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Nusrat Fateh Ali Khan Death Anniversary: पिता से छिपकर हारमोनियम बजाते थे नुसरत, फिर ऐसे मनवाया अपने हुनर का लोहा

Nusrat Fateh Ali Khan: उनकी आवाज के अनूठेपन ने लोगों को दीवाना बनाया तो रुहानियत आज भी झूमने पर मजबूर कर देती है. बात हो रही है नुसरत फतेह अली खान की, जिन्होंने आज ही के दिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.

Nusrat Fateh Ali Khan Unknown Facts: संगीत को सरहद से कोई फर्क नहीं पड़ता. वह जब उफान पर होता है तो हर हद को पार कर जाता है. भारत और पाकिस्तान में तमाम शायर, गायक और कलाकार ऐसे हुए हैं, जिनके लिए सरहद कभी आड़े नहीं आई. कुछ ऐसा ही रुआब नुसरत फतेह अली खान का भी रहा. उनके शब्दों में ऐसा जादू है, जो उनकी आवाज एक बार सुन लेता है, वह बस उन्हीं का होकर रह जाता है. दरअसल, नुसरत साहब ने साल 1997 में आज ही के दिन यानी 16 अगस्त को इस दुनिया को अलविदा कहा था. ऐसे में हम आपको उनकी जिंदगी के चंद किस्सों से रूबरू करा रहे हैं. 

पाकिस्तान में हुआ था नुसरत फतेह अली खान का जन्म

13 अक्टूबर 1948 के दिन पाकिस्तान के फैसलाबाद में नुसरत फतेह अली खान का जन्म हुआ था. उनका परिवार भी बंटवारे का शिकार हुआ, क्योंकि विभाजन से पहले वह भारत के जालंधर में ही रहते थे. नुसरत के पिता फतेह अली खान साहब अपने जमाने के बेहतरीन कव्वाल थे, जिसके चलते उनके घर में कव्वाली सीखने वालों का मजमा लगा रहता था. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि घर में कव्वाली का माहौल होने के बाद भी नुसरत साहब ने पिता से छिप-छिपकर हारमोनियम बजाना सीखा था. 

नुसरत को कव्वाल बनाना ही नहीं चाहते थे उनके पिता

नुसरत अली खान का असली नाम परवेज था. एक सूफी संत ने उनके पिता से उनका नाम बदलने के लिए कहा था. साथ ही, कहा था कि इसका नाम कुछ यूं रखो कि घर में रोशनी आए. इसके बाद परवेज का नाम बदलकर नुसरत रखा गया, जिसका मतलब कामयाबी की राह होता है. बता दें कि नुसरत साहब के पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे, क्योंकि उनके पांच बच्चों में सबसे छोटे नुसरत स्वभाव से इतने ज्यादा शर्मीले थे कि उनके पिता को लगता था कि वह कव्वाली के पेशे का भार नहीं उठा पाएंगे.

छिप-छिपकर सीखते थे हारमोनियम बजाना

नुसरत साहब के पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे. इसके चलते उनके संगीत सीखने और क्लास में बैठने तक पर मनाही थी. ऐसे में नुसरत सबसे छिपकर अपने पिता की कव्वाली सुनते थे और अपने चाचा से हारमोनियम-तबला बजाना सीखते थे. एक दिन फतेह अली खान साहब ने नुसरत को तबला बजाते देख लिया. इसके बाद परिजनों के समझाने पर उन्होंने नुसरत को कव्वाल बनने की इजाजत दे दी थी. हालांकि, यह सब सीखने के लिए भी उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी, क्योंकि एक गलत तान पर नुसरत के गाल पर चांटा पड़ता था. धीरे-धीरे नुसरत साहब की मेहनत रंग लाई और उनकी आवाज हर किसी के दिल की धड़कन बन गई.

निधन के तीन साल बाद रिलीज हुआ था आखिरी गाना

बता दें कि नुसरत फतेह अली खान की किडनी और लिवर में समस्या थी. जब किडनी ट्रांसप्लांट के लिए वह लॉस एंजिल्स जा रहे थे, तब रास्ते में तबीयत बिगड़ने पर उन्हें लंदन के अस्पताल ले जाया गया. वहां दिल का दौरा पड़ने से 16 अगस्त 1997 के दिन उनका निधन हो गया. बता दें कि साल 2000 के दौरान रिलीज फिल्म धड़कन का गाना 'दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है' नुसरत साहब का किसी बॉलीवुड फिल्म में इस्तेमाल हुआ आखिरी गाना था, जो उनके निधन के तीन साल बाद इस्तेमाल किया गया था.

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