नई दिल्ली: मराठी लेखक फिल्मकार नागराज मंजुले ने कहा कि उन्होंने 2016 में आई अपनी फिल्म ‘सैराट’ के आखिरी हिस्से की शूटिंग बिना किसी पाश्र्व संगीत या संवाद के की थी क्योंकि वह चाहते थे कि दृश्य में फिल्माई गयी हिंसा दर्शकों पर सीधा असर करे.
मंजुले के मुताबिक फिल्म की थीम जातीय ध्रुवीकरण और झूठी शान के नाम पर हत्या थी. ये मुद्दे देश में लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं. फिल्म दो अलग अलग वर्ग के कॉलेज स्टूडेंट्स के रोमांस से शुरू होती है.
उन्होंने कहा, ‘‘जातिवाद के कारण बड़ी संख्या में लोग संकट झेलते हैं और आज भी झेल रहे हैं. मैंने भी परेशानी झेली है. मुझे लगा कि इस तरह की कहानी बयां करनी चाहिए. मेरा मानना है कि हमारी कहानी बताती हैं कि हम कौन हैं. मैं चंदा और तारों की बात नहीं करंगा क्योंकि हम उनसे नहीं जुड़े.’’ 39 साल के फिल्म निर्देशक मंजुले का कहना है कि अखबार और टीवी चैनल हर रोज ऐसी कहानियों के बारे में बात करते हैं लेकिन कहीं न कहीं लोग इन त्रासदियों के प्रति संवेदनहीन हो गये हैं.
मराठी फिल्म ‘सैराट’ के संदर्भ में उन्होंने कहा कि फिल्म का अंत जिस तरह हुआ, वैसा ही होना चाहिए था. यह किसी और तरीके से नहीं हो सकता था. हमारे देश में भी यही होता है कि जब कोई दूसरी जाति के लड़के या लड़की से प्यार करने या शादी के बारे में सोचता भी है तो उसका अंत इसी तरह होता है.
मंजुले हाल ही में इंडिया हैबिटेट सेंटर में फिल्मोत्सव में ‘सैराट’ के प्रदर्शन के लिए आये थे.