नई दिल्ली: सआदत हसन मंटो उन कहानीकारों में से हैं जिन्होंने अपनी लेखनी से कभी समझौता नहीं किया. अपनी विवादित कहानियों के जरिए मंटो ने कोर्ट कचहरी के खूब चक्कर काटे लेकिन ना कभी डरे और ना ही पीछे हटे. समाज की बात हो या फिर बंटरवारे का दर्द मंटो ने 60 साल पहले जो लिखा वो आज भी प्रासंगिक है. मंटो ने ने छोटी-छोटी कहानियों के जरिए लोगों के दिलों पर ऐसी चोट कि जिसकी गूंज आज तक है. 'टोबा टेक सिंह', 'खोल दो' से लेकर 'ठंडा गोश्त' जैसी उनकी कई कहानियों पर खूब विवाद हुए. सिर्फ कहानियों में ही नहीं मंटो की कही गई अपनी बातों में भी तल्खी झलकती थी. कोर्ट में मंटो ने अपने बचाव में कहा था, ''यदि आप मेरे अफसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब ये समाज ही नाकाबिले बर्दाश्त हो चला है.'' इन दिनो मंटो की खूब चर्चा इस वजह से हो रही है क्योंकि उन पर बनी फिल्म 21 सितंबर को रिलीज हो रही है. इसलिए यहां हम आपको बता रहे हैं  मंटो की वो तल्ख बातें जो साहित्य में दिलचस्पी रखने वालों के दिलोदिमाग में आज भी बसी हुई है.





  • अपने परिचय में मंटो ने कहा था- मेरे जीवन की सबसे बड़ी घटना मेरा जन्म था. मैं पंजाब के एक अज्ञात गांव ‘समराला’ में पैदा हुआ. अगर किसी को मेरी जन्मतिथि में दिलचस्पी हो सकती है तो वह मेरी मां थी, जो अब जीवित नहीं है. दूसरी घटना साल 1931 में हुई, जब मैंने पंजाब यूनिवर्सिटी से दसवीं की परीक्षा लगातार तीन साल फेल होने के बाद पास की. तीसरी घटना वह थी, जब मैंने साल 1939 में शादी की, लेकिन यह घटना दुर्घटना नहीं थी और अब तक नहीं है. और भी बहुत-सी घटनाएं हुईं, लेकिन उनसे मुझे नहीं दूसरों को कष्ट पहुंचा. जैसे मेरा कलम उठाना एक बहुत बड़ी घटना थी, जिससे ‘शिष्ट’ लेखकों को भी दुख हुआ और ‘शिष्ट’ पाठकों को भी.

  • अश्लीलता के आरोपों पर मंटो ने कहा था- जमाने के जिस दौर से हम गुजर रहे हैं, अगर आप उससे वाकिफ नहीं तो मेरे अफसाने पढ़िए और अगर आप इन अफसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब है कि जमाना नाकाबिल-ए-बर्दाश्त है.

  • मंटो ने कहा था- मेरी तहरीर में कोई नुक्स नहीं, जिस नुक्स को मेरे नाम से मनसूब किया जाता है, वह दरअसल मौजूदा निजाम का एक नुक्स है। मैं हंगामापसंद नहीं हूं और लोगों के ख्यालात में हैज़ान पैदा नहीं करना चाहता.

  • मंटो ने कहा था- मैं सोसाइटी की चोली क्या उतारूंगाजो है ही नंगी. मैं उसे कपड़े पहनाने की कोशिश नहीं करताक्योंकि यह मेरा काम नहींदर्ज़ियों का काम है.

  • मंटो ने ख़ुद के बारे में यह कहा- ऐसा होना मुमकिन है कि सआदत हसन मर जाए और मंटो ज़िंदा रहे.

  • आखिर मंटो के दिमाग में ऐसी कहानियां कहां से आती हैं? इसे लेकर एक बार मंटो ने कहा था- मैं एक जेबकतरा हूं जो अपनी जेब खुद काटता है. जब कहानियां तलाश-तलाशकर मैं थक जाता हूं, बीबी कहती है ज्यादा सोचो मत, लिखने बैठ जाओ. मैं उसकी बात मानकर लिखने बैठ जाता हूं और सचमुच लिखने लगता हूं, दिमाग मेरा खाली होती है सचमुच और जेब भरी. कोई अफसाना मेरी जेब से कूदकर बाहर आ जाता है. मैं खुद को इस दृष्टि से कहानीकार नहीं जेबकतरा मानता हूं जो अपनी जेब खुद काटता है और आपके हवाले कर देता है.

  • अफ़साना क्यों लिखते हैं? इस पर मंटो ने कहा था- मैं अफसाना नहीं लिखता,अफ़साना मुझे लिखता है. कभी-कभी हैरत होती है कि यह कौन है जिसने इतने अच्छे अफसाने लिखे हैं? मैं ऐसे ही लिखता हूं जैसे खाना खाता हूं, गुसल करता हूं. कि मुझे अफसाना लिखने की शराब की तरह लत पड़ी हुई है. तो मैं कागज लेता हूं बिस्मिल्लाह करके, अफसाना शुरू कर देता हूं, मेरी तीन बच्चियां शोर मचा रही होती हैं, मैं उनसे बातें भी करता हूं. उनकी आपसी लड़ाइयों का फैसला भी करता हूं, अगर कोई मिलने आया तो उसकी खातिरदारी भी करता हूं और अफसाना भी लिखे जाता हूं.

  • उन्होंने अपनी लेखनी के बारे में कहा था- सुना हुआ है कि हर बड़ा आदमी गुसलखाने में सोचता है. मगर मुझे तजुर्बे से यह मालूम हुआ है कि मैं बड़ा आदमी नहीं, इसलिए कि मैं गुसलखाने में नहीं सोच सकता. लेकिन हैरत है कि फिर भी मैं हिंदुस्तान और पाकिस्तान का बहुत बड़ा कहानीकार हूँ. मैं यही कह सकता हूँ कि या तो यह मेरे आलोचकों की खुशफ़हमी है या मैं उनकी आँखों में धूल झोंक रहा हूँ. उन पर कोई जादू कर रहा हूँ


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