सुशांत सिंह राजपूत को जॉर्ज फर्नांडीस की बायोपिक में लेना चाहते थे 'ठाकरे' बनाने वाले संजय राउत
'सामना' में लिखे लेख में संजय राउत ने डिप्रेशन की वजह से सुशांत के हाथों से कई फिल्मों के निकल जाने का जिक्र करते हुए सुशांत की खुदकुशी की 'मार्केटिंग' पर भी आपत्ति जताई.
मुंबई: शिवसेना के मुखपत्र के रविवारीय अंक में अखबार के संपादक और पार्टी के प्रवक्ता संजय राउत ने एक लेख के जरिए दावा किया है कि फिल्म 'ठाकरे' के बाद वो सुशांत सिंह राजपूत को जनता दल के नेता और वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री रहे दिवंगत जॉर्ज फर्नांडीस पर एक बायोपिक बनाने वाले थे, जिसके लिए वे सुशांत सिंह राजपूत को लेना चाहते थे. लेकिन उन्हें अपने सूत्रों से पता चल गया था कि वो डिप्रेशन का शिकार हैं और इसी वजह से उनके हाथ से कई फिल्में भी निकल गईं हैं.
इस लेख में संजय राउत ने लिखा, "फिल्म 'ठाकरे' का निर्माण खत्म होने के बाद जॉर्ज फर्नांडीस की बायोपिक बनाना तय हुआ. जॉर्ज जी की भूमिका साकार करने के लिए दो-तीन अभिनेताओं का नाम सामने आया, उसमें एक नाम सुशांत का भी था. 'धोनी' के कारण वह मेरी नजर में था. दो दिन बाद मुझसे कहा गया कि सुशांत बेहतरीन कलाकार हैं और वो इस किरदार को बेहतरीन ढंग से निभाएगा, लेकिन फिलहाल उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और वह डिप्रेशन का शिकार है. फिल्म के सेट पर उसका बर्ताव अजीब होता है. इससे सभी को परेशानी होती है. कई बड़े प्रोडक्शन हाउस ने इसी वजह से उससे करार तोड़ लिया है. सुशांत ने खुद भी अपने करियर की वाट लगा की, ऐसा जानकारों का कहना था और इसके दो महीने बाद सुशांत के मरने की खबर आ गयी. इससे पर्दे का संभावित 'जॉर्ज' पर्दे के पीछे चला गया."
संजय राउत ने इस लेख में लिखा है कि सुशांत की आत्महत्या का मामला अचानक से उत्सव में तब्दील हो गया है, जो कि एक विकृति है. उन्होंने लिखा, "इस आत्महत्या के पीछे कोई रहस्य छिपा है, ऐसा कुछ लोगों को लगता है. सुशांत खुदकुशी करेगा, ऐसी आशंका एक फिल्म निर्माता ने जताई थी, लेकिन सुशांत को बचाने के लिए उसने क्या किया? देश में कोरोना का कहर है, रोज 100-500 लोग मर रहे हैं. उसपर चीनी हमले में 20 सैनिक शहीद हो गये, फिर भी सुशांत की आत्महत्या की खबर महीने भर से जगह पा रही है."
संजय राउत ने सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी को लेकर कुछ लोगों द्वारा 'मार्केटिंग' किये जाने का भी इल्जाम लगाया है और इसपर गहरी आपत्ति जताई है. इस लेख में सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद उनके कुत्ते के मरने से लेकर राखी सावंत द्वारा सुशांत के सपने में आने तक के दावों की मिसाल दी गयी है.
'सामना' के इस लेखक में अन्य आम लोगों द्वारा आत्महत्या करने की उपेक्षा करने और सुशांत सिंह राजपूत की खु्दकुशी को ज्यादा तवज्जो दिये जाने को भी रेखांकित किया गया है. इस लेख के जरिए कहा गया है कि यह मामला आत्महत्या का है, मगर फिर भी कुछ लोग इस मर्डर और इसकी सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं.
'सामना' में लिखा है, "किसी मौत या खुदकुशी का उत्सव कैसे मना सकते हैं, किसी आत्महत्या की मार्केंटिग कैसे की जा सकती है?... सुशांत की मौत के ये साइड इफेक्ट्स हैं. सिनेमा के पर्दे पर पहले 'स्पेशल इफेक्ट्स' जैसी चीज होती थीं. अब 'सुशांत इफेक्ट्स' है. किसी की मौत के बाद भी चैन से जीने नहीं देते. सुशांत की आत्मा को भी डिप्रेशन आ जाए, ऐसा ये मामला है. ये अब तो रुक जाना चाहिए."
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