नई दिल्ली: सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) को भला कौन भूल सकता है. मंटो एक ऐसे लेखक रहे हैं जो अपनी कहानियों को लेकर कोर्ट कचहरी के ही चक्कर लगाते रहे. उन्हें बदनाम लेखक कहा गया. लेकिन हकीकत इससे जुदा है. खुद मंटो का इस पर कहना था कि अगर आप इन अफ़सानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो ये ज़माना नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त है. मंटो की कलम की स्याही से निकले अफसाने और अल्फाज समाज की सच्ची तस्वीर पेश करते हैं.


मंटो के इंतकाल के बाद ही मंटो को सही ढंग से समझने की कोशिश की गई. जब मंटो को दोबारा पढ़ा और महसूस किया गया तो बड़े से बड़ा लेखक भी उनकी लेखनी से दंग रह गया. मंटो को लेकर आज साहित्य प्रेमी जिस सवाल का जवाब ढूंढते हैं उसका जवाब भी मंटो मरने से पहले देकर गए थे. मंटो कहते थे,  ''ऐसी दुनिया, ऐसे समाज पर मैं हजार - हजार लानत भेजता हूं, जहां ऐसी प्रथा है कि मरने के बाद हर व्यक्ति का चरित्र और उसका व्यक्तित्व लॉन्ड्री में भेजा जाए, जहां से धुलकर, साफ सुथरा होकर वह बाहर आता है और उसे फरिश्तों की कतार में खूंटी पर टांग दिया जाता है''. आज मंटो की पुण्य तिथि है.


मंटो के बारे में
मंटो 11 मई 1912 में पंजाब में लुधियाना के छोटे से गांव समराला में पैदा हुए थे. उनकी शिक्षा अमृतसर और अलीगढ़ में पूरी हुई. 1935 में मंटो का पहला कहानी संग्रह आतिशपारे प्रकाशित हुआ. मंटो के पिता गुलाम हसन मंटो सेशन जज थे. अगर कहा जाए कि लाचारी और गर्दिश में दिन काटने के बाद भी मंटो मरते दम तक अपनी शर्तों पर जिए. अभिनेता अशोक कुमार मंटो के अच्छे दोस्त थे. मंटो ने अशोक कुमार के लिए 'आठ दिन' और 'आगोश' फिल्म की कहानियां लिखीं.


मंटो से जुड़ीं 10 रोचक बातें-




  • मंटो ने अपनी 43 सालों की जिंदगी में 200 से अधिक कहानियां, तीन निबंध संग्रह, नाटक, रेडियो व फिल्म के लिए पटकथाएं लिखीं.

  • भारतीय साहित्य में जिन लोगों ने अपने साहित्य में नारीवाद की शुरुआत की उस लिस्ट में मंटो का भी नाम आता है.

  • मंटो पहले ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने सबसे पहले अपनी कहानियों में वैश्याओं की संवेदनाओं को समाज के सामने सच्चाई के साथ रखा. मंटो ने अपनी कहानियों में महिलाओं को इंसान के तौर पर स्वीकार किया.

  • शायर और गीतकार साहिर लुधियानवी ने एक बार मंटो से प्रभावित होकर कहा था कि मंटो बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं हैं. खुद मंटो भी इस बात से इत्तेफाक रखते थे.

  • साहित्यकार कमलेश्वर का मानना था कि अपनी कहानियों में विभाजन, दंगों और सांप्रदायिकता पर जितने तीखे कटाक्ष मंटो ने किये उसे देखकर एक ओर तो यकीन नहीं होता है कि कोई कहानीकार इतना साहसी और सच्चा हो सकता है, इतना निर्मम हो सकता है.

  • लोगों को ये बात जानकर हैरानी होगी कि मंटो उसी विषय में फैल हुए, जिसमें वे सबसे अधिक मशहूर यानी उर्दू.

  • मंटो शराब पीने के आदी थे. लेकिन मंटो के बारे में एक बात मशहूर थी कि मंटो चाहे नशे में हो या फिर होश में. वह मंटो ही रहते थे.

  • काली शलवार,बू,ठंडा गोश्त,धुआ, और ऊपर नीचे व दरमियान मंटो की ये वो पांच कहानियां हैं, जिनको लेकर मंटो पर अश्लीलता के मुकदमे चले.

  • अभिनेता अशोक कुमार की फिल्म 'आठ दिन' में मंटो ने पागल की भूमिका भी निभाई थी.

  • मंटो की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी. इस पर उन्होंने एक बार कहा था कि जितनी दिलचस्पी गांधी जी को फिल्मों के लिए है उतनी ही दिलचस्पी मुझे राजनीति के लिए है. गांधी जी फिल्म नहीं देखते थे और मैं अखबार नहीं देखता. हालांकि हम दोनों गलती करते हैं. गांधी जी को फिल्में देखनी चाहिए और मुझे अखबार पढ़ना चाहिए.