पद्मावत: स्वरा भास्कर ने भंसाली को लिखा Open Letter, मचा बवाल, जानें- खत में आखिर ऐसा क्या है
फिल्म की कहानी औरत की अस्मिता को लेकर जो संदेश दे रही है, उस ओर इशारा करते हुए स्वरा भास्कर ने लिखा, "आपकी महान रचना के आखिर में मुझे यही लगा. मुझे लगा कि मैं एक योनि हूं. मुझे लगा कि मैं योनि तक सीमित होकर रह गई हूं."
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मुंबई: अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने संजय लीला भंसाली की 'पद्मावती' से 'पद्मावत' हुई फिल्म देखने के बाद बेहद तीखे अंदाज में उनके नाम एक खुला खत लिखा है. अपने खत में उन्होंने कहा, "फिल्म देखने के बाद मैं खुद को योनि मात्र तक ही सीमित महसूस कर रही हूं." उन्हें लगता है कि इस फिल्म ने यह सवाल उठाया है कि विधवा, दुष्कर्म पीड़िता, युवती, वृद्धा, गर्भवती या किसी किशोरी को जीने का अधिकार है या नहीं. 'द वायर' पर प्रकाशित अपने खुले पत्र (ओपन लेटर) में स्वरा ने फिल्म में 'सती' और 'जौहर' जैसे आत्मबलिदान के रिवाजों के महिमामंडन की निंदा की.
'अनारकली ऑफ आरा' की अभिनेत्री ने भंसाली को इतनी परेशानियों के बावजूद 'पद्मावत' को रिलीज करने के लिए बधाई देते हुए अपने पत्र की शुरुआत की. इस दौरान पत्र में उन्होंने कुछ ऐसा लिखा, जिसके लिए सोशल मीडिया पर उनका मजाक उड़ाया जाने लगा. वजह साफ है कि स्वरा दकियानूस खयालों की नहीं हैं.
संजय लीला भंसाली की फिल्म 'गुजारिश' में एक छोटी भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री ने फिल्म देखने के बाद अपनी चिंताएं सोशल मीडिया पर बांटना तय किया. उन्होंने दो टूक कहा कि फिल्म 'पद्मावत' ने उन्हें स्तब्ध कर दिया. फिल्म की कहानी औरत की अस्मिता को लेकर जो संदेश दे रही है, उस ओर इशारा करते हुए उन्होंने लिखा, " आपकी महान रचना के आखिर में मुझे यही लगा. मुझे लगा कि मैं एक योनि हूं. मुझे लगा कि मैं योनि तक सीमित होकर रह गई हूं."
उन्होंने लिखा, "मुझे ऐसा लगा कि महिलाओं और महिला आंदोलनों को सालों बाद जो सभी छोटी उपलब्धियां, जैसे मतदान का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, 'समान काम समान वेतन' का अधिकार, मातृत्व अवकाश, विशाखा आदेश का मामला, बच्चा गोद लेने का अधिकार मिले. सभी तर्कहीन थे. क्योंकि हम मूल प्रश्न पर लौट आए."
उन्होंने लिखा, "हम जीने के अधिकार के मूल प्रश्न पर लौट आए. आपकी फिल्म देखकर लगा कि हम उसी काले अध्याय के प्रश्न पर ही पहुंच गए हैं कि क्या विधवा, रेप पीड़िता, युवती, वृद्धा, गर्भवती, किशोरी को जीने का अधिकार है?" उन्होंने जोर देते हुए कहा कि महिलाओं को रेप के बाद पति, पुरुष रक्षक, मालिक और महिलाओं की सेक्शुएलिटी तय करने वाले पुरुष, आप उन्हें जो भी समझते हों, उनकी मृत्यु के बाद भी महिलाओं को आजाद होकर जीने का हक है.
उन्होंने फिल्म के आखिरी सीन को बहुत ज्यादा असहज बताया, जिसमें अभिनेत्री दीपिका पादुकोण (रानी पद्मावती) कुछ महिलाओं के साथ जौहर कर रही थीं. पुरुषवादी मानसिकता पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा, "महिलाएं चलती-फिरती योनि मात्र नहीं हैं. हां, उनके पास योनि है, लेकिन उनके पास उससे भी ज्यादा बहुत कुछ है. उनकी पूरी जिंदगी योनि पर ही ध्यान केंद्रित करने, उस पर नियंत्रण करने, उसकी रक्षा करने और उसे पवित्र बनाए रखने के लिए नहीं है."
दकियानूसी सोच पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा, "अच्छा होता अगर योनि सम्मानित होती. लेकिन दुर्भाग्यवश अगर वह पवित्र नहीं रही तो उसके बाद महिला जीवित नहीं रह सकती, क्योंकि एक अन्य पुरुष ने बिना उसकी सहमति के उसकी योनि का अपमान किया है." उन्होंने लिखा कि योनि के अलावा भी दुनिया है, इसलिए दुष्कर्म के बाद भी वे जीवित रह सकती हैं. सीधे शब्दों में कहें, तो जीवन में योनि के अलावा भी बहुत कुछ है.
स्वरा ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि भंसाली अपनी इस फिल्म में 'सती प्रथा' और 'जौहर' की कुछ हद तक निंदा करेंगे. उन्होंने लिखा, "आपका सिनेमा मुख्य रूप से प्रेरणाशील और शक्तिशाली है. यह अपने दर्शकों की भावनाओं को नियंत्रित करता है. यह सोच को प्रभावित कर सकता है और सर, आप अपनी फिल्म में जो दिखा रहे हैं और बोल रहे हैं, इसके लिए सिर्फ आप ही जिम्मेदार हैं."
मशहूर कूटनीतिक विश्लेषक सी. उदय भास्कर और फिल्म स्टडीज की प्रोफेसर इरा भास्कर की बेटी स्वरा भास्कर ने खत के आखिरी में लिखा, "स्वरा भास्कर, जीवन की आकांक्षी."
स्वरा का यह लंबा खत अभिनेत्री और गायिका सुचित्रा कृष्णमूर्ति को पसंद नहीं आया. उन्होंने ट्वीट किया, "पद्मावत पर ये नारीवादी बहस क्या बेवकूफी भरा नहीं है? यह महिलाओं की एक कहानी भर है, भगवान के लिए इसे 'जौहर' की वकालत न समझें. अपने मतलब के लिए कोई और मुद्दा उठाएं, जो ऐतिहासिक कहानी न होकर वास्तव में हो."
फिल्मकार अशोक पंडित ने कहा, "तर्कहीन और आधारहीन बातों से सबका ध्यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश के अतिरिक्त यह और कुछ नहीं है. स्वरा भास्कर का दिमाग छोटा होकर एक महिला का अंग मात्र रह गया है. यह नारीवाद को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है."to use the words "reduced to a vagina" is the most repressed and patriarchal line I have read in the longest time. Any woman must question her own psyche for feeling such shame & smallness towards her own gender rather than lash out at a film maker telling a story
— Suchitra Krishnamoorthi (@suchitrak) January 29, 2018
This is nothing but trying to grab eyeballs with zero rationale and logic. @SwaraBhaskar has reduced a queen of brain and might to just a female body part. Does more harm to feminism than good.#JNUkaAsar. https://t.co/IjwUPlDSM3 — Ashoke Pandit (@ashokepandit) January 28, 2018
मनीष मल्होत्रा ने कटाक्ष किया, "अब किसी ने ऐतिहासिक कहानी को सच मान लिया और 100 साल पुरानी कहानी पर एक खुला पत्र लिख दिया. इसका मतलब ये है कि अगर आप इतिहास पर फिल्म बनाएं तो इसमें वर्तमान नारीवाद के सापेक्ष में बदलाव कर दें."
उन्होंने कहा, "दोनों एक ही नाव में सवार हैं, एक वो जो सोचते हैं कि एक फिल्म उनका इतिहास बदल सकती है और दूसरे वो जो सोचते हैं कि इतिहास की एक कल्पित कहानी को आज के नारीवाद के अनुरूप बदलकर पेश किया जाना चाहिए."
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