Movie Review: सफर में प्यार, इकरार और तकरार की किस्सागोई है 'जब हैरी मेट सेजल'
अनुष्का अपने पूरे परिवार के साथ एम्स्टर्डम आती हैं, यहां उनकी सगाई होती है और एक टूर गाइड के तौर पर हैरी यानि शाहरुख़ खान उन्हें एम्स्टर्डम घुमाते हैं.
मुंबई: सफर का ही था मैं...सफर का रहा...शाहरुख और अनुष्का के साथ इम्तियाज़ अली हम सब को एक ऐसे ही सफर हिस्सा बनाते हैं. यह सफर शुरू होती है एम्स्टर्डम में और फिर पूरे यूरोप, मुंबई होते हुए पंजाब के खेतों में आकर खत्म होती है.
अनुष्का अपने पूरे परिवार के साथ एम्स्टर्डम आती हैं, यहां उनकी सगाई होती है और एक टूर गाइड के तौर पर हैरी यानि शाहरुख़ खान उन्हें एम्स्टर्डम घुमाते हैं...मगर जब वापस जाने का वक्त आता है तो सेजल यानी अनुष्का को एहसास होता है की उसकी एंगेजमेंट रिंग कहीं खो गई है...और बस शुरू होती है रिंग को ढूंढने की जद्दोजेहद और न चाहते हुए भी हैरी को सेजल के साथ रिंग ढूंढने में पूरे यूरोप की सैर करनी करनी पड़ती है. इसी सफर में होता है दोनों में प्यार, तकरार फिर इकरार. फिल्म की कहानी बस यही है.
फिल्म के हाई प्वाइंट्स
- फिल्म के पहले हिस्से में शाहरुख और अनुष्का ने हमें अपने सफर हिस्सा बना लिया. इंटरवल प्वाइंट कब आया पता नहीं चला.
- शाहरुख खान का पर्दे पर रोमांस का हर एक अंदाज़ काबिले-तारीफ है. आँखों के जरिये इश्क़ का इज़हार करना हो या फिर बाहें फैला कर अपनी लेडीलव को सारे जहां की खुशियाँ देने का निःशब्द बयान...शाहरुख खान से बेहतर आज भी इंडस्ट्री में कोई नहीं है.
- अनुष्का शर्मा ने गुजराती तरीकों को बखूबी अपनाया है. शाहरुख़ के साथ उनकीजोड़ी पर्दे पर अच्छी लगती है.
- फिल्म में 'सफर' और 'हवाएं', ये दो गीत अच्छे हैं.
- यूरोप की खूबसूरती को डायरेक्टर इम्तियाज अली ने कैमरे में बखूबी कैद किया है.
- फिल्म में कुछ ही डायलॉग्स अच्छे हैं.
फिल्म के माइनस प्वाइंट्स
- फिल्म का सेकेंड हाफ शुरू होते ही शक यकीन में बदल चुका था. शाहरुख़ और अनुष्का का सफर अब अंग्रेजी के लफ्ज़ SUFFER में तब्दील हो चुका है. कहानी में कहने को कुछ भी नया नहीं है. रिंग ढूंढने के नाम पर वही पुराने सीन्स और पूरी फिल्म में अनुष्का का बॉसी अंदाज आपको थका देता है.
- फर्स्ट हाफ में जहाँ थिएटर के भीतर एक एनर्जी थी...खिलखिलाहट थी वह अब तक गायब हो जाती है. मैंने पास वाले सीट पर बैठे एक शख्स से पूछ ही लिया, "कैसी लग रही है आपको"...उसने फाटक फटाक से जवाब दिया..."अब बोर हो रहा हूं" बस यही कहना था कि कहानी में कोई दम नहीं है...आप कब तक सिर्फ सफर करते रहोगे?
- जहाँ फर्स्ट हाफ में हम गानों को एन्जॉय कर रहे थे वहीं सेकंड हाफ में जबरन गाने ठूसे गए हैं. जिनके लफ्ज़ आपको याद भी नहीं रहेंगे.
- इम्तियाज अली की फिल्मों का एक सेट फॉर्मेट होता है. उनकी फिल्मों में किरदार ट्रेवलर होते हैं और हम उनके सफर का हिस्सा बन जाते हैं. मजा भी आता है...मगर कहानी अगर दमदार न हो, उसे बयां करने का तरीका भी एक ही तरह को हो तो सिर्फ लोकेशन बदलने से कुछ ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता है.
इस फिल्म में हाई प्वाइंट कहें या सेविएर कहें...वह यह है कि शाहरुख़ खान से मिलने और प्यार को एक बार फिर से महसूस करने आप जरूर जाएं. किसी फिल्म को नंबर के दायरे में बांधना सही नहीं होता. इसलिए मेरा मानना है की फिल्म देखें और इससे अपनी पसंद के हिसाब से इसे बांधें.