नई दिल्ली: बॉलीवुड अभिनेत्री अनुष्का शर्मा की फिल्म फिल्लौरी सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. ये दूसरी फिल्म है जिसे अनुष्का प्रोड्यूस कर रही हैं और एक्टिंग करती हुई भी नज़र आ रही हैं. इस फिल्म में पंजाबी सिंगर और एक्टर दिलजीत दोसांझ भी हैं. इस फिल्म को समीक्षकों ने अच्छा बताया है और रेटिंग भी अच्छी दी है. यहां आपको बता रहे हैं कि समीक्षकों ने इस फिल्म को देखने के बाद इसके बारे में क्या लिखा है.


जाने माने समीक्षक अजय ब्रहमात्ज इस फिल्म को तीन स्टार देते हुए लिखते हैं, 'लोककथाओं में भत-भूतनी के किरदार मिलते हैं. आज की प्रेमकहानी में लोककथा के तत्‍व जोड़ कर दिखाना कुछ समय के लिए रोचक लगता है. इस फिल्‍म में भी कनन से भूतनी के मिलने की कहानी हंसाती है. आगे बढ़ने पर शशि की मदद में कनन की कोशिश देर की कौड़ी लगती है. 98 साल पहले हुए किसी हादसे से कहानी इस रूप में जोड़ना पल्‍ले नहीं पड़ता. यही कारण है कि फिल्‍म अपना असर खो देती है.



अजय ब्रहमात्ज  आगे लिखते हैं, 'कलाकारों में अनुष्‍का शर्मा और दिलजीत दोसांझ पर्दे पर अच्‍छे लगते हैं. कनन के रूप में सूरज शर्मा किरदार की उलझनों को अच्‍छी तरह व्‍यक्‍त करते हैं. अनु के किरदार में महरीन पीरजादा कौर ज्‍यादा प्रभावित नहीं करतीं. पंजाब में कनन और अनु के परिवार के सदस्‍यों में दादी पर ही नजर अटकती है. पुरानी प्रेमकथा को निर्देशक ने अपनी तकनीकी टीम की मदद से सही रंग और ढंग में पेश करते हैं. अभी के समय के चित्रण में वही कौशल नहीं दिखा है. फिल्‍म अटकती और धीमी होती है.'



हिंदुस्तान हिंदी ने इस फिल्म को 2.5 स्टार देते हुए लिखा है, ' इस तरह की फिल्म में कॉमेडी की अच्छी खासी संभावना थी जो कुछेक जगह पर ही असर छोड़ती है. एक दोस्ताना भूत के रूप में अनुष्का ने बहुत सहज अभिनय किया है. साधारण स्क्रिप्ट और औसत डायलॉग्स की वजह से लगता है कि उनके करने के लिए अभी भी बहुत कुछ रह गया. हां, फिल्म को क्लाइमैक्स तक पहुंचाने वाला एक खुलासा चौंकाता है और वह फिल्म की कहानी का काफी मजबूत पहलू भी है यह खुलासा क्या है, यह रहस्य खोलना ठीक नहीं होगा.'


सत्याग्रह ने 2.5 स्टार देते हुए लिखा है, 'अनुष्का शर्मा फिल्लौरी में एक अलग किस्म का किरदार बनती हैं, एक भूतनी, जो हमारी आज की नायिकाएं किसी फिल्म के लिए शायद ही बनें. लेकिन उम्दा कम्प्यूटर कारीगरी से तैयार किए इस किरदार के लिए वे कुछ खास मेहनत-मशक्कत नहीं करतीं. आज से 100 साल पहले वाले किरदार में प्राण फूंकने के लिए कोई अलहदा लहजा नहीं इस्तेमाल करतीं और जैसी वे रियल लाइफ में हैं, ठीक वैसी ही इस फिल्म में नजर आती हैं. यह तो उनकी स्क्रीन प्रजेंस का कमाल है कि इसके बाद भी वे फिल्म में दर्शनीय बनी रहती हैं, और यह कोई छोटी बात नहीं है.'