स्टार कास्ट - अक्षय खन्ना, ऋचा चड्ढा, मीरा चोपड़ा और राहुल भट्ट


निर्देशक - अजय बहल


रेटिंग- ****


साल 2012 में भारत की राजधानी दिल्ली में निर्भया रेप केस हुआ था जिसके बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को कई बार रेप कैपिटल तक कहा जाने लगा. देश में हर 20 मिनट में एक महिला बलात्कार का शिकार होती है और ज्यादातर मामलों में महिला के जानने वाले ही इस क्राइम को अंजाम देते हैं. जहां देश में होने वाले बलात्कारों का आंकड़ा इतना बड़ा है वहीं अगर इसमें आरोपियों पर दोष सिद्ध होने की बात करें तो ये आंकड़ा बेहद कम हो जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में बलात्कार मामलों में सिर्फ 25 प्रतिशत मामलों में ही आरोपियों को सजा मिल पाती है. फिल्म में निर्भया रेप केस का उदाहरण देते हुए एक गंभीर सवाल उठाया गया है कि क्या कानून के अनुसार दिए गए हर एक फैसले से पीड़ित को न्याय मिलता है?


फिल्म में निर्देशक ने एक बलात्कार केस के हर जायज पहलू को बड़े ही संतुलित तरीके से दिखाने की कोशिश की है. निर्देशक अजय बहल और लेखक मनीष गुप्ता ने इस फिल्म के जरिए कई सवाल भी उठाए हैं. फिल्म की कहानी और निर्देशन की तारीफ करना इसलिए भी जायज है कि बिना किसी नतीजे को दर्शकों पर थोपते हुए उन्होंने अपनी बात रखी है. फिल्म की शुरुआत में अक्षय खन्ना एक डायलॉग कहते हैं ''हम कानून के व्यवसाय में हैं, न्याय के नहीं.'' उनका ये डायलॉग यूं तो अपने आप में पूरी कहानी कह जाता है. 



इतना ही नहीं लेखक ने अपनी कहानी में ये भी बताने की कोशिश की है कि न्याय व्यवस्था में कानून की रक्षा और न्याय दोनों एकदम अलग पहलू हैं. किसी भी केस में कानून के हिसाब से दिया गया फैसला पीड़ित के लिए न्यायवर्धक होगा, ये बिल्कुल भी सही नहीं है.


क्या है सेक्शन 375


भारतीय दंड सहिंता (आईपीसी) में सेक्शन 375 में महिला की सहमति के बिना बनाए गए संबंधों को कानूनन अपराध बताया गया है. इस धारा के अंतर्गत ये साफ तौर पर कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी महिला से उसकी सहमति के बिना, कोई झूठा वादा कर के या फिर ऐसी स्थिति में जब महिला दिमागी रूप से सजग नहीं है या फिर नशे के इन्फ्लूएंस में है और यदि उसकी उम्र 18 वर्ष से कम है. ऐसी किसी भी स्थिति में किसी महिला के साथ बनाए गए यौन संबंधों को बलात्कार की श्रेणी में डाला जा सकता है.


कहानी


मुख्यतौर पर फिल्म की कहानी एक हाईप्रोफाइल रेप केस की है. जिसमें एक मुंबई के एक जाने माने निर्देशक रोहन (राहुल भट्ट) पर कॉस्ट्यूम डिजाइनर अंजलि (मीरा चोपड़ा) सेक्सुअल हैरासमेंट का आरोप लगाती है. इन दोनों का केस कोर्ट में रोहन वर्सेज स्टेट ऑफ महाराष्ट्र, बंबई हाई कोर्ट में पहुंचता है. फिल्म निर्देशक रोहन का केस लड़ रहे हैं जाने माने वकील तरुण (अक्षय खन्ना) और पीड़ित की ओर से तरुण के खिलाफ एक वक्त पर उन्हीं की स्टूडेंट रहीं हिरल गांधी (ऋचा चड्ढा) केस लड़ रही हैं.



फिल्म एक कोर्टरूम ड्रामा है और पूरी फिल्म इसी केस के ईर्द-गिर्द घूम रही है. जहां एक तरफ ऋचा चड्ढा पीड़ित की ओर से केस लड़ते हुए उसे न्याय दिलाने के लिए लड़ती नजर आ रही हैं. तो वहीं आरोपी के वकील बने अक्षय खन्ना ये साबित करने की कोशिश करते नजर रहे हैं कि ये बलात्कार नहीं बल्कि आपसी सहमति से बनाए गए संबंध हैं.


कोर्ट रूम में चल रही बहस के बीच फिल्म के कई सीन ऐसे हैं जो आपको अंदर तक झंकझोर देते हैं. 'पीड़िता' के प्रति पुलिस प्रशासन का बर्ताव और कानून में बार-बार उसे रेप की दर्दनाक घटना को याद करके मानसिक तौर पर प्रताड़ित होना कई सवाल खड़े करता है. 


इतना ही नहीं, फिल्म में आरोपी के पारिवारिक पक्ष को दिखाया गया है कि किस तरह किसी आरोपी के साथ-साथ उसके पूरे परिवार को इसके दर्द से गुजरना पड़ता है. अब आखिर अंत में कोर्ट किसके हक में फैसला देता है और क्या पीड़िता के साथ न्याय होता या आरोपी को न्याय मिलता है इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी.


निर्देशन


फिल्म में निर्देशक ने बेहतरीन काम किया है. पूरी फिल्म में आपको एक जगह भी ऐसा नहीं लगता कि निर्देशक अपनी निजी राय दर्शक पर थोपने की कोशिश कर रहा है. साथ ही फिल्म एक कोर्ट ड्रामा भले ही है लेकिन निर्देशक ने इसे बेहद संजीदगी से पर्दे पर पेश किया है. निर्देशक ने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि रेप केस पर्दे पर दिखाते-दिखाते ये फिल्म अश्लीलता की ओर ज्यादा न चली जाए. बेहद साफ शब्दों और दृश्यों की मदद से उन्होंने गंभीर से गंभीर बात कह दी है.



सिनेमैटोग्राफी 


फिल्म क्योंकि एक कोर्टरूम ड्रामा है ऐसे में वकील बार-बार अपनी बात को सही साबित करने के लिए क्राइम सीन को दोहराते हैं. ऐसे में पर्दे पर भी वही सीन बार-बार नजर आते हैं. इस स्थिति में सिनेमैटोग्राफर के लिए ये एक बड़ा चैलेंज है कि वो हर बार एक ही सीन को अलग अंदाज में कैसे प्रस्तुत करे. लेकिन फिल्म में सिनेमैटोग्राफर ये कर के दिखाया है. आप जब भी क्राइम सीन को पर्दे पर दोबारा देखेंगे आपको हर बार ऐसा लगेगा मानो इस बार आपने कुछ अलग देखा है और इस बार कुछ ऐसा था जो पिछली बार नजर नहीं आया.


एक्टिंग


फिल्म की कहानी अगर दमदार हो और कलाकार एक्टिंग अच्छी न करें तो कहानी मर जाती है, लेकिन कहानी भी दमदार हो और कलाकारों की एक्टिंग भी तो फिल्म शानदार बनती है. इस फिल्म में कलाकारों ने एक्टिंग बेहद अच्छी की है. लीड एक्टर्स से लेकर सपोर्टिंग कलाकारों तक फिल्म में हर एक एक्टर ने अपने काम को बखूबी निभाया है.


क्यों देखें?




  • बॉलीवुड में सेंसिबल और अच्छी कोर्टरूम ड्रामा फिल्में कम ही बनती हैं. फिल्म अपनी कहानी को दमदार और इंगेजिंग तरीके से पेश करती है. फिल्म के साथ-साथ दर्शक भी उस जर्नी का हिस्सा बनते हैं.

  • फिल्म कोर्ट के अंदर होने वाली कार्यवाही और कानून को कई तरीके से पेश किए जाने वाली प्रक्रिया को बेहद शानदार और रिएलिटी के बेहद करीब ला कर दिखाने में सफल साबित होती है.

  • फिल्म कानून और न्याय के बीच के फर्क को अच्छे तरीके से समझाती है और जब दर्शक फिल्म देखकर बाहर निकलते हैं तो वो कुछ न कुछ नया विचार अपने साथ लेकर जाते हैं.

  • फिल्म में एक्टिंग, निर्देशन और कहानी सभी चीजें आपको अंत तक बांधे रखती हैं और आप बिल्कुल भी बोर नहीं होते हैं.


क्यों न देखें ?


अगर आप इस वीकेंड मसाला फिल्म की देखने के मूड में हैं तो ये फिल्म आपके लिए नहीं है. ये एक सीरीयस फिल्म है. साथ ही यदि आपको कोर्टरूम ड्रामा फिल्में खासा पसंद नहीं हैं तो ये फिल्म बिल्कुल भी आपके लिए नहीं है.


यहां देखें फिल्म का ट्रेलर