स्टार कास्ट: अक्षय कुमार, हुमा कुरैशी, अन्नू कपूर, सौरभ शुक्ला, सयानी गुप्ता, इनामुल हक़, मानव कौल
डायरेक्टर: सुभाष कपूर
रेटिंग: 2.5


जब भी किसी फिल्म का सीक्वल बन रहा होता है तो एक्टर से लेकर डायरेक्टर तक के लिए बड़ी चुनौती होती है. खासकर तब जब 'जॉली एलएलबी' जैसी छोटी बजट की फिल्म लोगों के दिलों में अपना घर बना चुकी हो. ये अरशद वारसी की बेहतरीन एक्टिंग का ही कमाल है कि अक्षय कुमार जैसे सुपरस्टार को भी अपनी स्टारडम को किनारे कर कैरेक्टर को जीवंत करने में जी जान लगाना पड़ा है. कानपुर वाले जॉली का किरदार निभाने के लिए अक्षय कुमार ने भाषा से लेकर बॉडी लैंग्वेज तक को अपनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. अक्षय कुमार ने मेहनत खूब की है लेकिन जॉली का का जिक्र होते ही कहीं ना कहीं अरशद वारसी दिमाग में आ जाते हैं. अरशद ने जॉली के कैरेक्टर में जो मासूमियत और भोलापन भर दिया था उसे अक्षय कुमार नहीं उतार पाए हैं. 


कहानी


इस फिल्म की कहानी पहले वाली फिल्म 'जॉली एलएलबी' से ज्यादा अलग नहीं है. प्लॉट वैसा ही है बस शहर और किरदार बदल गए हैं. जज सौरव शुक्ला ही हैं. वकील बोमन ईरानी की जगह इसमें अन्नू कपूर हैं.



इस फिल्म की कहानी कानपुर वाले जॉली यानि जगदीश्वर मिश्रा की है जो नामी वकील बनना चाहता है. वो खुद का चैंबर खरीदना चाहता है. जॉली अपनी पत्नी से कहता है, 'तुम देखना पुष्पा एक दिन ऐसे ऐसे केस जीतूंगा कि दुनिया कहेगी कि वो जा रहा है जगदीश्वर मिश्रा और उसकी बीवी पुष्पा पांडेय रॉल्स रॉयस में ...' एक दिन कोर्ट में हिना सिद्दीकी (सयानी गुप्ता), जिसके पति इकबाल कासिम (मानव कौल) का फर्जी एनकाउंटर हुआ है से उसकी बात होती है और वो धोखे से उसके पैसे मांगकर चैंबर खरीद लेता है. इसके बाद कुछ ऐसा होता है कि जॉली का जमीर जाग उठता है और वो ठान लेता है कि वो इकबाल को न्याय दिलाकर रहेगा. पुलिस के वकील की भूमिका में अन्नू कपूर हैं. आखिर ऐसा क्या होता है कि परीक्षा में पैसे लेकर नकल कराने वाले जॉली का जमीर अचानक न्याय दिलाने के लिए तड़पने लगता है? क्या वो हिना के पति को इंसाफ दिला पाता है? ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

अपनी बात दिखाने में कामयाब रहे हैं सुभाष कपूर


पॉलिटिकल सटायर करना उतना आसान नहीं होता है जितना की हम देखते हैं और हंसकर रह जाते हैं. ये सुभाष कपूर से बेहतर कोई नहीं जानता होगा. सुभाष कपूर की तारीफ इसलिए की जानी चाहिए कि देश में न्यायपालिका की दुर्दशा से लेकर राजनीति और फेक एनकाउंटर तक पर किए गए व्यंग्य को उन्होंने बड़ी ही सहजता से दिखा दिया है. हालांकि फिल्म में तो कोर्ट रूम ड्रामा है ही लेकिन बाहर भी इस फिल्म को लेकर कोर्ट में खूब ड्रामा हुआ है और चार छोटे कट के साथ ये फिल्म रिलीज हुई है.



फिल्म में कुछ छोटी-छोटी चीजें भी दिखाई गई हैं जो प्रभावित करती हैं. बनारस में हिंदू और मुस्लिम औरतों के बीच क्रिकेट मैच... यहां पर जॉली पहुंचता है और जब इस बारे में पूछता है तो उसे जवाब मिलता है- मैच छोड़िए वो तो पैसों के लिए हैं लेकिन एक बात है कि हिंदू हो या मुस्लिम... औरतों की दशा एक जैसी है. ये एक लाइन बहुत कह जाती है.


इस फिल्म की खास बात ये है कि ये बहुत ही वास्तविक लगती है. बस फिल्म का गाने खटकते हैं क्योंकि वो जबरदस्ती डाले गए लगते हैं. 'बावरा मन' गाना तो खूबसूरत है लेकिन होली के थीम पर फिल्माया गया गाना 'गो पागल' क्यों रखा गया है ये समझ नहीं आता.