उन्होंने आगे कहा, "मुझे सबसे अच्छी बात लगी कि दास देव की पारो एक स्वतंत्र व आत्मनिर्भर महिला है. मैं फिल्म में देव का किरदार निभाने के लिए राहुल की भी सराहना करूंगी. मैंने देखा है कि मीडिया कितना पक्षपाती है जो हमेशा सवाल करता है कि मजबूत महिला पात्रों के सामने पुरुष दब जाते हैं. मैं पूछती हूं कि क्या महिलाओं को मजबूत नहीं होना चाहिए? मीडिया क्यों ऐसे सवाल करता है?"
आपने अभी तक कई दमदार फिल्में की हैं, लेकिन क्या इस फिल्म में कोई चुनौती महसूस की? यह पूछे जाने पर ऋचा ने कहा, "चुनौतियां तो महसूस होती हैं, खासकर जब किसी कहानी पर कई फिल्में बनी हों और उनमें बहुत बड़ी-बड़ी अभिनेत्रियों ने वह किरदार किया हो. यह फिल्म और इसकी कहानी हालांकि पिछली फिल्मों से काफी अलग है."
क्या सिनेमा समाज को बदलता है? इस सवाल पर ऋचा कहती हैं, "हम यह बहुत समय से कर रहे हैं. लेकिन मुझे यह बहुत पक्षपाती लगता है कि सिनेमा रिफ्लेक्ट्स सिनेमा, सिनेमा रिफ्लेक्ट्स सोसाइटी बोलकर..हर चीज को हमारे ऊपर डाला जाता है. सबसे बड़ी बात यह कि आपने जिन लोगों को वोट देकर कुर्सी पर बैठाया है, आप उनसे सवाल क्यों नहीं करते. हमने जिम्मा नहीं उठाया है समाज बदलने का..हम तो कहानियां कहते हैं और इसके माध्यम से हम जितना कर सकते हैं उससे ज्यादा करते हैं."
आपको बता दें कि सुधीर मिश्रा की फिल्म 'दास देव' शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध उपन्यास 'देवदास' और शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक 'हैमलेट' से प्रेरित है, हालांकि यह काफी अलग फिल्म है. फिल्म में देव का किरदार राहुल भट्ट, पारो का ऋचा और चंद्रमुखी का किरदार अदिति राव हैदरी निभा रही हैं.