नई दिल्ली: आप मानें या न मानें, लेकिन जरा सी कामुक कहानी की वजह से जानेमाने लेखक रस्किन बॉंड जेल जाते-जाते रह गए. कल ताज महल होटल में अपनी आत्मकथा 'लोन फॉक्स डांसिंग' के विमोचन के अवसर पर बॉंड ने बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से 25 जून 1975 को लागू किए गए आपातकाल के दौरान किस तरह उनके खिलाफ गैर-जमानती वॉरंट जारी किया गया था.
उन्होंने बताया, 'बंबई का एक कॉंस्टेबल मेरे लिए वॉरंट लेकर मसूरी आया था. वह बड़ा अच्छा आदमी था और मैं उसे सिनेमा दिखाने ले गया.' बच्चों की किताबों के मशहूर लेखक ने बताया कि उन्हें आखिरकार बंबई की एक अदालत में पेश होना पड़ा और मुकदमा करीब दो साल तक चला.
उन्होंने कहा, 'इसमें कोई मजे जैसी बात तो नहीं थी. लेकिन अंत में मुझे बाइज्जत बरी कर दिया गया और जज ने कहा कि उन्हें भी कहानी पसंद आयी.' 'दि सेंसुअलिस्ट' शीर्षक वाली यह कहानी 'डेबोनायर' नाम की मैगजीन में प्रकाशित हुई थी. अपनी आत्मकथा में बॉंड ने लिखा, 'यह एक वैरागी की जरा सी कामुक कहानी थी, जो यूं ही बिता दी गयी अपनी जवानी की याद दिला रहा था. लेकिन वह लेडी चैटरलीज लवर जैसा (उपन्यास) नहीं था.' बहरहाल, वॉरंट जारी होने की वजह सिर्फ कहानी नहीं थी, बल्कि यह भी थी कि वह आपातकाल के दौरान 'इंप्रिंट' मैगजीन का संपादन करते थे और उसी वक्त सख्त बंदिशें लगा दी गयी थीं .
उन्होंने अपनी आत्मकथा के विमोचन के अवसर पर आए लोगों को संबोधित करते हुए कहा, 'लेकिन मैं चौकस इंसान था...मैं अमूमन पेड़ों, जंगली फूलों और पर्यावरण पर संपादकीय लिखता था..इसलिए हम उस समय बच निकलने में कामयाब रहे.' जब सवाल किया गया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात के दौरान क्या उन्होंने इस घटना के बारे में उन्हें बताया, तो बॉंड ने जवाब दिया, नहीं. मुझे लगता है कि वह इस बारे में पहले से जानती थीं. जब मैंने उनसे मुलाकात की उस वक्त मेरे खिलाफ मुकदमा चल ही रहा था.'
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात में भी पेड़-पक्षियों की ही बात की, तो उन्होंने जवाब दिया, हां, उन्हें कुदरत में काफी दिलचस्पी थी. भारत में अंग्रेजों के शासन के दौरान जन्मे और पले-बढ़े 83 साल के बॉंड बेहतर संभावनाओं की तलाश में 1950 के दशक में इंग्लैंड चले गए थे. हालांकि, बाद में उन्हें अहसास हुआ कि उनका दिल तो भारत में ही बसता है.
उन्होंने कहा, 'भारत ही घर था. यह सिर्फ मेरी मां या सौतेले-पिता का घर नहीं था, यह सरजमीं ही मेरा घर था...यहां की मिट्टी . अपनी जिंदगी में कभी किसी जायदाद पर मेरा मालिकाना हक नहीं रहा, लेकिन फिर भी मैं मानता हूं कि यहां की हर चीज मेरी है. पूरा देश मेरा है.'
बॉंड ने यह भी बताया कि एक बार कोणार्क के सूर्य मंदिर में उन्हें विदेशियों से लिया जाने वाला प्रवेश शुल्क चुकाने को कहा गया और उस वक्त उन्हें यह साबित करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी कि वह विदेशी नहीं हैं.