतज़ार के बाद आज फिल्म बाहुबली का दूसरा भाग यानि बाहुबली- द कनक्लूज़न रिलीज़ हो गया है. मैंने खचाखच भरे सिनेमाहॉल में ये फिल्म देखी है और ये बताना ज़रूरी है जो स्केल और भव्यता इस फिल्म में नज़र आती है वो भारतीय सिनेमा में पहले नहीं देखी गई. विजुअल इफेक्ट्स के मामले में ये बाहुबली-1 से कहीं आगे है. हालांकि प्लॉट के बारे में ये नहीं कहा जा सकता.
जिन दर्शकों ने आज ये फिल्म देख ली उन्हें इस बात का जवाब मिल भी गया है कि कटप्पा ने आखिर बाहुबली को क्यों मारा? जी हां, कटप्पा बाहुबली की हत्या कर देता है लेकिन वो ऐसा क्यों करता है इसका जवाब एक लाइन में नहीं दिया जा सकता. इसमें कई पेंच हैं. प्राचीन साम्राज्य महिष्मति को लेकर दो भाइयों अमरेन्द्र बाहुबली और विलेन भल्लालदेव के बीच सत्ता के संघर्ष की इस कहानी में महाभारत और पुरानी लोक-कथाओं की झलक साफ दिखाई देती है. फिल्म में हर फॉर्मूले का भरपूर इस्तेमाल किया गया है लेकिन बेहद भव्य स्केल पर.
महिष्मति साम्राज्य की रानी शिवगामी का बेटा भल्लालदेव (राणा दगुबत्ती) है, जबकि अमरेन्द्र बाहुबली (प्रभास) को उन्होंने बेटे की तरह पाला है. वो बाहुबली को राजा घोषित कर देती हैं जिससे भल्लालदेव बुरी तरह जल जाता है. कटप्पा उनका भरोसेमंद गुलाम और सेनापति है. लेकिन फिर राज्य में शुरू होती है भल्लालदेव और उसके पिता की साजिशें जिसमें बाहुबली को अपनी जान तक देनी पड़ती है. किस तरह बाहुबली का बेटा महेन्द्र बाहुबली बदला लेकर अपना राजपाट वापस लेता यही लगभग 3 घंटे लंबी इस फिल्म में दिखाया गया है.
फिल्म की कहानी में कुछ नयापन नहीं है. साजिश के सीन भी आपको बचकाने लग सकते हैं. प्लॉप में कोई ख़ासियत नहीं है. लेकिन बाहुबली देखने की वजह ये सारी बातें नहीं है. इस फिल्म को देखना अपने आप में एक अलग अऩुभव है जिससे भारतीय सिनेमा अबतक अछूता था. उस अऩुभव के आधार पर ही इस फिल्म को परखना चाहिए. फिल्म का हर एक सीन मानो एक आइटम सीन है.
एक सीन जहां हीरोइन अनुष्का और प्रभास तीर-कमान लेकर हमलावरों से लड़ते है वो कमाल का कोरियोग्राफ किया गया है. पिछले भाग में जहां एक्शन या वॉर सीन बहुत अच्छे फिल्माए गए थे, बाहुबली 2 के क्लाईमैक्स में में वो अक्सर वीडियो गेम का अहसास देते हैं मानो हम कोई एनिमेशन फिल्म देख रहे हैं. लेकिन कहानी इतनी तेज़ी से आगे बढ़ती है कि कुछ सोचने समझने का वक्त नहीं मिल पाता.
जहां तक कलाकारों की बात है प्रभास, राणा, अनुष्का शेट्टी, राम्या, नासिर और सत्यराज हर किसी ने अपने रोल बखूबी निभाए है. लेकिन फिल्म के हीरो हर हाल में सिर्फ निर्देशक एसएस राजामौली है जिन्होंने इतने आलीशन तरीके से इसे पर्दे पर उतार दिया है.
मुझे नहीं लगता कि बाहुबली से पहले भारतीय सिनेमा के इतिहास में ऐसा कभी हुआ होगा कि तेलुगु या तमिल फिल्म को देखने के लिए हिंदी फिल्मों के दर्शक इतने बेक़रार थे. बॉलीवुड या कहें कि पूरे भारतीय सिनेमा को अगर हॉलीवुड फिल्मों से टक्कर लेनी है तो कम से कम स्केल ये तो होना ही चाहिए. हां सब्जेक्ट्स पर और मेहनत की जा सकती है.