उन्होंने कहा, "मैंने अपना सारा सामना बांधा और सीधे भट्ट सर के घर यह बताने के लिए चला गया कि मैं मुंबई छोड़ने से पहले वास्तव में उनके बारे में क्या सोचता हूं. वह छठी मंजिल पर रहते थे और लिफ्ट काम नहीं कर रही थी. मैं जैसे ही पहुंचा, मैंने उन्हें खिड़की के पास ले जाकर टैक्सी दिखाई, जिसमें मैं यात्रा कर रहा था और उन्हें बताया कि मैंने अपना सारा सामना बांध लिया है और मैं मुंबई छोड़ रहा हूं लेकिन इससे पहले कि मैं जा सकूं, मैं चाहता हूं कि आप जान सकें कि आप दुनिया के नंबर एक धोखेबाज हैं. मैं साथ ही रो भी रहा था, मैं निराश था और डरा हुआ था. गुस्से में मैं उन्हें प्रभावित करने वाली कुछ बातें सुनाना चाहता था, इसलिए मैंने कहा 'भट्ट साहब आप सच्चाई पर एक फिल्म बना रहे हैं लेकिन आपके अंदर कोई सच्चाई बाकी नहीं रह गई है. आप इस तरह की फिल्म कैसे बना सकते हैं, जब यह झूठ है. मैं एक ब्राह्मण हूं और मैं आपको श्राप देता हूं."'
अनुपम ने आगे बताया कि फिर महेश भट्ट ने उन्हें फिल्म 'सारांश' में महत्वपूर्ण किरदार में लेने का फैसला कर लिया. अनुपम ने 'अर्बन नक्सल्स' किताब की लॉन्च के मौके पर अपने जीवन के संघर्षो के बारे में भी खुलासा किया.
उन्होंने कहा, "मैं घर से भाग गया, एक्टिंग क्लास के ऑडिशन के लिए मैंने मां के पर्स से 100 रुपये चुरा लिए. मैं पकड़ा गया और मुझे थप्पड़ खाने पड़े. मेरे माता-पिता सामान्य माता-पिता की तरह थे. छोटी-मोटी बातों के लिए भी मां मुझे पीट देती. पढ़ाई में मैं बहुत खराब था. स्कूल में मेरे 38 प्रतिशत से ज्यादा अंक कभी नहीं आए. खेलों में भी मैं अच्छा नहीं था. एक बार मेरे पीटी टीचर ने मुझे देखा और कहा कि अगर मैं अकेला भी दौड़ूं तो भी मैं दूसरे स्थान पर आऊंगा. मुझ में कुछ भी असाधारण नहीं था."
खैर, अनुपम का भले ही यह दावा हो कि उनमें कुछ भी असाधारण खूबी नहीं है, लेकिन वह जितने बेहतरीन अभिनेता और अच्छे इंसान है, यह उनकी किसी असाधारण खूबी से कम नहीं है.