नई दिल्ली : चाहे वह दिग्गज लेखक सआदत हसन के किरदार को फिल्म 'मंटो' में जीवंत करना हो या फिल्म 'बाबूमोशाय बंदूकबाज' में अब तक का सबसे 'बेशर्म' किरदार हो, अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी उन फिल्मों का हिस्सा बन रहे हैं, जो अब तक राज रहे पहलुओं को उजागर करने का काम कर रही हैं.
जहां मौजूदा दौर में बड़े बजट में बनी फिल्म 'बाहुबली' ने भारतीय फिल्म उद्योग के लिए एक नई मिसाल पेश की है, वहीं बहुमुखी प्रतिभा के धनी अभिनेता का कहना है कि किसी फिल्म को करने का फैसला वह उसके बजट, उससे जुड़े निर्देशक या कलाकारों को देख कर नहीं करते हैं.
उन्होंने कहा कि फिल्म चाहे कितनी ही बड़ी हो या इससे चाहे कितने ही मशहूर निर्देशक जुड़े हों, लेकिन जब तक उन्हें फिल्म समझ में नहीं आती, वह नहीं करते हैं.