Film and Webseries Review: एंटरटेनमेंट (Entertainment) का तड़का लगाने के लिए और आपके बोरिंग दिन को और खास बनाने के लिए हम आपके लिए इस वीकेंड रिलीज हुई धमाकेदार सीरीज और फिल्मों (Ott Film and series) के रिव्यू लेकर आ चुके हैं. इस वीकेंड तीन फिल्में टॉप चार्ट में शामिल हैं. ऐसे में कौन सी फिल्म देखने लायक है या नहीं...ये उलझन हमने आपकी सुलझा दी है. हमने तीनों सीरीज को देखने के बाद यह रिव्यू तैयार किए हैं, जिनके सहारे आप यह फैसला ले सकते हैं कि इस पर आपको अपना कीमती वक्त देना है या नहीं.
Looop Lapeta Review: मोहब्बत होने में एक लम्हा लगता है, लेकिन उम्र गुजर जाती है वो लम्हा भुलाने में. जिंदगी को कोई एक लम्हा कैसे सिर के बल खड़ा कर देता है, फेसबुक पर मिलने वाली ऐसी शायरियों से आप भी जान सकते हैं. फिल्म लूप लपेटा भी एक घटना पर किसी लम्हे में अलग-अलग दी गई प्रतिक्रियाओं से नतीजों में आने वाले बदलाव की फिलॉसफी समझाती है.
लूप लपेटा पूरी तरह से तापसी पन्नू की फिल्म के रूप में सामने आती है. उन्होंने फिर साबित किया है कि वह अकेले दम पर कहानी में जान फूंक सकती हैं. उन्होंने यहां लंबे किसिंग सीन और अंतरंग दृश्य देने में भी परहेज नहीं किया है. लूप में दोहराती हुई घटनाओं में ताहिर एक समय के बाद असर खो देते हैं लेकिन तापसी ऊर्जावान मौजूदगी को लगातार दर्ज कराती हैं. उन्होंने इस फिल्म को फीका पड़ने से बचाया है क्योंकि आप घटनाओं को थोड़े हेर-फेर से कहानी में तीन बार देखते हैं और ऐसे में तापसी हर बार घटनाओं को मोड़ने की कोशिश में कुछ अलग करती नजर आती हैं. जो कहानी यहां 130 मिनट के लगभग जाती है, वह मूल फिल्म में मात्र 81 मिनिट में दिखा दी गई थी.
घटनाओं का फैलाव और अनावश्यक संगीतमय स्थितियां लूप लपेटा को कमजोर करती हैं. बावजूद इसके यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है. इसमें कम से कम वह थ्रिल है, जो हाल की कई फिल्मों में गायब था.
The Great Indian Murder SE 1 Review: मर्डर सिर्फ मर्डर नहीं होता. उसके पीछे कोई न कोई कहानी जरूर छुपी होती है. द ग्रेट इंडियन मर्डर (The Great Indian Murder) एक्टर्स के परफॉर्मेंस पर टिकी है. जतिन गोस्वामी का अभिनय शानदार है और उन्होंने किरदार को जिंदा कर दिया है. उन्हें देख कर आप विक्की से नफरत करेंगे. लेकिन इस सीजन में जो दो किरदार खास असर छोड़ते हैं, वह रघुवीर यादव (Raghuvir Yadav) और मलयाली एक्टर मणि पीआर हैं.
रघुवीर यादव (Raghuvir Yadav) की कहानी का ट्रैक रोचक है. पूर्व सरकारी अधिकारी मोहन कुमार के रूप में वह भ्रष्ट, पियक्कड़ और चरित्र से कमजोर हैं. लेकिन एक हादसा अचानक उनके भीतर गांधी जी की आत्मा जगा देता है. अब वह कभी मोहन कुमार हो जाते हैं तो कभी गांधी. यहां आपको राजकुमार हिरानी (Rajkumar Hirani) की फिल्म लगे रहो मुन्ना भाई (Munna Bhai) की याद आती है.
इसी तरह सलमान खान (Salman Khan) द्वारा काले हिरण की हत्या का मामला भी सीरीज के अंतिम भाग में याद आता है, जब पता चलता है कि विक्की राय ने एक जमाने में राजस्थान में हिरण का शिकार किया था और पुलिस ने उसे शिकार के साथ धर लिया था.
Rocket Boys Review: आज यह कहने-सुनने में गर्व होता है कि भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में बड़ी ऊंचाइयां हासिल की हैं. चांद पर अपना यान उतार दिया है, मंगल तक यान भेज दिया है. साथ ही आज हम विश्व की प्रमुख परमाणु शक्ति भी हैं. करीब 40-40 मिनट की आठ कड़ियों वाली रॉकेट बॉय्ज की कहानी शुरू होती है 1962 में चीन के हाथों भारत की सैन्य पराजय के साथ.
तब होमी (जिम सारभ) तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू (रजित कपूर) से कहते हैं कि जरूरी नहीं कि चीन भविष्य में हमलावर नहीं होगा, इसलिए जरूरी है कि हम परमाणु बम बनाएं. नेहरू असमंजस में हैं. होमी के मित्र और कभी उनके छात्र रहे विक्रम साराभाई (इश्वाक सिंह) परमाणु बम बनाए जाने का खुला विरोध करते हैं क्योंकि दुनिया दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा-नागासाकी पर गिराए परमाणु बमों से हुई तबाही देख चुकी है.
होमी और विक्रम के इस टकराव के साथ कहानी फ्लैशबैक में 1930 के दशक में चली जाती है और फिर दोनों का जीवन यहां से आकार लेता नजर आता है. होमी और विक्रम के किरदार यहां खूबसूरती से उभरे हैं. जिम सरभ और इश्वाक सिंह ने अपनी भूमिकाएं प्रभावी ढंग से निभाई हैं. जिम सरभ अपने अंदाज से यहां याद रह जाते हैं जबकि इश्वाक सिंह की सादगी मोहने वाली है. रेजिना कैसेंड्रा और सबा आजाद भी अपने किरदारों में जमी हैं. होमी के प्रतिद्वंद्वी के रूप में रजा मेहदी बने दिव्येंदु भट्टाचार्य का काम अच्छा है.