Flashback Friday: नेटफ्लिक्स पर 'मामला लीगल है' और थिएटरों में 'लापता लेडीज' आस पास ही रिलीज हुईं. दोनों में कहानी, डायरेक्शन और संवाद सब कुछ बेहतरीन है. लेकिन, फिलहाल हम इन दोनों सीरीज और फिल्म की बात नहीं कर रहे. हम बात कर रहे हैं दोनों में मौजूद एक खास एक्टर की. हम बात कर रहे हैं रवि किशन की. चर्चाएं होनी लाजमी हैं, जब आमिर खान जैसे एक्टर को रिप्लेस कर उनकी एक्स वाइफ और 'लापता लेडीज' की डायरेक्टर किरण राव फिल्म में उनकी जगह रवि किशन को ले लें. चर्चाएं तब और होती हैं, जब इस बात को खुद आमिर खान भी एक्सेप्ट कर रहे हों और कह रहे हों कि हां ऐसा हुआ है.
चर्चा तब भी होगी ही जब 'मामला लीगल है' जैसी हल्की-फुल्की सीरीज गंभीर मुद्दों पर गंभीरता से लेकिन हंसाते हुए सवाल उठा जाए. और चर्चा होना तब और भी जरूरी हो जाता है कि उस सीरीज में बीडी त्यागी जैसा कैरेक्टर हो और उस कैरेक्टर को रवि किशन जैसा कोई कमाल का एक्टर पंख दे जाए. रवि किशन पर बहुत कम बात की गई है. उनके इंटरव्यू भी कम हुए हैं (एक एक्टर की तरह क्योंकि वो एक राजनेता भी हैं). वो अवॉर्ड फंक्शन्स में भी न के बराबर दिखे. लेकिन कुछ बात है उनमें जिनकी वजह से बीडी त्यागी याद रह गया.
'जिंदगी झंड बा....'
यूपी के पूर्वी हिस्सों और बिहार में बोले जाने वाले इस अलग ही तरह के स्लैंग को नैशनल बनाने वाले रवि किशन की शुरुआती जिंदगी भी कुछ ऐसी ही थी. एक्टिंग का शौक था. शौक ऐसा कि ढोल की आवाज में पैर थिरकने लग जाते. नाचना और एक्टिंग करना पसंद था. वो भी उस जमाने में (अभी उनकी उम्र 55 साल के करीब है, बात तब की हो रही है जब वो युवा थे) जब यूपी के दूरदराज गांवो में एक्टिंग और नाचने को लेकर मजाक किया जाता था. एक पुराने इंटरव्यू में रवि किशन ने बताया भी था कि जब वो अपने पापा के पास गए और बताया कि उन्हें एक्टिंग करनी है, तो उनकी बेल्ट से पिटाई हो गई. और इतना ही नहीं, उन्हें 'नचनिया बनेगा' कहके डांटा भी गया. लेकिन ये आशीर्वाद जैसा हो गया उनके लिए. और वो सच में एक्टिंग में धाक जमाने में कामयाब हुए.
काम तो मिला, लेकिन पहचान मिलने में समय लग गया
रवि किशन को लेकर किस्सा ये है कि उनकी मां ने उनको पापा की पिटाई से बचने के लिए 500 रुपये देकर घर से जाने को कहा. दरअसल रवि किशन गांव में हो रही रामलीला में सीता का किरदार निभा रहे थे. पापा को ये बात पता चली तो वो नाराज हुए. मां ने उन्हें पिटाई से बचने के लिए घर से जाने को कहा. सिर्फ वही 500 रुपये लेकर वो मुंबई पहुंच गए. जमाना पुराना था लेकिन 500 रुपये की इतनी भी कीमत नहीं थी कि उससे किसी का मुंबई जैसे शहर में गुजर बसर हो पाए. जैसा कि बहुत से एक्टर्स के साथ हो चुका था वही रवि किशन के साथ भी हुआ. उन्हें भी पेट भरना था काम करना था और पहचान बनानी थी. शुरुआती दिन स्ट्रगल भरे रहे. साल 1991 में रिलीज हुई 'पीतांबर'में उन्हें काम मिला. इसी दौरान उन्होंने 'हैलो इंसपेक्टर' नाम का टीवी सीरियल भी किया.
रवि किशन इस दौरान और भी कई फिल्मों जैसे आर्मी, आतंक, सरेबाजार, आग की चिंगारी जैसी एक नहीं कई फिल्में कीं. यानी उनके पास काम तो था और बराबर था. लेकिन काम को पहचान मिलने में करीब 12 साल लग गए, ये पहचान मिली उन्हें साल 2003 में रिलीज हुई फिल्म 'तेरे नाम' से. एक तरफ सलमान खान जैसा आशिक राधे तो दूसरी तरफ समझदार दीवाना रामेश्वर. लोगों ने जितना पसंद राधे को किया, दबेमुंह ही सही थोड़ी-बहुत बातें रामेश्वर के बारे में भी कीं. ये वो दौर था जब गाड़ी रेंग-रेंगते स्पीड पकड़ने लगी थी.
'20 लात दे' और 'बिग बॉस' का दौर
रवि किशन फिल्में कर रहे थे और काम भी मिल रहा था, लेकिन काम मिलना और काम से पहचान मिलना दोनों अलग-अलग बाते हैं. अब उन्हें पहचान भी मिलनी शुरू हो गई. 2006 में जब उन्हें 'हेरा फेरी 2' में 20 लाख मांगने के लिए तोतला बनकर '20 लात दे' बोलते दर्शक देख रहे थे, तो वो बस हंस रहे थे. दर्शकों को हंसाने में अगर आप कामयाब हैं तो आप कमाल एक्टर हैं. इसी दौरान उन्हें 'बिग बॉस' का ऑफर मिला. लोगों ने ओरिजनल रवि किशन को देखा. ये वही दौर था जब भोजपुरी इंडस्ट्री भी फलना-फूलना सीख रही थी. रवि किशन ने यहां भी फिल्में कीं और उनकी फिल्में कुछ ऐसी हिट हुईं कि लोग उन्हें भोजपुरी का अमिताभ बच्चन तक बोलने लगे.
फिर आया वो दौर जब रवि किशन रिस्पेक्टेड एक्टर की तरह फिल्मों में रोल करने लगे. जैसे 2009 की फिल्म 'लक'. इमरान खान, श्रुति हसन और संजय दत्त जैसे बड़े चेहरों के बीच सबसे ज्यादा तारीफ रवि किशन अपने छोटे से रोल से ले गए. 2010 में आई 'वेल डन अब्ब' से लेकर 2013 की 'बुलेट राजा' जैसी फिल्मों में उन्होंने काम को छोटा-बड़ा न समझ के एक्टिंग को बड़ा समझा. इसका असर भी दिखा और रवि किशन को इन रोल्स के लिए सराहा गया.
भोजपुरी, हिंदी के अलावा साउथ इंडियन फिल्मों तक बनाई पहुंच
रवि किशन ने सिर्फ भोजपुरी और हिंदी तक ही खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्होंने कई फिल्में साउथ इंडियन इंडस्ट्री के साथ भी कीं. रवि किशन ने भोजपुरी में 200 से ज्यादा फिल्में कीं और अल्लू अर्जुन और प्रकाश राज के साथ भी फिल्में कीं. लेकिन साल 2024 कई मायनों में रवि किशन के लिए एक बेहतरीन साल है. ये वही साल है जब रवि किशन के पास अब ऐसे आए, जिनमें उनकी काबिलियत देखने को मिली. लापता लेडीज और मामला लीगल है, दोनों में क्रिटिक्स और दर्शकों दोनों ने उनकी तारीफों के पुल बांध दिए.
उनका हालिया परफॉर्मेंस देखकर साफ पता चलता है कि जैसे वो कहना चाह रहे हों कि ...'अब हम वो रवि नहीं रहे जो....हमको चाहिए फुल इज्जत'. लापता लेडीज में उनके रोल में उतार-चढ़ाव और शेड में इतने रंग हैं कि उसे ठीक से पेश करने में किसी भी बेहतरीन एक्टर को अपनी पूरी एनर्जी झोकनी पड़े, लेकिन रवि किशन ने उस रोल को बड़ी ही सहजता से निभा दिया है. ऐसा लग रहा है मानो रवि किशन ने अपनी आगे की पारी का बिगुल बजाकर संकेत दे दिया है कि वो अब फिर से आएंगे और पूरे बंदोबस्त से आएंगे. वो अब फिर से छाएंगे और उस लिस्ट में अपना नाम लिखने के लिए आलोचकों को मजबूर करेंगे जिसमें नसीर, ओम पुरी और इरफान खान जैसे एक्टर्स के नाम लिखे जाते हैं.