Monday Motivation: सुबह उठो काम पर जाओ. फिर आ जाओ और दूसरे दिन काम पर जाने के लिए फिर से तैयार हो जाओ...और फिर काम करते जाओ करते जाओ करते जाओ. ये सवाल कई बार जहन में आता है और फिर बेचैनी होने लगती है. बेचैनी ये सोचकर कि हम क्या कर रहे हैं? बेचैनी ये सोचकर कि हम ये सब क्यों कर रहे हैं? ये सवाल तब और काटने लग जाता है जब हमें वो सब कुछ नहीं मिलता जिसके लिए हम दिन-रात मशक्कत कर रहे होते हैं. तो चलिए आपके इन सवालों का जवाब नवाजुद्दीन की स्ट्रगल स्टोरी में ढूंढने की कोशिश करते हैं.
इनके जवाब नवाजुद्दीन सिद्दीकी की मोटिवेशनल स्टोरी में जरूर मिलेंगे. जिन्होंने एक बेहद छोटे से गांव से आकर बॉलीवुड में अपनी जगह बनाई. उन्होंने भी वो सब कुछ किया जो हम और आप अपनी लाइफ में कर रहे होते हैं उसे बेहतर बनाने के लिए, उसे संवारने के लिए और अपनी मंजिल पाने के लिए.
बाप का दादा का सबका बदला लेने वाले नवाज
नवाज उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के एक छोटे से गांव भुवाना से आते हैं. भुवाना से मायानगरी मुंबई की दूरी तय करने में तो शायद नवाज को कुछ घंटे ही लगे हों, लेकिन आज वो जिस मुकाम पर हैं उस दूरी को तय करने में उन्हें एक दशक से भी ज्यादा का समय लग गया. लेकिन उनकी ही एक फिल्म में उनके बोले गए डायलॉग 'बाप का दादा का सबका बदला लेगा तेरा फैजू' उन पर पूरी तरह से फिट बैठता है.
अनुराग कश्यप ने चाहे अनचाहे तौर पर 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में ये डायलॉग रखकर उनकी जर्नी को कुछ शब्दों में बयां करवा दिया था. मतलब ये कि नवाज ने जो जो भी स्ट्रगल किए उन सबका रिजल्ट उन्हें मिला और आज वो बेशक बॉलीवुड के बड़े स्टार जैसी मानक जरूरतें (जैसे कि रंग, कद और काठी) को पूरा न करते हों, लेकिन उनकी फैन फॉलोविंग उनके स्टारडम को बयां करती हैं.
छोटे-मोटे रोल से की शुरुआत
किसान परिवार में जन्में नवाज ने मुजफ्फरनगर में ही पढ़ाई के बाद थिएटर शुरू कर दिया. एक्टिंग की सनक ऐसी थी कि उन्होंने दिल्ली में मौजूद नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लिया और खर्च चलाने के लिए सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी भी की. इसके बाद मुंबई का रुख किया, जिससे एक्टिंग में हाथ आजमाया जा सके. लेकिन न तो उन्हें कोई बड़ा रोल मिला और न ही कोई पहचान. साल 1999 में आई आमिर खान की सरफरोश में पुलिस जिन गुंडों को पीटती है उनमें से एक पिटने वाले नवाज भी थे. लेकिन किसी ने इस पिटने वाले को देखकर ये अंदाजा भी नहीं लगाया होगा कि ये कभी बॉलीवुड में अपना एंपायर खड़ा कर लेगा.
इसके तुरंत बाद वो मनोज वाजपेयी की फिल्म शूल में साल 1999 में ही दिखे. जिसमें वो एक वेटर के रोल में चंद सेकेंड के लिए नजर आए. ये कहानी यहीं नहीं थमी. मुन्नाभाई एमबीबीएस को वो सीन जिसमें एक चोर सुनील दत्त का पर्स मारकर भागता है और फिर पब्लिक पीटती है, उसमें भी पिटने वाले नवाज ही थे. यहां से भी उन्हें कोई पहचान नहीं मिली.अब इतना समय बिता लेने के बाद भी अगर उपलब्धि नहीं मिलती, तो वही सवाल आता है जो ऊपर लिखा हुआ है कि हम क्या कर रहे हैं. क्यों कर रहे हैं. हो सकता है नवाज के मन में भी ऐसा ही सवाल आया हो, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और वो लगातार काम करते रहे. करते रहे और बस डटे रहे.
आर्थिक तंगी और भेदभाव से भी जूझे नवाज
वो जिस फ्लैट में रहते थे वो भी कई दूसरे लोगों के साथ शेयर करके रहते थे. नवाज की हालत ऐसी हो गई कि वो उसका रेंट भी नहीं दे पा रहे थे. नवाज ने एनएसडी के ही एक सीनियर से मदद मांगी, तो उन्होंने नवाज को गोरेगांव के उनके फ्लैट में इस शर्त में रखा कि वो उनके लिए खाना बनाएंगे. नवाज मान गए. नवाज ने अपनी शक्ल सूरत को लेकर भास्कर और लल्लनटॉप के अलावा और भी कई मीडिया ऑर्गनाइजेशन्स को दिए इंटरव्यू में बताया था कि फिल्मों में जगह बनाना उनके लिए बहुत कठिन था. उन्होंने बताया कि लोग उनकी पर्सनालिटी देखकर तंज करते और उन्हें कम आंकते थे. लोग मुझसे पूछते की मैं हीरो क्यों बनना चाह रहा हूं. क्योंकि मेरे पास न तो शक्ल सूरत है और न ही हाइट. उन्होंने बताया कि उन्होंने इस भेदभाव को भी झेला.
कभी हार न मानने का जज्बा
हालांकि, छोटे-मोटे रोल करते रहने से भी न कतराने की आदत की वजह से नवाज को फायदा हुआ. उनके निभाए गए ब्लैक फ्राइडे के रोल से लेकर, पीपली लाइव और न्यूयॉर्क के रोल तक. ये सभी उन्हें धीमी ही सही लेकिन पहचान दिलाने में मददगार साबित हुए. इसके बाद, नवाज 2012 में विद्या बाल की 'कहानी' और 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के दोनों पार्ट में दिखे. वासेपुर के फैजू को अनुराग कश्यप ने फिल्म के दूसरे पार्ट में लीड में रखा. और फिर जो हुआ वो इतिहास बन गया. वहां से लेकर सैक्रेड गेम्स तक का सफर और हाल फिलहाल में उनकी आई फिल्मों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो आज किसी भी सुपरस्टार से कम नहीं हैं.
ये पूरी कहानी सिर्फ इसलिए नहीं बताई हमने कि हम सिर्फ आपको नवाज को सफर बताना चाह रहे थे, बल्कि इसलिए बताई कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं. जिस भी फील्ड में अच्छा करना चाहते हैं. उसे पाने के लिए छोटी-मोटी और बड़ी परेशानियों आएंगी, लेकिन उनकी वजह से खुद को डिप्रेशन या फ्रस्ट्रेशन में डालने के बजाय हासिल क्या करना है, सिर्फ ये सवाल अपने मन में रखिए और उसे पाने के लिए नई ऊर्जा के साथ लग जाइए.