आरडी बर्मन (RD Burman), भारतीय संगीत को जिसने अपने हुनर से तराशा और अपनी धुनों से हिंदी सिनेमा को हुस्न बक्शा. धुनों के सरताज, राहुल देव बर्मन का एक नाम और भी था. 'पंचम'... यानि सरगम का पांचवां सुर. हिंदी सिनेमा संगीत के इसी महान शख्सियत की आज जंयती है. हिंदी सिनेमा संगीत में उनके योगदान पर डालते हैं एक नजर-

ये वो दौर था जब देश को आजादी मिले डेढ़ दशक ही बीते थे. भारतीय सिनेमा अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रहा था.  राज कपूर, दिलीप कुमार, देव आनंद जैसे दिग्गज कलाकार अपनी अदाकारी से हिंदी सिनेमा को नई बुलंदियों पर ले जाने का प्रयास कर रहे थे. हिंदी सिनेमा में संगीत की भूमिका को ये सभी लोग जान चुके थे. इसीलिए एक्टर के बाद सबसे अधिक डिमांड म्यूजिक डायरेक्टर की ही थी.

इस दौर में फिल्मी संगीत दो अलग-अलग भागों में बंटा हुआ था. एक हिस्सा वो जो शास्त्रीय संगीत से बेहद प्रभावित था. नौशाद, खय्याम, एस डी बर्मन, ओ पी नैय्यर, मदन मोहन, हेमंत कुमार, सी रामचंद्र, रोशन, वसंत देसाई आदि ऐसे संगीतकार थे जो भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ नए प्रयोग कर रहे थे. उस जमाने में इनका संगीत लोकप्रिय तो था...लेकिन आम नहीं था. 

वहीं दूसरी तरफ शंकर-जयकिशन, कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, सी रामचंद्र आदि कुछ ऐसे संगीतकार थे जो विशुद्ध शास्त्रीय संगीत से इतर संगीत बना रहे थे. 50-60 के दशक में सी रामचंद्र हिंदी सिनेमा के पहले संगीतकार थे, जो अपनी धुनों में वेस्टर्न म्यूजिकल इंस्ट्रुमेंट्स का प्रयोग कर लोगों को सुना रहे थे. ये वही दौर था जब गोवा से आए म्यूजिक अरेंजर हिंदी सिनेमा संगीत पर छाए थे. उस दौर में स्ट्रिंग इंस्ट्रुमेंट्स का जमकर प्रयोग हो रहा था. 

लेकिन 70 के दशक के तक आते-आते हिंदी सिनेमा संगीत में बडे़ बदलाव की आहट होने लगी थी. 'पंचम' ने इसी बदलते दौर की इब्तदा में अपनी आमद दर्ज कराई थी. इसके बाद जो कारनामे 'पंचम' ने किए उनसे हिंदुस्तान ही नहीं पुरी दुनिया वाकिफ है.

जब हम जवां होंगे...
पंचम दा बचपन से ही धुनें बनाने लगे थे. बेटे के इस हुनर की जानकारी पिता को तब हुई, जब पंचम स्कूल में  बेहद कम नंबर लेकर आए. इस घटना से घर में सन्नाटा पसर गया. पिता सचिन देव बर्मन को जानकारी हुई तो मुंबई से फौरन कोलकाता आ गए. 'पंचम' का रिपोर्ट कार्ड देखकर पूछा- आखिर करना क्या चाहते हो? पंचम ने कहा- संगीतकार बनना चाहते हैं, वो भी आपसे भी बड़ा. पिता ने पूछा- ये काम इतना आसान नहीं है. फिर उन्होने पूछा- कोई धुन बनाई है? इसके प्रश्न के उत्तर में पंचम ने एक नहीं पूरी 9 धुनें पिता के हाथों में थमा दीं.

मेरा कुछ सामान...
बेटे पंचम से बिना कुछ कहे पिता एसडी बर्मन मुंबई लौट आए. कुछ दिनों बाद कोलकाता के एक सिनेमा घर में फिल्म 'फंटूश' लगी, जिसके एक गाने 'ऐ मेरी टोपी पलट के आ' में पंचम की एक धुन पिता ने इस्तेमाल की थी. सचिन देव बर्मन इस फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर थे. पंचम, गाने की धुन सुनकर पिता से बहुत नाराज हुए और पिता से बोले- आपने मेरी धुन चुराई है! इस पर एसडी बर्मन ने पंचम से कहा- नाराज न हो पंचम, मैं तो ये देखना चाहता था कि क्या लोगों को तुम्हारी धुन पंसद आती है कि नहीं.

दो लफ्जों की है ये कहानी...
इसके बाद आरडी बर्मन के संगीत का सफर शुरू हुआ. लेकिन ये आसान नहीं था. आरडी बर्मन कोलकाता से मुंबई आ गए. जहां उनकी संगीत की तालीम शुरू हुई. यहां आरडी बर्मन ने उस्ताद अली अकबर खान से सरोद. समता प्रसाद से तबला बजाना सीखा. इसके साथ ही आरडी बर्मन माउथ ऑर्गन बजाना भी जानते थे. आरडी बर्मन, सलिल चौधरी को भी अपना गुरू मानते थे.

 

दीवाना लेके आया है...
इसके बाद आरडी बर्मन यानि पंचम की असली परीक्षा शुरू होती है. पंचम को करियर का पहला ब्रेक 1959 में मिला. फिल्म का नाम 'राज' था, लेकिन ये पूरी न हो सकी है और बीच में ही बंद हो गई. पंचम का संघर्ष जारी रहा और दो साल बाद 'छोटे नवाब' में संगीत देने का मौका मिला. ये फिल्म महमूद की थी. पंचम की ये पहली फिल्म थी. बाद में दोनों ने 1965 में 'भूत बंगला' में साथ में एक्टिंग भी की. लेकिन पंचम को असली पहचान फिल्म 'तीसरी मंजिल' से मिली. जिसका संगीत लोगों को बहुत पसंद आया. इसके बाद पंचम दा ने फिर पीछे मुड के नहीं देखा.

चुरा लिया है तुमने जो दिल को...
आरडी बर्मन की सबसे खास बात ये थी कि वो कभी भी और किसी भी चीज से म्यूजिक पैदा करने का हुनर रखते थे. फिर चाहें वो व्हिस्की की खाली बोतल हो, या फिर कार का बोनट. स्कूल की बेंच, पंचम दा को जैसे हर चीज में संगीत सुनाई देता था. देवानंद की फिल्म जिसका नाम 'डार्लिंग-डार्लिंग' था, इसका गीत था 'रात गई बात गई' में पंचम ने कुछ ऐसा किया कि किशोर कुमार और देवानंद भी हैरान रह गए. पंचम दा ने अपने साथी मारुति राव कीर की पीठ से ही म्यूजिक पैदा कर दिया. पंचम ने मारुति राव कीर से कहा कि अपनी शर्ट उतारो, इसके बाद पंचम ने उनकी पीठ पर थाप लगाई, इससे जो आवाज निकली उसे पंचम ने धुन के तौर पर इस गाने में प्रयोग किया.  

बड़ा नटखट है ये...
पंचम ने अपने संगीत में पर्कशन इंस्ट्रूमेंट को भी प्रमुखता से शामिल किया. कह सकते हैं कि पर्कशन इंस्ट्रूमेंट के साथ जितने प्रयोग पंचम ने किए उतने किसे न नहीं किए. सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाले विख्यात म्यूजिक डायरेक्टर वनराज भाटिया ने एक इंटरव्यू में कहा था कि पंचम एक जीनियस म्यूजिक डायरेक्टर था.

पंचम ने पारंपरिक म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट का भी बहुत ही खूबसूरती से इस्तेमाल किया. मादल का 'घर' फिल्म के गाने 'तेरे बिना जिया जाए न', 'जोशिले' का गाना 'दिल में जो बातें हैं आज चलों हम कह दें'. 'जीवा', 'बरसात की रात' में पंचम ने खूबसूरत प्रयोग किया और इस यंत्र से शानदर धुनें निकाली, जो आज भी सुनने वालों को हैरात में डाल देती हैं. आशा भोसले की आवाज का सही प्रयोग पंचम ने ही किया. आशा भोसले की गायकी की रेंज को नई बुलंदी प्रदान की.

आरडी बर्मन की टीम शानदार थी. इस टीम में एक से बढ़कर एक काबिल लोग थे, जो अपने फन के माहिर थे. आरडी बर्मन को सुपरहिट बनाने में इन लोगों का भी बड़ा हाथ था. इस टीम में मनोहरी सिंह, मारुति राव कीर, भूपेंद्र सिंह, सुल्तान सिंह, रंजीत गजमेर, केरसी लॉर्ड, राज सोढा, किशोर सोढा, होमी मुल्लन आदि जैसे दिग्गज शामिल थे. जो अपने हुनर से गीतों में जान डाल देते थे. 


जहां तेरी ये नजर है...
आरडी बर्मन ने जब बैकग्राउंड म्यूजिक में कदम रखा तो हिंदी फिल्म के बैकग्राउंड म्यूजिक की दिशा और दशा ही बदल दी. फिल्म 'शोले' के थीम म्यूजिक के साथ बैकग्राउंड म्यूजिक की आज भी चर्चा होती है. फिल्म में डाकुओं के आने पर तबले की धुन का जिस ढंग से प्रयोग किया गया, वह किसी कमाल से कम नहीं है. 'शोले' के थीम म्यूजिक में पंचम ने ट्रम्पेट, स्ट्रिंग इंस्ट्रूमेंट के साथ भारतीय म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट का शानदार प्रयोग किया है. खास बात ये है कि इस फिल्म का थीम सांग पहली बार 6 ट्रेक साउंड में रिकार्ड किया गया था.

फिल्मफेयर अवार्ड: राहुल देव बर्मन

1983 बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर सनम तेरी कसम
1984 बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर मासूम
1995 बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर 1942 : ए लव स्टोरी

 

ये दिन तो आता है एक दिन जवानी में...
पंचम के जीवन में एक पल ऐसा भी आया जिसे वे कभी नहीं भूले और इसे याद करते हुए फक्र महसूस करते थे. पंचम के पिता एस डी बर्मन यानि सचिन देव बर्मन जो खुद भी एक बडे़ संगीतकार थे. फिल्म जगत में इनका बहुत आदर और सम्मान था. वे मुंबई के जूहू में एक पार्क में सुबह के समय अक्सर टहलने जाया करते थे. 

एक दिन वे सुबह टहलकर घर आए और पंचम से बोले- पंचम! आज मैं बहुत खुश हूं. पंचम हैरत में पड़ गए कि पिता जी ये क्या कह रहे हैं? वैसे तो रोज सुबह उठकर ताने देते थे कि देर तक सोता है. मोटा हो रहा है. आज अचानक पिता जी को क्या हो गया है? 

एस डी बर्मन ने कहा- पंचम! जब मैं पार्क में टहलने जाता हूं तो लोग अक्सर कहते हैं कि देखो! एस डी बर्मन जा रहा है, लेकिन आज तो कमाल ही हो गया, लोग कह रहे थे कि देखो! आरडी बर्मन के पिता जा रहे हैं. इस लम्हे को पंचम अपने जीवन के सबसे अच्छे पलों में से एक मानते थे.

रैना बीती जाए...
पंचम को लेकर कुछ लोग ये भी कहते हैं कि वेस्टर्न म्यूजिक पर ही उनकी पकड़ थी, तो ऐसा कहना गलत होगा. पंचम को भारतीय शास्त्रीय संगीत की भी गहरी समझ थी. उनकी तरबियत और तालीम भारतीय शास्त्रीय संगीत में हुई थी. फिल्म 'अमर प्रेम' का रैना बीती जाए गीत में उनकी शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ की एक झलक मिलती है. 

तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा तो नहीं...
आरडी बर्मन ने अपने दौर के हर सफल गीतकारों के साथ काम किया. लेकिन गुलजार के साथ पंचम को सबसे अधिक मुश्किल आती थी. बावजूद इसके दोनों ने मिलकर शानदार गाने बनाए. फिल्म 'आंधी' के गीत लेकर जब गुलजार पंचम के पास पहुंचे तो वे गानों को देखकर परेशान हो गए. पंचम ने गुलजार से कहा- ''कल तुम किसी अंग्रेजी अखबार की हेडिंग लेकर आ जाओगे और कहोगे कि इस पर धुन बनो दो''. पंचम का गुलजार के गीतों को लेकर मानना था कि गुलजार के गानों का मीटर अलग होता है. बावजूद इसके पंचम ने 'तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा तो नहीं' जैसा सदाबहार गीत बनाया.