अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एस एस ओझा ने शनिवार पांच जनवरी को आलोकनाथ को पांच लाख रूपये की जमानत राशि पर अग्रिम जमानत दे दी. अदालत ने विशेष रूप से नंदा द्वारा एफआईआर दर्ज कराने में दो दशक की देरी को रेखांकित किया और कहा कि इतनी देरी से यह खतरा बढ़ जाता है कि घटना के ब्यौरे को ‘‘ रंग दिया गया और बढ़ाचढ़ा कर पेश किया गया.’’
अदालत का यह आदेश मंगलवार को अपलोड किया गया. आदेश में न्यायाधीश ने कहा कि पीड़िता द्वारा पुलिस को दिए गए बयान में कुछ विसंगतियां हैं . अदालत ने कहा,‘‘ यह बात गौर करने लायक है कि शिकायतकर्ता को पूरी घटना तो याद रही लेकिन उसे घटना की तारीख और महीना याद नहीं है.’’ अदालत ने कहा,‘‘ ऐसे तथ्यों के मद्देनजर, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि आवेदनकर्ता को मामले में झूठा फंसाया गया.’’
अदालत ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि एफआईआर दो दशक बाद दर्ज करायी गयी. न्यायाधीश ने कहा, हालांकि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि बलात्कार और यौन शोषण के मामलों में एफआईआर दर्ज कराने में देरी की अनेदखी की जानी चाहिए लेकिन ऐेसे मामलों में एफआईआर ‘‘महत्वपूर्ण और कीमती ’’ सबूत है.
बॉलीवुड में चली ‘मी टू’ लहर के दौरान पिछले साल आठ अक्टूबर को पटकथा लेखक ने सोशल मीडिया पर नाथ का नाम लिए बिना अपने अनुभव साझा किए थे. इसके बाद नंदा ने मुंबई के ओशिवारा पुलिस थाने में नाथ पर 1998 में पेय पदार्थ में कुछ मिलाकर उनका (नंदा का) बलात्कार करने का आरोप लगाया. अभिनेता (62) के खिलाफ नवम्बर में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत मामला दर्ज किया गया था.
अग्रिम जमानत की अपील के समय नाथ ने दावा किया कि निजी दुश्मनी के कारण यह मामला दर्ज किया गया क्योंकि नंदा, उसके अपनी पत्नी आशू के साथ संबंधों को लेकर खुश नहीं थी . नंदा की आशू के साथ पहले अच्छी दोस्ती थी.