Smita Patil Birth Anniversary : स्मिता पाटिल का नाम लेते ही नज़रों के सामने खूबसूरत और बड़ी-बड़ी आंखों वाली लड़की का चेहरा आ जाता है जिसने कुछ ही साल के फिल्मी करियर में बॉलीवुड में ऐसी अमिट छाप छोड़ दी जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है. न्यूज़ रीडर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करने वाली स्मिता पाटिल ने महज 21 साल में नेशनल अवॉर्ड अपने नाम कर लिया था. उन्होंने वुमेन सेंट्रिक फिल्मों के साथ-साथ कमर्शियल फिल्मों में भी नाम कमाया.
श्याम बेनेगल की फिल्म से किया डेब्यू
पॉलिटिकल बैकग्राउंड से ताल्लुक रखने वाली स्मिता पाटिल का जन्म 17 अक्टूबर, 1955 को पुणे में हुआ था. उनके पिता शिवाजी राव पाटिल महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और मां विद्या ताई पाटिल सामाजिक कार्यकर्ता थीं. कहते हैं कि उनकी मां ने चेहरे की मुस्कुराहट देख इस अभिनेत्री का नाम स्मिता रखा. स्मिता ने Film and Television Institute of India (FTII) से ग्रेजुएशन किया. इसके बाद उन्होंने न्यूज़ रीडर के रुप में अपना करियर शुरु किया. पहली बार उनका कैमरे से सामना 1970 में दूरदर्शन में हुआ. यहां स्मिता मराठी में समाचार पढ़ा करती थीं. उनसे इम्प्रेस होकर बॉलीवुड के दिग्गज फिल्ममेकर श्याम बेनेगल ने उन्हें फिल्म 'चरणदास चोर' (1975) ऑफर की. यही स्मिता पाटिल की डेब्यू फिल्म है. इसके बाद 1977 में स्मिता पाटिल को फिर श्याम बेनेगल ने अपनी फिल्म 'मंथन' और 'भूमिका' में कास्ट किया. 'भूमिका' में बेहतरीन अदाकारी के लिए स्मिता पाटिल ने 21 साल की उम्र में नेशनल अवॉर्ड अपने नाम कर लिया. उनकी छाप छोड़ने वाली फिल्मों में 'आक्रोश' (1980), 'चक्र' (1982), 'गुलामी' (1985), 'मिर्च मसाला' (1987), 'अर्थ', 'मंडी' और 'निशांत' शामिल हैं.
1980 में 'चक्र' के लिए भी स्मिता को नेशनल अवॉर्ड मिला. उन्हें फिल्म 'जैत रे जैत' (1978), 'भूमिका' (1978), 'उंबरठा' (1981), 'चक्र' (1980), 'बाजार' ( 1983), 'आज की आवाज' (1985) के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला.
एक्टिंग के अलावा स्मिता पाटिल महिलाओं के मुद्दों पर भी काम करती थीं. स्मिता फिल्मों में भी ऐसी भूमिका को प्राथमिकता देती थीं जो वीमेन सेंट्रिक हो. शुरुआत में उन्होंने कमर्शियल फिल्में भी नहीं की. हालांकि बाद में उन्होंने 'नमक हलाल' और 'शक्ति' जैसी फिल्में की जिन्होंने बहुत अच्छी कमाई की. वो ऐसी अभिनेत्रियों में शुमार रहीं, जिन्होंने ये साबित किया कि गंभीर मुद्दों पर फिल्मों में काम के साथ कमर्शियल फिल्में भी की जा सकती हैं.
स्मिता के बारे में गलत बोलने का आज भी शबाना आज़मी को है अफसोस
स्मिता पाटिल का जिक्र हो और शबाना आजमी का नाम ना आए ऐसा नहीं हो सकता. उस दौर में इन दोनों अभिनेत्रियों में कड़ी टक्कर होती थी. जहां शबाना आजमी अपनी दमदार एक्टिंग से फिल्ममेकर्स की पसंद बन गईं थीं, वही स्मिता पाटिल भी हर रोज नई मिसाल कायम कर रही थीं. शबाना ने उस दौर में स्मिता पाटिल को लेकर कुछ ऐसी बातें कहीं जिनका उन्हें आज भी अफसोस है. मैथिली राव की लिखी स्मिता पाटिल की बायोग्राफी के लॉन्च पर शबाना पहुंचीं थीं. यहां उन्होंने खुद कहा, ''हम कभी दोस्त नहीं थे. हमारे बीच जो होड़ थी वो कुछ मीडिया की कहीं बातें थी और उनमें कुछ सच्चाई भी थी. मैंने पहले भी कहा था कि मुझे बेहद पछतावा है कि मैंने स्मिता पाटिल के खिलाफ कठोर बातें कही थीं.''
शबाना ने एक बार ये भी कहा था, ''स्मिता ने कई बार ऐसी आत्मीयता दिखाई जो मैं हमेशा याद रखूंगी. फिल्म 'बाजार' की शूटिंग के समय मेरी मां शौकत आजमी जब फिल्म के सेट पर पहुंची तो स्मिता अपने रूम से दौड़ते हुए बाहर निकलीं और उन्होंने बिना किसी से कोई भी बात किए अपना जो सबसे अच्छा रूम था वह मेरी मां को दे दिया. वह मेरे भाई की बहुत अच्छी दोस्त थीं और मेरी उनके परिवार के साथ बहुत अच्छी दोस्ती थी. मुझे स्मिता के बारे में कोई भी कठोर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी.'
राज बब्बर के साथ रिश्ते की वजह से चर्चा में रहीं
अदाकारी के साथ-साथ स्मिता पाटिल अपनी पर्सनल लाइफ की वजह से काफी चर्चा में रहती थीं. अभिनेता राज बब्बर के संग उनके इश्क के चर्चे हर तरफ होते थे. राज बब्बर पहले से नादिरा बब्बर से शादी कर चुके थे. उनके दो बच्चे आर्य बब्बर और जूही बब्बर भी थे. 1984 में फिल्म 'आज की आवाज में दोनों ने साथ काम किया और फिल्म के साथ-साथ इनके इश्क का सिलसिला भी शुरू हुआ. दोनों लिव-इन-रिलेशनशिप में भी रहने लगे. इस वजह से स्मिता पाटिल को काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी.
स्मिता की मां इस रिश्ते के खिलाफ थीं. इसका जिक्र स्मिता पाटिल की जीवनी लिखने वाली मैथिली राव ने अपनी किताब में किया है. उन्होंने लिखा है, ''स्मिता पाटिल की मां कहती थीं कि महिलाओं के अधिकार के लिए लड़ने वाली स्मिता किसी और का घर कैसे तोड़ सकती है? लेकिन, राज बब्बर से अपने रिश्ते को लेकर स्मिता ने मां की भी नहीं सुनी."
31 साल में दुनिया को कहा अलविदा
राज बब्बर ने पत्नी नादिरा से रिश्ता तोड़ स्मिता से शादी रचा ली. कुछ समय में ही दोनों में दूरिया बढ़ गईं. बेटे प्रतीक बब्बर के जन्म के समय ही स्मिता को कुछ कॉम्प्लिकेशन्स हुए और महज दो हफ्ते के भीतर ही उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. 13 दिसंबर, 1986 को 31 साल की उम्र में स्मिता पाटिल का निधन हो गया. उनकी मौत पर भी सवाल उठे. ऐसा कहा गया कि उनकी मौत इलाज के अभाव में हुई.
मौत के बाद रिलीज हुईं करीब 14 फिल्में
स्मिता पाटिल की अचानक मौत से पूरी इंडस्ट्री सहम गई थी. 'ठिकाना' (1987), 'सूत्रधार' (1987), और 'वारिस' (1988) जैसी करीब 14 फिल्में उनकी मौत के बाद रिलीज हुईं. 1989 में रिलीज हुई 'गलियों का बादशाह' उनकी आखिरी फिल्म थी.
सिनेमा में उत्कृष्ठ योगदान के लिए 1985 में उन्हें पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया था.