Sahir Ludhianvi Birth Anniversary: मजहब ने मुकम्मल नहीं होने दी इस गीतकार की मोहब्बत, टूटे दिल से लिखा था- अभी न जाओ छोड़कर
Sahir Ludhianvi Birth Anniversary: उनकी कलम का जादू आज तक कायम है तो उनकी मोहब्बत की मिसाल भी अब तक दी जाती है. बात हो रही है साहिर लुधियानवी की, जिनके गीतों ने मोहब्बत की गहराई समझाई.
Sahir Ludhianvi Birth Anniversary : लुधियाना के एक जागीरदार के घर 8 मार्च 1921 के दिन जन्मे साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हयी साहिर था. साहिर के पिता काफी रईस थे, लेकिन वह उनकी मां से अलग हो गए थे. यही वजह थी कि साहिर का बचपन उनकी मां के साथ गरीबी में गुजरा. साहिर की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई लुधियाना के खालसा हाई स्कूल से हुई. इसके बाद उन्होंने गवर्नमेंट स्कूल में दाखिला लिया.
जब अधूरा रहा अमृता संग इश्क
साहिर जब 22 साल के थे, तब उनकी शायरी की पहली किताब तल्खियां प्रकाशित हुई थी. यह दौर 1943 का था. यह वही वक्त था, जब कॉलेज में साहिर को अमृता प्रीतम से मोहब्बत हुई थी और उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था. दरअसल, साहिर मुस्लिम थे, जबकि अमृता सिख. ऐसे में अमृता के पिता को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. बता दें कि साहिर और अमृता एक ही कॉलेज में पढ़ते थे. उनकी अधूरी प्रेम कहानी की चर्चा आज भी गाहे-बेगाहे हो जाती है.
1949 में किया भारत का रुख
कॉलेज से निकाले जाने के बाद साहिर ने छोटी-मोटी नौकरियां कीं. 1943 में वह लाहौर आ गए और एक मैगजीन में संपादक बने. इस मैगजीन में उनकी एक रचना प्रकाशित हुई, जिसे सरकार विरोधी माना गया. पाकिस्तान सरकार ने उनके खिलाफ वॉरंट जारी किया, जिसके बाद 1949 में साहिर लुधियानवी ने भारत का रुख कर लिया.
इस गाने ने किया मशहूर
साहिर की नज्मों और गानों का क्रेज धीरे-धीरे बढ़ने लगा था. उन्होंने 1949 में पहली बार फिल्म 'आजादी की राह पर' के लिए गीत लिखे थे. हालांकि, साहिर को फिल्म 'नौजवान' के गाने 'ठंडी हवाएं लहरा के आएं' से शोहरत मिली. इसके बाद उन्होंने बाजी, प्यासा, फिर सुबह होगी, कभी कभी आदि फिल्मों के लिए गीत लिखे.
हमेशा अधूरा रहा इश्क
कहा जाता है कि साहिर को उनकी मोहब्बत ताउम्र नहीं मिली. दरअसल, अमृता प्रीतम के बाद उन्हें सुधा मल्होत्रा से इश्क हुआ, लेकिन वह भी कामयाब नहीं हो पाया. इस बार भी मजहब उनकी मोहब्बत के आड़े आ गया. इसकी तल्खी उनके शेरों में भी नजर आती थी. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि साहिर पहले ऐसे गीतकार थे, जिन्हें अपने गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी.
टूटे दिल से लिखा था यह गाना
साहिर ने 1957 में फिल्म नया दौर का गाना 'आना है तो आ' लिखा. इसके बाद 1976 में आई फिल्म कभी कभी का गाना मैं पल दो पल का शायर हूं को सजाया. 1970 की फिल्म नया रास्ता का गाना ईश्वर अल्लाह तेरे नाम आज भी उनकी याद दिला देता है. वहीं, 1961 की फिल्म हम दोनों का गाना अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं तो आज भी गुनगुनाया जाता है. कहा जाता है कि साहिर ने यह गाना टूटे हुए दिल के साथ लिखा था.
1980 में हुआ था निधन
साहिर लुधियानवी को भारत सरकार ने साल 1971 के दौरान पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा. इसके अलावा वह दो बार फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए. जब साहिर 59 वर्ष के थे, तब 25 अक्टूबर 1980 के दिन दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया.
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