Flashback Friday: बिना ग्लैमर और दिखावे की वो फिल्म जो साधारण होने के बावजूद बन गई असाधारण, ढाई साल तक टिकट खरीदते रहे लोग
Flashback Friday: फिल्म की खास बात ये थी कि फिल्म को खास बनाने के लिए इसमें कोई भी खासियत डाली ही नहीं गई थी. फिल्म को साधारण, सामान्य और सीधे तरीके से पेश करके ठीक 42 साल पहले इतिहास बना दिया गया था.
Flashback Friday: 1980 के दशक में बॉलीवुड में अलग-अलग तरह की फिल्मों का दौर था. ये वही समय था जब आर्ट सिनेमा और मास सिनेमा दोनों अपने-अपने पंख फैला रहे थे. अर्थ, आक्रोश, अर्धसत्य, चमेली की शादी, चश्मेबद्दूर, अर्थ, सदमा उमराव जान जैसी फिल्में इसी दौर में आई थीं. अंगूर, मासूम, स्पर्श और जाने भी दो यारों. इनमें से एक भी फिल्म को आप या कोई भी सिनेमा प्रेमी ये कहने की हिमाकत तो बिल्कुल भी नहीं कर सकता कि फलां फिल्म खराब फिल्म थी.
आज से ठीक 42 साल पहले इसी दौर में एक और फिल्म बनी, जिसकी भाषा सामान्य बॉलीवुड फिल्म की तरह हिंदी होने के बजाय भोजपुरी के ज्यादा करीब थी. फिल्म में दिखाया गया गांव आपको आपके गांव की याद आज भी दिला सकता है. इसे फिल्म के बजाय 'गजब' कह दिया जाए तो गलत नहीं होगा. कुछ लाख के बजट में बनी फिल्म ने करोड़ों कमाए थे. और जब ठीक 12 साल बाद इस फिल्म का रीमेक बना तो उसने बॉलीवुड की पहली 100 करोड़ी फिल्म होने का रिकॉर्ड बना दिया. आज हम इस खास फिल्म की कहानी और एक्टर्स के बारे में बात नहीं करेंगे. हम बात करेंगे फिल्म के बारे में कि क्यों ये खास है.
कौन सी फिल्म है ये और किन मायनों में अलग थी?
इस फिल्म का नाम है 'नदिया के पार' और अगर आप फिल्मों के थोड़े से भी शौकीन हैं, तो आपको रिकॉल जरूर हो गया होगा. ऊपर हमने जितनी भी फिल्में बताईं, माना कि वो बेहतरीन फिल्में थीं. फिर भी वो दौर एंग्री यंगमैन का था. दर्शकों का प्यार एक्शन फिल्मों में उमड़-उमड़कर बरसता था. ऐसे में सीधी-सादी सी कहानी कहती एक फिल्म आती है. जिसमें ग्लैमर के नाम की एक भी चीज नहीं थी. दो गांवों की कहानी पर बेस्ड इस फिल्म में वैसा प्यार नहीं दिखाया गया, जो ऊपरी तौर पर आकर्षक लगे. फिल्म में वो प्यार दिखाया गया जो लोगों के अपने घर आसपास देखने को मिलता था. और इसका फायदा ये हुआ की फिल्म से दर्शक कनेक्ट होता चला गया. बच्चा-बूढ़ा हर दर्शक वर्ग इस फिल्म से जुड़ पा रहा था. फिल्म में मां जैसी भाभी और लक्ष्मण जैसा देवर (सचिन पिलगांवकर) था. फिल्म में असली लगने वाले गांव नहीं थे, बल्कि जो गांव थे वो असली ही थे.
असली गांव और पहनावा, बोल-चाल
फिल्म की शूटिंग उत्तर प्रदेश के जौनपुर के विजयपुर और राजेपुर नाम के गांवों में हुई थी. हर किरदार उन्हीं कपड़ों में दिख रहा था, जैसा कि गांवों में लोग ग्लोबलाइजेशन आने से पहले पहना करते थे. साधारण कुर्ता-पैजामा, खादी, सूती कपड़े पहने किरदार दर्शकों को अपने से लगे. फिल्म में बनावटी नाम की कोई चीज नहीं थी. फिल्म में खलनायक नहीं था बस ऐसी परिस्थितियां थीं, जो रियल लाइफ की तरह ही किसी के कंट्रोल से बाहर हों. केशव प्रसाद मिश्र के उपन्यास 'कोहबर की शर्त' पर आधारित ये फिल्म उनके उपन्यास के शुरुआती दो खंडों पर बनी थी. जबकि ये उपन्यास 4 खंडों में पब्लिश हुआ था.
फिल्म क्यों है माइलस्टोन
- फिल्म के डायरेक्टर गोविंद मूनिस की ये फिल्म इतनी कामयाब हुई कि इस फिल्म के अलावा उनके डायरेक्शन में बनी दूसरी फिल्मों की बात ही नहीं होती. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, फिल्म का बजट सिर्फ 18 लाख था और फिल्म ने पूरी 136 हफ्तों तक सिनेमाघरों में टिकी रही. यानी 2 साल 7 महीने तक ये फिल्म दौड़ती रही. बॉलीवुड हंगामा के मुताबिक, इस फिल्म ने 2.7 करोड़ रुपये का बिजनेस किया था.
- इस फिल्म के डायरेक्टर ने इसकी भाषा भोजपुरी से मिलती-जुलती ही रखी, जैसे कि उन्हें मालूम रहा हो कि हिंदी बेल्ट के गांव के दर्शकों को कैसे सिनेमाघरों तक लाया जा सकता हो. इसके पहले वो एक भोजपुरी फिल्म मितवा का भी निर्देशन कर चुके थे. इसलिए शायद उन्हें पता था कि इस भाषा में ही फिल्म रखने से बॉक्स ऑफिस में भी अच्छा कमाल करेगी.
- फिल्म के गाने कुछ ऐसे लिखे गए थे कि वो लोकगीत जैसा भाव देते थे. 'कौन दिशा में लेके चला रे' गाना इसका अच्छा उदाहरण कहा जा सकता है. अगर आप 80s या 90s के जमाने में पैदा हुए हैं और आपका जुड़ाव किसी गांव से रहा है तो आप इस कनेक्शन को फील भी कर पा रहे होंगे.
फिल्म ने तो कमाया ही फिल्म के रीमेक ने भी इतिहास रच दिया
इस फिल्म को राजश्री प्रोडक्शन के तहत फिर से 12 साल बाद उस जमाने के 'नए जमाने' के हिसाब से पर्दे पर उतारा गया. इस फिल्म की रीमेक को इसी फिल्म के एक किरदार गुंजा के डायलॉग से प्रेरित होकर रखा गया था. फिल्म में साधना सिंह का कैरेक्टर फिल्म के लीड एक्टर सचिन पिलगांवकर के कैरेक्टर से 'हम तुम्हारे हैं कौन' कहता है. बस इसी नाम से 1992 में 'हम आपके हैं कौन' रिलीज की गई. इस फिल्म का प्लॉट,कहानी और किरदार पूरी तरह से नदिया के पार का नया वर्जन था.
6 करोड़ में बनी इस फिल्म ने 100 करोड़ कमाए थे और इस तरह से ये फिल्म बॉलीवुड की पहली 100 करोड़ी फिल्म बन गई थी. इसके बाद, सूरज बड़जात्या और राजश्री के प्रोडक्शन तले ऐसी तमाम बेहतरी फिल्में आईं जिनका ट्रीटमेंट लगभग-लगभग नदिया के पार जैसा ही था. विवाह, एक विवाह ऐसा भी और हम साथ-साथ हैं जैसी फिल्में इसी लाइन पर बनाई गईं फिल्में थीं जो न सिर्फ हिट हुईं बल्कि लोगों को पसंद भी आईं.