नई दिल्ली: ''मैं उस समाज की चोली क्या उतारूंगा जो पहले से ही नंगी है. उसे कपड़े पहनाना मेरा काम नहीं. मेरा काम है कि एक सफेद चाक से काली तख्त पे लिखूं ताकि कालापन और भी नुमायां हो जाए." समाज के बारे में कुछ ऐसा सोचते थे सआदत हसन मंटो. मंटो ने अपनी कहानियों में उस सच्चाई को बयां किया जिसे लिखने की हिम्मत हर किसी में नहीं होती. उन पर अश्लील कहांनिया लिखने का आरोप ही नहीं लगा बल्कि मुकदमे भी चलाए गए. 'टोबाटेक सिंह', 'खोल दो', 'ठंडा गोश्त' जैसी कहांनियों को लेकर खूब विवाद हुआ. उन्हें कई बार अपनी लेखनी की वजह से कोर्ट जाना पड़ा लेकिन उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा. अपने बचाव में एक बार कोर्ट में मंटो ने कहा था, ''अगर आप मेरे अफसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसलिए कि यह जमाना ही नाकाबिले-बर्दाश्त है.''


ठंडा गोश्त: 'मंटो' की इस कहानी पर मचा था खूब बवाल, मुकदमा भी चला, पढ़ें पूरी कहानी


मंटो का जन्म 11 मई, 1912 को हुआ था और 18 जनवरी 1955 को 43 साल की उम्र में वो दुनिया से अलविदा कर गए. मंटो अपने बारे में कहते हैं, ''मेरे जीवन की सबसे बड़ी घटना मेरा जन्म था. मैं पंजाब के एक अज्ञात गांव ‘समराला’ में पैदा हुआ. अगर किसी को मेरी जन्मतिथि में दिलचस्पी हो सकती है तो वह मेरी मां थी, जो अब जीवित नहीं है. दूसरी घटना साल 1931 में हुई, जब मैंने पंजाब यूनिवर्सिटी से दसवीं की परीक्षा लगातार तीन साल फेल होने के बाद पास की. तीसरी घटना वह थी, जब मैंने साल 1939 में शादी की, लेकिन यह घटना दुर्घटना नहीं थी और अब तक नहीं है. और भी बहुत-सी घटनाएं हुईं, लेकिन उनसे मुझे नहीं दूसरों को कष्ट पहुंचा. जैसे मेरा कलम उठाना एक बहुत बड़ी घटना थी, जिससे ‘शिष्ट’ लेखकों को भी दुख हुआ और ‘शिष्ट’ पाठकों को भी.’



'मंटो' फिल्म के एक सीन में नवाजुद्दीन सिद्दीकी

अब 'मंटो' पर नंदिता दास फिल्म लेकर आ रही हैं. इसमें मंटो के किरदार में नवाजुद्दीन सिद्दीकी हैं. ये फिल्म 21 सितंबर को रिलीज होने वाली है. फिल्म की रिलीज से पहले एबीपी न्यूज़ आपके लिए लेकर आया उनकी कुछ कहानियां जिन्होंने खूब चर्चा बटोरी. इस सीरिज में आज पढ़ें- बेख़बरी का फ़ायदा, हलाल और झटका, रिआयत, हैवानियत, ख़बरदार और करामात.


बेख़बरी का फ़ायदा


लबलबी दबी – पिस्तौल से झुँझलाकर गोली बाहर निकली. खिड़की में से बाहर झाँकनेवाला आदमी उसी जगह दोहरा हो गया. लबलबी थोड़ी देर बाद फ़िर दबी – दूसरी गोली भिनभिनाती हुई बाहर निकली. सड़क पर माशकी की मश्क फटी, वह औंधे मुँह गिरा और उसका लहू मश्क के पानी में हल होकर बहने लगा. लबलबी तीसरी बार दबी – निशाना चूक गया, गोली एक गीली दीवार में जज़्ब हो गई. चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी, वह चीख़ भी न सकी और वहीं ढेर हो गई. पाँचवी और छठी गोली बेकार गई, कोई हलाक हुआ और न ज़ख़्मी. गोलियाँ चलाने वाला भिन्ना गया. दफ़्तन सड़क पर एक छोटा-सा बच्चा दौड़ता हुआ दिखाई दिया. गोलियाँ चलानेवाले ने पिस्तौल का मुहँ उसकी तरफ़ मोड़ा. उसके साथी ने कहा : “यह क्या करते हो?” गोलियां चलाने वाले ने पूछा : “क्यों?” “गोलियां तो ख़त्म हो चुकी हैं!” “तुम ख़ामोश रहो....इतने-से बच्चे को क्या मालूम?”


हलाल और झटका


“मैंने उस की शहरग पर छुरी रख्खी. हौले हौले फेरी और उस को हलाल कर दिया.

“ये तुम ने क्या किया”?

“क्यूँ”?

“उस को हलाल क्यूँ किया”?

‘मज़ा आता है इस तरह”

“मज़ा आता है कि बच्चे, तुझे झटका करना चाहिए था........ इस तरह”

“और हलाल करने वाले की गर्दन का झटका हो गया”

रिआयत


“मेरी आँखों के सामने मेरी जवान बेटी को न मारो”

“चलो इसी की मान लो…….

कपड़े उतार कर हाँक

दो एक तरफ़”

हैवानियत


बड़ी मुश्किल से मियां बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए . जवान लड़की थी. उस का कोई पता न चला. छोटी सी बच्ची थी उस को माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रख्खा. एक भूरी भैंस थी उस को बुलवाई हाँक कर ले गए. गाय बच गई मगर उस का बछड़ा न मिला.

मियां बीवी, उनकी छोटी लड़की और गाय एक जगह छुपे हुए थे. सख़्त अंधेरी रात थी. बच्ची ने डर के रोना शुरू किया. ख़ामोश फ़ज़ा में जैसे कोई ढोल पीटने लगा. माँ ने ख़ौफ़ज़दा हो कर बच्ची के मुँह पर हाथ रख दिया. कि दुश्मन सुन न ले. आवाज़ दब गई. बाप ने एहतियातन ऊपर गाढ़े की मोटी चादर डाल दी.

थोड़ी देर के बाद दूर से किसी बिछड़े की आवाज़ आई. गाय के कान खड़े हुए. उठी और इधर उधर दीवाना वार दौड़ती डकारने लगी. उस को चुप कराने की बहुत कोशिश की गई मगर बे-सूद.

शोर सुन कर दुश्मन आ पहुंचा. दूर से मशअलों की रौशनी दिखाई. बीवी ने अपने मियां से बड़े ग़ुस्से के साथ कहा. “तुम क्यूँ इस हैवान को अपने साथ ले आए थे”.

ख़बरदार


बलवाई मालिक मकान को बड़ी मुश्किलों से घसीटकर बाहर लाए. कपड़े झाड़कर वह उठ खड़ा हुआ और बलवाइयों से कहने लगा : “तुम मुझे मार डालो, लेकिन ख़बरदार, जो मेरे रुपए-पैसे को हाथ लगाया.........!”

करामात


लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरु किए. लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे, कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पाकर अपने से अलहदा कर दिया, ताकि क़ानूनी गिरफ़्त से बचे रहें. एक आदमी को बहुत दिक़्कत पेश आई. उसके पास शक्कर की दो बोरियाँ थी जो उसने पंसारी की दूकान से लूटी थीं. एक तो वह जूँ-तूँ रात के अंधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा ख़ुद भी साथ चला गया. शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गये. कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं. जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया. लेकिन वह चंद घंटो के बाद मर गया. दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए उस कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था. उसी रात उस आदमी की क़ब्र पर दीए जल रहे थे.

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