कलाकार- शाहरुख खान, अनुष्का शर्मा
निर्देशन- इम्तियाज अली
रेटिंग- ** 1/2
‘जब हैरी मेट सेजल’ से बड़ी उम्मीद करने की दो ख़ास वजह हैं. पहली, शाहरुख ख़ान की रोमांटिक फिल्म में वापसी और दूसरी, प्यार और उसकी उलझनों को ख़ूबसूरती से दिखाने वाले निर्देशक इम्तियाज़ अली के साथ शाहरुख पहली बार काम कर रहे हैं.
पहली उम्मीद पर ये फिल्म खरी उतरती है. शाहरुख खान कमाल के लग रहे हैं. रोमांटिक सीन में वो अब भी जादू जगा देते हैं. वो पूरे फॉर्म में हैं.
दूसरी उम्मीद टूटती है. इम्तियाज़ अली की हर फिल्म की ख़ासियत उसका ह्यूमर, मज़बूत किरदार और सशक्त जज़्बाती सीन होते हैं जो आपको छू जाते हैं. चाहे जब वी मेट हो, लव आजकल या रॉकस्टार, उसके कॉमेडी सीन भी आपको उतने ही याद होते हैं जितने कि इंटेस डायलॉग और सीन. फिल्म के कई हिस्से इम्तियाज़ अली की ही 'जब वी मेट' लव आजकल' और 'तमाशा' से प्रभावित लगते हैं.
‘जब हैरी मेट सेजल’ बुरी फिल्म नहीं है. ये बस सपाट है. इसकी कहानी में उतार-चढ़ाव नहीं है. कई बार फिल्म खिंचती हुई भी लगती है. इसका प्लॉट बहुत ही सीधा है. पंजाब से गायक बनने का सपना लिए हरविंदर सिंह ‘हैरी’ (शाहरुख खान) भागकर कनाडा आया था. यहां सपना टूटता है और वो टूर गाइड बन जाता है. सेजल (अनुष्का) अपने परिवार के साथ घूमने आती है. उनका टूर गाइड हैरी है. इसी जगह सेजल की सगाई उसके बॉयफ्रेड रूपेन से होती है.
वापस जाते वक्त सेजल को पता चलता है कि उसकी सगाई की अंगूठी खो गयी है. वो वापस नहीं जाती और हैरी के साथ हर उस जगह पर जाती है जहां उसकी अंगूठी गुम हुई थी. इसी सफ़र में पूरी फिल्म बीत जाती है. इसी सफ़र में दोनों एक दूसरा के क़रीब आ जाते है और पहले सीन से ही सबको पता होता है कि दोनों अंत में साथ भी होंगे.
एक पंजाबी शख्स के किरदार में शाहरुख खान ज़बरदस्त लगे हैं. वो दिख भी अच्छे रहे हैं. उनके रोमांस और कॉमेडी में भी पुरानी कशिश दिख रही है. अनुष्का का किरदार शुरू से ही समझ में नहीं आता. कभी वो ‘जब वी मेट’ की गीत (करीना कपूर) के रंग में आ जाती है तो कभी ‘लव आजकल’ की दीपिका लगती है. उनका गुजराती लहजा भी फिल्म के दौरान बदलता रहता है. वो बहुत अच्छी एक्ट्रेस हैं मगर उनका रोल मज़बूत नही लिखा गया है.
फिल्म में दोनों के रोमांटिक सीन अच्छे हैं लेकिन जो केमेस्ट्री, तीव्रता इम्तियाज़ की पिछली हर फिल्म के हीरो-हीरोइन में थी वो यहां नहीं दिखती. फिल्म के जज़्बाती सीन हल्के महसूस होते हैं. इंटरवल के बाद जब दोनों के अलग होने के सीन अच्छे हैं. लेकिन फिर क्लाईमैक्स बहुत प्रिडिक्टेबल है और यूं ही गुज़र जाता है.
फिल्म के तीन गीत- राधा, सफ़र और हवाएं खासतौर से बहुत अच्छे हैं. फिल्म की सिनेमैटोग्राफ़ी कमाल की है तो सफ़र देखने में तो बेहद खूबसूरत लगता है. काश इस सफ़र में गहरायी भी होती.
शाहरुख ख़ान के फैन निराश नहीं होंगे. मगर इतनी उम्मीद वाली फिल्म औसत से ऊपर जा ही नहीं पायी.