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फिल्मों में काट-छांट सेंसर बोर्ड का काम नहीं : शबाना आजमी 

शबाना ने कहा कि भारत में फिल्म प्रमाणन के लिए जिस तरह की प्रक्रिया अपनाई जा रही है, वह सही नहीं है. केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीएफसीबी) का काम फिल्मों में काट-छांट करना नहीं, बल्कि उसे वर्गीकृत करना है.

नई दिल्ली: हिंदी सिनेमा की बेमिसाल अदाकारा शबाना आजमी ने अपने फिल्मी करियर के दौरान निभाए हर किरदार को अपने अभिनय कौशल से यादगार बनाया है. चार दशकों से बॉलीवुड और सामाजिक कार्यो में सक्रिय शबाना ने कहा कि भारत में फिल्म प्रमाणन के लिए जिस तरह की प्रक्रिया अपनाई जा रही है, वह सही नहीं है. केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीएफसीबी) का काम फिल्मों में काट-छांट करना नहीं, बल्कि उसे वर्गीकृत करना है.

समाजसेवा के विभिन्न कार्यो में शरीक रहने वाली शबाना ने हॉलीवुड फिल्म 'द ब्लैक प्रिंस' के जरिए एक बार फिर अपने बेमिसाल अभिनय की मिसाल पेश की है.

नई दिल्ली में आयोजित 'द ब्लैक प्रिंस' के प्रीमियर पर शबाना ने मौजूदा समय में विवादों से घिरे सेंसर बोर्ड का जिक्र करने पर आईएएनएस से कहा, "सबसे पहली बात है कि प्रमाणन बोर्ड का नाम सेंसर बोर्ड नहीं होना चाहिए, क्यूंकि इसे सेंसर (काट-छांट करना) करने के लिए नहीं, बल्कि फिल्मों को वर्गीकृत करने के लिए बनाया गया है, जिसके तहत बोर्ड यह निर्णय करता है कि किस फिल्म को कौन सा वर्ग दिया जाना चाहिए."

उन्होंने कहा, "हम जिस प्रक्रिया का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह ब्रिटिश प्रक्रिया है, जिसके तहत कुछ लोगों को चुनकर बोर्ड में बैठा दिया जाता है और वे 30-35 लोग मिलकर तय करते हैं कि हमारी फिल्मों में क्या नैतिकता होनी चाहिए, और इनमें अक्सर अधिकांश वे लोग होते हैं, जिनका मौजूदा सरकार की ओर रुझान ज्यादा रहता है, फिर चाहे वह कांग्रेस की हो या भाजपा की. मुझे लगता है कि यह प्रक्रिया सही नहीं है, हमें फिल्म प्रमाणन के लिए अमेरिकी प्रक्रिया अपनानी चाहिए. वहां का बोर्ड फिल्म उद्योग के लोगों का है और वहां सबकुछ फिल्मकार ही मिलकर तय करते हैं. वे फिल्म को देखने के बाद आपस में विचार-विमर्श करते हैं कि कौन सी फिल्म हर इंसान के देखने लायक है, कौन से दृश्य बच्चों के लिए सही नहीं हैं, इसलिए फिल्म के इन-इन हिस्सों पर कट्स लगाने चाहिए."

'द ब्लैक प्रिंस' भारत में 21 जुलाई को हिंदी, अंग्रेजी व पंजाबी में रिलीज हुई है.

फिल्म के बारे में शबाना ने कहा, "मेरा इस फिल्म के साथ बहुत खास अनुभव रहा है. मैंने इसमें खालिस पंजाबी बोली है, जिसके लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी. मुझे बताया गया था कि इसमें पंजाबी के कुछ-एक अल्फाज ही हैं, लेकिन सेट पर पहुंचने के बाद मुझे पता चला कि मुझे काफी कठिन पंजाबी बोली पड़ेगी."

फिल्म प्रमाणन प्रक्रिया में सुधार की जरूरत पर शबाना ने कहा, "अभी जो श्याम बेनेगल समिति बनी थी, उन्होंने भी यही बात कही है, जो मैंने आपसे फिल्म प्रमाणन पर कही. इससे पहले फिल्म प्रमाणन के लिए जस्टिस मग्गल समिति बनी थी, जिसने 40 स्थानों पर जाकर अलग-अलग तरह के लोगों से राय ली थी. मैं इस बात का इंतजार कर रही हूं कि सरकार ने जो श्याम बेनेगल समिति को बिठाया था और उन्होंने जो सिफारिशें की थीं, उनको तुरंत लागू किया जाए."

फिल्मकार समाज के कई अनछुए पहलुओं को समाज के सामने रखते हैं, जिनके बारे में न तो लोगों को पता होता है और न ही कोई इन पर बात करना चाहता है. मौजूदा समय में फिल्मों पर हावी होती जा रही राजनीति से फिल्म निर्माण और फिल्मकारों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?

इस सवाल पर शबाना ने कहा, "हमें इसे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए और मैं मीडिया से भी कहूंगी कि आप थोड़ा सा सहज तरीके से इस बात को आगे ले जाएं. अगर दस लोग इकट्ठा होकर कहते हैं कि हमें यह चीज तकलीफ पहुंचा रही है या उसने हमारी भावना को ठेस पहुंचाई तो बजाय मीडिया को अपना कैमरा उठाकर उनके पास दौड़ने के, पहले यह सोचना चाहिए कि ये कौन लोग हैं? समाज में इनका क्या स्थान है? या फिर ये वे लोग हैं जो कुछ समय चर्चा में रहने के लिए यह बात कह रहे हैं, इसलिए मीडिया के लोगों को थोड़ी एहतियात बरतनी चाहिए."

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