मुंबई: केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा सुमन घोष की डॉक्युमेंट्री फिल्म 'द आरग्युमेंटेटिव इंडियन' से छह शब्द को बीप करने के निर्देश पर जहां एक ओर बोर्ड निशाने पर है, वहीं सीबीएफसी के अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने तर्क दिया है कि इन शब्दों को हटाने से रचनात्मकता प्रभावित होना महसूस करने का कोई कारण नहीं है, जब ये शब्द संस्कृति और लोकतंत्र की स्पष्ट अवमानना को दर्शाते हैं.


निहलानी ने कहा, "मेरे पास प्रिंट मीडिया और टेलीविजन चैनलों के लगातार ढेर सारे फोन आ रहे हैं, जो पूछ रहे हैं कि हमने डॉक्युमेंट्री में छह शब्दों की जगह बीप लगाने का निर्देश क्यों दिया है. इसका कारण यह है कि हमें लगा कि नोबेल पुरस्कार विजेता पर डॉक्युमेंट्री में हमारे राजनीति और धर्म को असंवेदनशील रूप में दर्शाने से देश में शांति और सामंजस्य को गंभीर खतरा हो सकता है. एक जगह सेन ने भारतीय लोकतंत्र के बारे में बात की और गुजरात के 'क्रिमिनलिटीज' (अपराधिता) का हवाला दिया, इसलिए हमने 'गुजरात' शब्द हटाने के लिए कहा."


उन्होंने बताया कि डॉक्युमेंट्री में एक जगह धार्मिक नेतृत्व का संदर्भ देश के दुश्मन के तौर पर दिया गया है, जहां से उन्होंने 'भारत' शब्द हटाने के लिए कहा है. एक जगह प्रोफेसर सेन भारत की बात करते हैं, जहां 'हिंदू' के के रूप में इसकी व्याख्या की गई है, इस शब्द (हिंदू) को हटाने के लिए कहा गया है. चौथा कट 'गाय' शब्द को लेकर हैं, जहां प्रोफेसर धार्मिक एकीकरण की बात करते हुए गाय का तुच्छ संदर्भ देते हैं.


उन्होंने बताया कि पांचवा कट 'यूज्ड' और 'दीज डेज' शब्द को लेकर है, जहां सेन कहते हैं कि वेदों का इस्तेमाल आजकल सम्प्रदायवादी कर रहे हैं और अंतिम शब्द 'बैनल' को हटाने के लिए कहा गया है, जहां सेन ने भारत के हिंदुत्व विचार को घिसा-पिटा बताया है.


उन्होंने कहा कि इन छह शब्दों को बीप करने से कलात्मक स्वतंत्रता पर कोई असर नहीं पड़ता है और इसे व्यापक संदर्भ में देखना चाहिए.


निहलानी ने यह भी कहा कि डॉक्युमेंट्री निर्माताओं ने कानून का उल्लंघन किया है. उन्होंने कहा, "वे सेंसर बोर्ड के प्रमाण-पत्र के बिना भारत के विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर फिल्म की स्क्रीनिंग कर रहे हैं. यह अवैध है. अभिव्यक्ति की आजादी की बात तो ठीक है, लेकिन कानून तोड़े जाने के बारे में क्या?"