स्टार कास्ट: दीपिका पादुकोण, शाहिद कपूर, रणवीर सिंह, जिम सरभ, रज़ा मुराद, अनुप्रिया गोयंका
डायरेक्टर: संजय लीला भंसाली
रेटिंग: 3.5
'एक जंग हुस्न के नाम...' ये इस फिल्म का एक डायलॉग है और पूरी फिल्म इसी के इर्द गिर्द घूमती है. ये जंग रानी पद्मावती को पाने के लिए सनकी, पागल सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी शुरू करता है. इस फिल्म में जंग सिर्फ राजपूतों और खिलजियों के बीच नहीं होती बल्कि हर किरदार एक जंग लड़ रहा होता है. पद्मावती अपनी मर्यादा बचाने की जंग लड़ती हैं, राजा रतन सिंह चित्तौड़ और राजपूतों की आन-बान और शान के लिए लड़ रहे होते हैं. खिलजी की पत्नी मेहरून्निसा अपने ही पति से लड़ती है.
इस फिल्म को लेकर उपजे विवाद के बाद सेंसर बोर्ड ने फिल्म का नाम बदलने और डिस्क्लेमर लगाने के लिए कहा था. फिल्म शुरू होने से पहले ही ये डिस्कलेमर आता है कि कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है और ये फिल्म कहीं से भी सती प्रथा को बढ़ावा नहीं देती है. लेकिन फिल्म में 'जौहर' को जितना महिमामंडित (ग्लोरिफाई) करके दिखाया गया है वो दिमाग पर बहुत ही गहरी छाप छोड़ती है. डिस्क्लेमर में ये भी बता दिया गया है कि फिल्म की कहानी मलिक मोहम्मद जायसी की 1540 में लिखी कविता 'पद्मावत' पर आधारित है जिसमें रानी पद्मावती के साहस और रापजूपों के वीरता की गाथा है.
फिल्म में एक भी विवादित सीन नहीं है
फिल्म देखने के बाद इस पर हो रहा विवाद भी पूरी तरह खत्म हो जाता है. इस फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है जिससे किसी की भावना को ठेस पहुंचे. रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के जिस ड्रीम सीक्वेंस को लेकर इतना बवाल हो रहा है वैसा इस फिल्म में कुछ है ही नहीं. यहां तक कि ये दोनों किसी फ्रेम में साथ तक नहीं दिखे हैं. फिल्म देखने के बाद तो ऐसा ही लगता है कि फिल्म का नाम 'पद्मावती' होता तो भी राजपूतों की शान को कोई ठेस नहीं पहुंचती. फिल्म राजपूतों की शौर्य गाथा तो है, इसमें उनके बखान में इतने ज्यादा डायलॉग भर दिए गए हैं कि दो चार तो आपको भी याद रह जाएंगे.
अभिनेता जिम सरभ इस फिल्म में सरप्राइज पैकेज की तरह हैं. उन्होंने गुलाम मलिक काफूर का किरदार निभाया है. फिल्म में राजा रतन सिंह से उनके परिचय में कहा जाता है कि 'उन्हें खिलजी का बेगम ही समझ लीजिए.' जिम ने फिल्म में खिलजी के लिए रोमांटिक गीत भी गाया है जिस पर खिलजी डांस करता है.
फिल्म में एक किरदार जिसने बहुत ही निराश किया है वो हैं अनुप्रिया गोयंका जिन्होंने रतन सिंह की पहली पत्नी नागमति का किरदार निभाया है. अनुप्रिया ने अपने हर सीन को बहुत ही कमजोर बना दिया है. उनके चेहर पर ना तो कहीं भाव दिखता है और ना ही वो अपना डायलॉग ढ़ंग से बोल पाई हैं. अगर अपने किरदार की तैयारी के लिए वो बाजीराव मस्तानी में काशीबाई (प्रियंका चोपड़ा) को भी देख लेतीं तो शायद बहुत अच्छा कर सकती थीं.
इसमें अलावा इस फिल्म में अदिती राव हैदरी और रजा मुराद सहित सभी एक्टरों ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है.
डायलॉग
ये फिल्म बहुत लंबी है लेकिन जो चीज इसे देखने लायक बनाती है उनमें से एक हैं इसके दमदार संवाद. करीब पौने तीन घंटे की इस फिल्म के हर सीन में एक ऐसा डायलॉग है जिसे सुनकर आपको मजा आ जाएगा. जैसे-
- कह दीजिए अपने सुल्तान से कि उनकी तलवार से ज्यादा लोहा हम सुर्यवंशी मेवाड़ियों के सीने में है- राजा रतन सिंह
- अल्लाह की बनाई हर नायाब चीज पर पहला हक़ खिलजी का है- खिलजी
- पहले तीर से घायल किया और अब तेवर से- राजा रतन सिंह
- जिस इतिहास में मेरा नाम नहीं उसे सजा दे रहा हूं- खिलजी
- सुल्तान बनने के लिए गर्दन और इरादे दोनों मजबूत होने चाहिए- खिलजी
- तुमने हमारा सबसे बड़ा ख्वाब छीन लिया हम तुमसे तुम्हारा वजूद छिन लेंगे- खिलजी
- चित्तौड़ के आंगन में एक और लड़ाई होगी जिसे आजतक ना किसी ने देखी होगी ना किसी ने सुनी होगी और यही अलाउद्दीन खिलजी की सबसे बड़ी हार होगी- पद्मावती
- राजपूती कंगन में उतनी ही ताकत है जितनी राजपूती तलवार में- पद्मावती
- चिंता को तलवार की नोक पे रखे, वो राजपूत...रेत की नाव लेकर समुंदर से शर्त लगाए, वो राजपूत...और जिसका सर कटे फिर भी धड़ दुश्मन से लड़ता रहे, वो राजपूत- राजा रतन सिंह
डायरेक्शन
भंसाली जिस तरह की फिल्में बनाते हैं आए हैं 'पद्मावती' का नाम भी उसी में जुड़ गया है. इस फिल्म को बनाने में 200 करोड़ खर्च हुए हैं. ये भव्यता फिल्म में भी दिखती है. हर एक सीन वास्तविक लगता है, कोई भी सीन नकली नहीं लगता. हालांकि युद्ध के सीन थोड़ कमजोर लगते हैं. ये सीन आते है और तुरंत खत्म हो जाते हैं. जौहर के जिस सीन को भंसाली ने बहुत ही खींचा है अगर उसकी जगह वो रणभूमि के दृश्यों पर ध्यान देते तो बात ही कुछ और होती. भंसाली के सिनेमा का अपना स्टाइल है और वो उसी के लिए जाने जाते हैं लेकिन अब उन्हें अपने एक ही तरह के इस ढर्रे से निकलना चाहिए. इस फिल्म को देखते समय उनकी पिछली फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' और 'रामलीला' की याद आ जाती है. इसकी वजह कुछ और नहीं बल्कि कुछ दृश्यों का एक ही तरह फिल्माया जाना है.
म्यूजिक
फिल्म के गाने भी भंसाली ने ही लिखे हैं और उसका फिल्म स्कोर संचित बलहारा ने तैयार किया. इसमें पारंपरिक धुनों को इस तरह पिरोया गया है जिससे फिल्म को मजबूती मिलती है. फिल्म के बैकग्राउंड में जो धुन चलती है वो भी कानों को बहुत सुकून देती है. 'घूमर' गाना पहले ही हिट हो चुका है. इसके अलावा 'एक दिल एक जान' सहित कुल 6 गाने हैं जो फिल्म को देखने लायक बनाते हैं.
क्यों देखें
इस फिल्म ने रिलीज के लिए ही बहुत बड़ी लड़ाई लड़ी है. फिल्म की शूटिंग के समय जो विवाद शुरू हुआ वो उसने थमने का नाम नहीं लिया. फिल्म में बदलाव कराए गए. फिल्म में इतना पैसा लगा है कि मेकर्स रिलीज के लिए हर शर्त मानने को तैयार हो गए. सुप्रीम कोर्ट ने भी रिलीज करने को मंजूरी दे दी है बावजूद इसके इस फिल्म का विरोध हो रहा है. लेकिन इन सब के इतर अगर आप भंसाली के फैन हैं, कुछ खूबसूरत देखना चाहते हैं तो इस फिल्म को देखें. फिल्म कहीं-कहीं स्लो है लेकिन इसमें ना तो कुछ विवादित है और ना ही आपत्तिजनक. फिल्म की कहानी पहले से दर्शकों को पता है लेकिन इसे पर्दे पर किस तरह दिखाया गया ये जानने की ललक पूर फिल्म में बनी रहती है. अच्छी बात ये है कि इसे आप पूरी फैमिली के साथ देख सकते हैं.