मुंबई: प्यार की कोई भाषा नहीं होती...प्यार में शोर की ज़रूरत नहीं होती...प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं बल्कि महसूस करने का भी नाम है... अप्रैल के महीने में शूजित सरकार ले कर आए हैं 'अक्टूबर'. इस फिल्म की लव स्टोरी बेहद सरल मगर दिल को छू लेने वाली है.


कहानी:
शिउली यानि बनिता संधू और डैन यानि वरुण धवन होटल मैनेजमेंट के छात्र हैं और एक फाइव स्टार होटल में इंटर्नशिप कर रहे होते हैं. डैन अपने काम को लेकर बेफिक्र है मगर शिउली शांत स्वाभाव की है. वह ग्रुप फ्रेंड्स हैं और इनमें कोई खास बातचीत नहीं होती. एक एक्सीडेंट के बाद जब शिउली अस्पताल में बेसुध महीनों तक भर्ती रहती हैं और डैन एक पल को शिउली का साथ नहीं छोड़ता है तभी उसे एक अनकहे प्यार का एहसास होता है. अक्टूबर में शिउली का मतलब बहुत गहरा है और इससे समझने के लिए फिल्म देखना ज़रूरी है.



1. तारीफ-ए-काबिल 'पीकू' और 'पिंक' जैसी फिल्म के बाद शूजित सरकार की 'अक्टूबर' एक खूबसूरत कविता की तरह है. जिसे देख कर एक सुकून सा महसूस होता है. आज की दौड़ भाग और शोर शराबे की जिन्दगी के बीच एक ठहराव है 'अक्टूबर' जिसे बेहद खूबसूरती से शूजित और जूही चतुर्वेदी ने लिखा है.


2. वरुण धवन ने 'बदलापुर' के बाद एक बार फिर साबित कर दिया कि वह एक बेहतरीन एक्टर हैं. शूजित सरकार की सोच को वरुण ने बखूबी परदे पर उकेरा है. खास तौर पर कुछ सीन्स तो दिल को छू जाते हैं. मानो वरुण इस किरदार में रम गए हों. 'अक्टूबर' में आपको एक अलग ही वरुण धवन नजर आने वाला है इसका दावा किया जा सकता है.


3. बनिता संधू की यह पहली फिल्म है और देखा जाये तो उनके पास फिल्म में कोई डायलाग भी नहीं है मगर उसे आप परदे पर देखना चाहेंगे क्योंकि बनिता की आंखों में ही अभिनय है और यह आसान नहीं है. शिउली की मां के किरदार में गीतांजलि राव ने अपने अभिनय की छाप छोड़ी है.


4.शांतनु मोइत्रा का ओरिजिनल म्यूजिक बेहद खूबसूरत और कर्णप्रिया हैं और आपके एक सफर पर लिए जाता है.


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निष्कर्ष:

-'अक्टूबर' फर्स्ट हाफ थोड़ी स्लो है और कहानी को बढ़ने में वक़्त लगता है. सेकंड हाफ फिल्म में रफ़्तार लाती है और क्लाइमेक्स दिलचस्प है.

- वरुण धवन के होने के बावजूद फिल्म देखने के लिए शायद दर्शकों को सिनेमाघरों तक आने में वक़्त लगे. लेकिन थोड़े पेशेंस की ज़रूरत है.

- हर फिल्म की एक डेस्टिनी होती है और ऐसे में 'अक्टूबर' बेहद खास है.