एक ऐसे किरदार को पर्दे पर निभाना जिसको न किसी ने देखा और न जाना वो केवल कुछ कागज के पन्नों पर है, उसे पर्दे पर निभाना काफी मुश्किल काम है. लेकिन इसे पर्दे पर दीपिका पादुकोण ने बड़ी ही शालीनता से निभाया है. जिस शालीनता से दीपिका ने इसे निभाया है वो शायद ही उनके अलावा कोई और अभिनेत्री निभा पाती.
इस फिल्म पर बात करते हुए एक बार दीपिका ने कहा था, ‘’जब आप चंद कागज के पन्नों पर लिखे एक ऐसे किरदार को पढ़ रहे होते हैं तो आपको अंदर से एक अजीब सा डर होता है. वो डर इस बात का होता है कि क्या आप उस किरदार को समझ पाए हैं और क्या वो किरदार पर्दे पर जीवंत लगेगा. लेकिन जब दो साल बाद फिल्म में उसे देखते हैं तो वो एक गर्व का पल होता है. मेरे लिए रानी पद्मावती की किरदार वैसा ही एक किरदार है.’’
शेर के मुंह से शिकार छिन लाती है रानी पद्मावती
यूं तो फिल्म की कहानी में कुछ नया नहीं है, कहानी पूरी तरह भक्ती काल के निर्गुण प्रेमाश्रयी कवि मोहम्मद जायसी के काव्य ‘पद्मावत’ पर आधारित है. लेकिन संजय लीला भंसाली का निर्देशन उस किरदार के उन खास पहलुओं को दिखाता है जो राजपूतों की शौर्य गाथा के साथ उस दृढ़ता को भी दर्शाता है कि ‘राजपूती कंगन में भी उतनी ही ताकत है जितनी की राजपूती तलवार में…’. रानी पद्मावती को 'ब्यूटी विद ब्रेन' का एक बेहतरीन उदाहरण माना जा सकता है. वो जितनी खूबसूरत है उतनी समझदार भी. वो चित्तौड़ में बैठे-बैठे दिल्ली में अपने दुश्मन का सिर कलम करवाने की जज्बा रखती है.
दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी तक रानी पद्मावती की खूबसूरती का महिमा मंडन करने वाले राघव चेतन को चित्तौड़ से बगावत के लिए पद्मावती, खिलजी के हाथों मरवा देती है. वो हथियार का इस्तेमाल किए बिना राघव चेतन का सिर कलम करवा देती है. जब खिलजी धोखे से चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह को कैद कर लेता है तो रानी दिल्ली जाकर अपने सुहाग को सही सलामत चित्तौड़ तो ले ही आती है साथ ही अपनी इज्जत पर आंच तक नहीं आने देती. खिलजी के किले से रतन सिंह को निकाल पाना शेर के मुंह से शिकार छिनने जैसा है.
जान से पहले स्वाभिमान
फिल्म में रानी पद्मावती दुनिया को चीख-चीख कर ये संदेश देती दिखती है कि राजपूतों के लिए जान से पहले स्वाभिमान है. वो अपनी जान दे सकते हैं लेकिन अपने स्वाभिमान पर कोई आंच नहीं आने देंगे. फिल्म के अंतिम सीन में रानी पद्मावती जब जौहर के लिए अपनी क्षत्राणियों से संवाद कर रही होती है तो वो कहती है, ‘हमारे शरीर को पाने की लालसा रखने वाले दुश्मन के हाथ हमारी परछाई भी नहीं लगेगी,ये शरीर राख हो जाएगा लेकिन अमर रहेगी राजपूती शान और स्वाभिमान...’.
पद्मावती जौहर करने का फैसला कर के दुश्मन खिलजी को ये बता देती है कि किसी के भी नापाक इरादे राजपूती स्वाभिमान को झुका नहीं सकते. साथ ही वो ये भी संदेश देती दिखती है कि औरत को केवल अपने मनोरंजन की वस्तु समझने वाला खिलजी ये जंग जीत भले ही जाएगा लेकिन उनके आत्मविश्वास और समर्पण के आगे वो जीत कर भी हार जाएगा.
राजपूती मां की कोख से पैदा होता है वीर
फिल्म में एक सीन दिखाया गया है जिसमें रानी पद्मावती दिल्ली में खिलजी के महल से राजा रावल सिंह को सुरक्षित ले तो आती है लेकिन इस जंग में वो अपने सेनापति गोरा और उसके भतीजे बादल को बचा नहीं पाती. जब पद्मवाती ये संदेश लेकर बादल की मां के पास पहुंचती है तो उन्हें सांतवना में दो शब्द कहती है, लेकिन तभी बादल की मां कह उठती है कि अपनी जन्म भूमि के लिए युद्ध लड़ना तो मेरे बेटे का कर्तव्य है और वो युद्ध में लड़ते समय वीरगती को प्राप्त हुआ उस पर आंसू बहाना सही नहीं. तब रानी पद्मावती का किरदार निभा रही दीपिका कहती है ‘आज जाना कि राजपूत वीर क्यों कहलाते हैं, क्योंकि आप जैसी मां उन्हें जन्म देती है’. इस डायलॉग में जहां रानी पद्ममनी दुख से बोझिल है वहीं वो राजपूती शौर्य से भी लबालब है. इस सीन में दीपिका का अभिनय बेहतरीन है.
जब आप फिल्म देखेंगे तो आपको एक सीन दिखेगा जिसमें सिर धड़ से अलग हो जाने के बाद भी बादल के धड़ को लड़ता हुआ पाएंगे. इस पर मेवाड़ के राजकवि व हिंदी के कवि पंडित नरेंद्र मिश्र ने बादल की वीरगाता सुनाते हुए लिखा था ‘ज्वालामुखी फूट पड़ा हो जैसे तूफानी, सदियां दोहराएंंगी बादल की रण रंग कहानी'. ये कुछ ऐसे प्रसंग हैं जो फिल्म में राजपूतों की एक ऐसी शौर्य गाथा की कहानी सुनाते हैं जिसे जानकर हर राजपूत का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा.