मुंबई : प्रसिद्ध अभिनेत्री और रंगमंच की दुनिया का चर्चित चेहरा रत्ना पाठक शाह देश में लोगों के बीच बढ़ती दूरी से चिंतित हैं और उनका मानना है कि वक्त आ गया है कि लोग उस एजेंडे के खिलाफ लड़नें के लिये एकजुट हो जाए जो फैलाया जा रहा है.


अभिनेत्री की हालिया फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के पास अटक गयी थी. उन्होंने कहा कि यह दुखद है कि 'उदार' शब्द ने आज एक नकारात्मक अर्थ ले लिया है.

यह पूछे जाने पर कि क्या सेंसर बोर्ड हमेशा से इतना सख्त था जितना आज है, रत्ना ने दिये साक्षात्कार में कहा, 'नहीं, वे क्या काट-छांट करते थे इसमें हमेशा मूर्खता दिखती थी, लेकिन मुझे नहीं लगता कि तब ऐसा गंभीर एजेंडा होता था. अब ऐसा लगता है कि कोई एजेंडा है. मैं उस भावना को बयान नहीं कर सकती. मैं उस एजेंडा से लड़ना चाहूंगी.'

रत्ना ने कहा कि यह दुखद है कि देश में महिलाओं को अल्पसंख्यक माना जा रहा है और यह परेशान करने वाला है कि सिर्फ 'बहुसंख्यकों' का विचार ही स्वीकार्य है.

उन्होंने कहा, 'यह मेरा सबसे बड़ा डर है जो देश में आजकल हो रहा है, यह कैसे अल्पसंख्यकों- महिलाओं को प्रभावित करने जा रहा है. महिलायें तो अल्पसंख्यक भी नहीं हैं, हम आबादी का 50 फीसदी हैं लेकिन फिर भी हर किसी के दिमाग में यही है.'

रत्ना ने कहा, 'बहुसंख्यक विचार से इतर कुछ भी आज स्वीकार्य नहीं है. यह बेहद खतरनाक स्थिति होगी और इससे जरूर लड़ा जाना चाहिये.'